Tuesday 12 February 2013

बसंत पंचमी और छत्तीसगढ़


                                                     
छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी के अवसर पर दो प्रमुख पर्वों का आयोजन होता है। एक तो ज्ञान और कला की देवी सरस्वती की जयंती का आयोजन होता है, जिसे पूरे देश में एक साथ मनाया जाता है। लेकिन दूसरा - तपस्यारत शिव की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव के आगमन स्वरूप होली दहन या काम दहन स्थलों पर अरंडी (अंडा) नामक पेड़ गाड़ा जाता है, जो कि संभवत: पूरे देश में केवल छत्तीसगढ़ में ही होता है।
यहां यह जान लेना आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ में जो होली का पर्व मनाया जाता है, वह होलिका दहन के रूप में नहीं मनाया जाता, अपितु काम दहन या मदन दहन के रूप में मनाया जाता है। लेकिन यह दुखद है कि यहां की मूल संस्कृति को विकृत कर अन्य प्रदेशों की संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में होली का पर्व बसंत पंचमी को अंडा (अरंडी) का पेड़ गाडऩे से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा को शिव जी के द्वारा अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म करने तक अर्थात लगभग चालीस दिनों तक चलता। इस अवसर पर वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्य-गीतों का बहुतायत में प्रयोग होता है, उसका असल कारण कामदेव द्वारा शिव तपस्या भंग करने के लिए अपनी पत्नी रति के साथ किये गये ऐसे ही दृश्यों का निर्माण करना है।
मेरा प्रश्न है- होलिका तो केवल एक दिन में ही चिता रचती है, उसमें बैठती है और स्वयं ही भस्म हो जाती है। फिर उसके लिए चालीस दिनों का पर्व मनाने का क्या कारण है? इस अवसर पर जो वासनात्मक नृत्य-गीतों का प्रयोग होता है उसका होलिका से क्या संबंध है?
अधिक जानकारी के लिए मेरे अन्य लेखों को या 'आखर अंजोरÓ नामक किताब को पढ़ा जा सकता है।
                                                                                                        (फोटो गूगल से साभार)

सुशील भोले
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