Monday 4 February 2013

काम दहन के आय परब- होली



छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म भगवान शिव अउ वोकर परिवार ले जुड़े संस्कृति ल जीथे, एकरे सेती इहां के जतका मूल परब अउ तिहार हे सबो ह सिव या सिव परिवार ले जुड़े हावय। उही किसम होली जेला इहां के भाखा म होली कहे जाते। इहू हर भगवान भोलेनाथ द्वारा कामदेव ल भसम करे के परब आय।
छ त्तीसगढ़ म हमन जेन होली के परब मनाथन वो हर असल म काम दहन के परब आय। बाहिर ले आए मनखे मन इहां के सांस्कृतिक स्वरूप अउ इतिहास ल अब्बड़ ख़दर-बदर कर दिए हे। तेकरे सेती हमू मन वोकर मन सही ये होली के परब ल होलिका दहन के रूप म जानथव। ये हर असल म उत्तर भारत ले आये लोगन अउ उंकर मन के ग्रंथ के माध्यम ले इहां थोपे गे स्वरूप आय।
छत्तीसगढ़ आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म अग्रवाल शिव अउ वोकर परिवार ले जुड़े संस्कृति ल जीथे, एकरे सेती इहां के जतका मूल परब अउ तिहार हे सबो ह सिव या सिव परिवार ले जुड़े हावय। उही किसम होली जेला इहां के भाखा म होली कहे जाते। इहू हर भगवान भोलेनाथ द्वारा कामदेव ल भसम करे के परब आय।
जे मन छत्तीसगढ़ के ‘होले’ ल होलिका दहन संग जोड़थें वोकर मन ले मोर एक ठन प्रश्न हे- होलिका तो सिरिफ एकेच दिन म चिता रचिस, वोमा आगी ढिलीस अउ प्रहलाद ल धर के लहुटिस। येमा प्रहलाद तो बांचगे फेर खुदे ह जर-भुंज के लेसागे। तब फेर एकर खातिर बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक के करीब चालीस दिन के परब मनाए के ये अवसर म नाचे गाए अउ वासनात्मक शब्द मन के उपयोग करे के का आवश्यकता हे। आखिर ए सब के होलिका संग का संबंध हे?
असल म ये जम्मो दृश्य के संबंध भगवान शिव अउ ओकर द्वारा तीसरा नेत्र खोल के भसम करे गे कामदेव के संग हे। आप मन ये प्रसंग ल जानत होहू के त्रिपुर नामक राक्षस के आतंक ले पीड़ित होके देवता मन भगवान शिव के पुत्र के कामना खातिर कामदेव ल तपस्यारत शिव जगा भेजथे तेमा शिवजी के अंदर काम वासना के जनम होवय। अउ वोहर माता पार्वती संग बिहाव करय ताकि वोकर ले शिवपुत्र के जन्म हो सकय जेन हर ये अत्याचारी राक्षस के संहार कर सकय। काबर के वो राक्षस ह तपस्या करके शिवपुत्र के द्वारा ही अपन मरन के आसीरवाद मांगे रहिथे तेकरे सेती वो हर अउ कोनो देवता के द्वारा नइ मरत राहय।
देवता मन के अरजी बिनती करे म कामदेव ह अपन सुवारी पत्नी संग बसंत के मादकता भरे मौसम म जाथे शिव तपस्या भंग करे बर। हमर इहां बसंत पंचमी के दिन जेन अंडा नांव के पेड़ गडियाए जाथे वोहर असल म कामदेव के आगमन के प्रतीक आय। अउ वोकर बाद तहां ले इहां वासनात्मक गीत नृत्य के चलन-चालू हो जाथे जे हा फागुन पुन्नी तक चलथे। काबर ते भगवान भोलेनाथ ह इही फागुन पुन्नी के तीसरा नेत्र ल खोल के कामदेव ल भसम करे रिहिसे।
सिरिफ होली तिहार भर नहीं, भलुक इहां के जतका भी मूल परब अउ तिहार हे, इहां के इतिहास हे जम्मो के रांही-छांही कर दिए गे हावय। जेमन ला नवा सिरा ले वोकर मूल रूप म लिखे के जरूरत हे। छत्तीसगढ़ के इतिहास अउ एकर सांस्कृतिक स्वरूप ल जब तक बाहिर के प्रदेश मन म बइठ के लिखे गे ग्रंथ मन के मापदण्ड म लिखे जाही तब तक एकर सही स्वरूप ह लोगन के आगू म नइ आ सकय। एकर सेती इहां के जम्मो अस्मिता प्रेमी मन ला बाहिरी लोगन अउ बाहिर म लिखे गे ग्रंथ के भंवरजाल ले निकल के इहां के वास्तविक कारण ल जाने बर परही अउ फेर वोकर मापदण्ड म एला नवा सिरा ले लिखे बर लागही।
सुशील भोले
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