Monday 4 February 2013

गीत मेरा बन जाता है...



जब-जब पाँवों में कोई कहीं, कांटा बन चुभ जाता है।
दर्द कहीं भी होता हो,  गीत मेरा बन जाता है।।

मैं वाल्मीकि का वंशज हूं, हर दर्द से नाता रखता हूं
कोई फूल टूटे या शूल चुभे, हर जख्म मैं ही सहता हूँ
क्रंदन करता क्रौंच पक्षी, पर मन मेरा कंप जाता है.....
                                                   
मैं सावन का घुमड़ता बादल हूँ, सुख की फसलें उपजाता हूँ
कोई राजा हो या रंक सभी को, जीवन गीत सुनाता हूँ
आँखों में किसी की तिनका चुभे, तो आँसू मेरा बह जाता है..
                                                       
मैं श्रमवीरों का सहोदर हूँ, कल-पुर्जों को धड़काता हूँ
देश की हर गौरव-गाथा में, ऊर्जा बन बह जाता हूँ
सीमा पर कभी फन उठता तो, लहू मेरा बह जाता है...

       सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

No comments:

Post a Comment