शासकीय जिला ग्रंथालय, रायपुर में रविवार 30 जून को संत कबीर दास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संगोष्ठी तथा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्रंथपाल श्रीमती सरिता दुबे ने की। इस अवसर पर डॉ. निरूपमा शर्मा, अमरनाथ त्यागी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन नीता लावण्या ने तथा आभार प्रदर्शन श्रीमती शोभा शर्मा में किया। इस गरिमापूर्ण आयोजन में कविता पाठ करते हुए कवि सुशील भोले।
Sunday 30 June 2013
Thursday 27 June 2013
जिनगी घाम-छांव बन जाथे....
(भारतीय काल गणना पद्धति के अनुसार आज आषाढ़ कृष्ण पंचमी को मेरा जन्म दिन है, अंगरेजी पद्धति के अनुसार यह तिथि 2 जुलाई को आती है। आज मुझे जीवन दर्शन पर आधारित इस छत्तीसगढ़ी गीत को आप सबसे साझा करने का मन हो रहा है...)
कोन गली ले आथे-जाथे, लोगन ल भरमाथे
ये जिनगी घाम-छांव बन जाथे, ये जिनगी.....
लुड़बुड़-लुड़बुड़ रेंगत आथे, जब बचपन के दिन ह
हांसत-कुलकत बीतत जाथे, एकक पल अउ छिन ह
गुरतुर-गुरतुर सबो जनाथे, अउ सुटरुंग ले बीत जाथे....
होत जवान मंद-मउहा कस, नशा देखाथे जिनगानी
करू-कस्सा सबो जिनीस बर मुंह म आ जाथे पानी
का सहीं अउ का गलत ये, जम्मो भेद ल भुलवाथे.....
खांसत-खोखत लाठी टेंकत, आथे जब जिनगानी
पाप-पुण्य के लेखा सरेखा, करवाथे फेर जुबानी
तब मुड़ धरके रोथे, अउ नंगत के बोंबियाथे......
एकरे सेती काहत रहिथें, ज्ञानी-ध्यानी मनखें
जिनगी अइसन जीयव जस, पानी म कमल रहिथे
पानी म रहिके घलो जे, पानी ले अलग रहि जाथे...
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
फेसबुक - http://www.facebook.com/kavisushil.bhole
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
कोन गली ले आथे-जाथे, लोगन ल भरमाथे
ये जिनगी घाम-छांव बन जाथे, ये जिनगी.....
लुड़बुड़-लुड़बुड़ रेंगत आथे, जब बचपन के दिन ह
हांसत-कुलकत बीतत जाथे, एकक पल अउ छिन ह
गुरतुर-गुरतुर सबो जनाथे, अउ सुटरुंग ले बीत जाथे....
होत जवान मंद-मउहा कस, नशा देखाथे जिनगानी
करू-कस्सा सबो जिनीस बर मुंह म आ जाथे पानी
का सहीं अउ का गलत ये, जम्मो भेद ल भुलवाथे.....
खांसत-खोखत लाठी टेंकत, आथे जब जिनगानी
पाप-पुण्य के लेखा सरेखा, करवाथे फेर जुबानी
तब मुड़ धरके रोथे, अउ नंगत के बोंबियाथे......
एकरे सेती काहत रहिथें, ज्ञानी-ध्यानी मनखें
जिनगी अइसन जीयव जस, पानी म कमल रहिथे
पानी म रहिके घलो जे, पानी ले अलग रहि जाथे...
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
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Wednesday 26 June 2013
Tuesday 25 June 2013
सारे बंदर फुदक रहे हैं लुटेरों के...
Monday 24 June 2013
Sunday 23 June 2013
Saturday 22 June 2013
Friday 21 June 2013
यादें / ऐतिहासिक पल
चंदैनी गोंदा के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख के मुख्य आतिथ्य, दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी की अध्यक्षता एवं सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंग चंद्राकर के विशेष आतिथ्य में सुशील वर्मा 'भोलेÓ के संपादन में प्रकाशित छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटीÓ का विमोचन 9 दिसंबर 1987 को रायपुर के कुर्मी बोर्डिंग संपन्न में हुआ था। इस ऐतिहासिकअवसर पर छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति से जुड़े तमाम प्रमुखजन उपस्थित थे।
Thursday 20 June 2013
धर मशाल ल तैं ह संगी...
(जन-जागरण के लिए एक छत्तीसगढ़ी गीत)
धर मशाल ल तैं ह संगी, जब तक रतिहा बांचे हे
पांव संभाल के रेंगबे बइहा, जब तक रतिहा बांचे हे....
अरे मंदिर-मस्जिद कहूं नवाले, माथा ल तैं ह संगी
फेर पीरा तोर कम नइ होवय, जब तक रतिहा बांचे हे....
नवा अंजोर तो लाना परही, नवा विचार के रद्दा ले
अंधियारी संग जुझना परही, जब तक रतिहा बांचे हे.....
देश मिलगे राज बनगे, फेर सुराज अभी बांचे हे
जन-जन जब तक जबर नइ होही, जब तक रतिहा बांचे हे...
अबड़ बड़ाई सब गाये हें, सोसक ल सरकार कहे हें
हम तो सच ल कहिबो संगी, जब तक रतिहा बांचे हे...
नवा किरण तो लटपट आथे, फेर उदिम करना परही
चलौ यज्ञ कराबो आजादी के, जब तक रतिहा बांचे हे....
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
फेसबुक - http://www.facebook.com/kavisushil.bhole
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
धर मशाल ल तैं ह संगी, जब तक रतिहा बांचे हे
पांव संभाल के रेंगबे बइहा, जब तक रतिहा बांचे हे....
अरे मंदिर-मस्जिद कहूं नवाले, माथा ल तैं ह संगी
फेर पीरा तोर कम नइ होवय, जब तक रतिहा बांचे हे....
नवा अंजोर तो लाना परही, नवा विचार के रद्दा ले
अंधियारी संग जुझना परही, जब तक रतिहा बांचे हे.....
देश मिलगे राज बनगे, फेर सुराज अभी बांचे हे
जन-जन जब तक जबर नइ होही, जब तक रतिहा बांचे हे...
अबड़ बड़ाई सब गाये हें, सोसक ल सरकार कहे हें
हम तो सच ल कहिबो संगी, जब तक रतिहा बांचे हे...
नवा किरण तो लटपट आथे, फेर उदिम करना परही
चलौ यज्ञ कराबो आजादी के, जब तक रतिहा बांचे हे....
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
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Wednesday 19 June 2013
Monday 17 June 2013
जहुंरिया ल का हो जाथे...
(सूफी शैली का एक छत्तीसगढ़ी गीत)
जहुंरिया ल का हो जाथे रे, धनी ल का हो जाथे न
बिहनिया आथे संझा चले जाथे, रतिहा ल कहां बिताथे...
मन बैरी मानय नहीं, जिवरा धुक-धुक करथे
कोनो सउत के संसो म तन म आगी कस बरथे
करिया जाथे रे, लाली रंग के सपना ह करिया जाथे...
मंदिर-मस्जिद खोज डरे हौं, गुरुद्वारा म झांके हौं
चारों मुड़ा के चर्च मनला बही-भूती कस ताके हौं
निरगुन घाट म जा के घलो, आंखी पथराथे रे....
चंदा उतरगे हे गांव म, जुग-जुग ले हे गली खोर
फेर मोर मयारु संग जुड़ही, कइसे मया के डोर
जमो आस सिरागे रे, बइरी बिरहा बिजराथे न....
सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811
जहुंरिया ल का हो जाथे रे, धनी ल का हो जाथे न
बिहनिया आथे संझा चले जाथे, रतिहा ल कहां बिताथे...
मन बैरी मानय नहीं, जिवरा धुक-धुक करथे
कोनो सउत के संसो म तन म आगी कस बरथे
करिया जाथे रे, लाली रंग के सपना ह करिया जाथे...
मंदिर-मस्जिद खोज डरे हौं, गुरुद्वारा म झांके हौं
चारों मुड़ा के चर्च मनला बही-भूती कस ताके हौं
निरगुन घाट म जा के घलो, आंखी पथराथे रे....
चंदा उतरगे हे गांव म, जुग-जुग ले हे गली खोर
फेर मोर मयारु संग जुड़ही, कइसे मया के डोर
जमो आस सिरागे रे, बइरी बिरहा बिजराथे न....
सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269 92811
Saturday 15 June 2013
Thursday 13 June 2013
जा बदरिया जा....
जा बदरिया जा, ले जा ये संदेश
पिया मिलन को आ रही, नदी तुम्हारे देश.... ले जा...
बचपन बीता पर्वत-पर्वत, कभी झील कभी झरनों में
ऊंचे-ऊंचे हिम-शिखर और, घने लहराते वनों में
छूटी गोद माता की, अब जाना है दूर देश... ले जा...
किशोरावस्था मैं खेली-कूदी, खेतों और खलिहानों में
अपने तट पर बसे हुए, तीरथ देवस्थानों में
किसानों को समृद्ध किया, मिटाए सारे क्लेश... ले जा...
अब तो यौवन छलक रहा है, जैसे हो मधु का प्याला
अपना ही अंतस झुलस रहा है, धधक रही जैसे हो ज्वाला
प्रीतम सागर से मिलने, अब ली है दुल्हन वेश.. ले जा...
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
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ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 098269 92811
Monday 10 June 2013
गुन-गुन आथे हांसी....
(कवि सम्मेलन के मंचों पर छत्तीसगढ़ी भाषा की इस रचना को मेरी प्रतिनिधि रचना के तौर पर सुना जाता है।)
पहुना मन बर पलंग-सुपेती, अपन बर खोर्रा माची
उंकर दोंदर म खीर-सोंहारी, हमर बर जुच्छा बासी
मोला गुन-गुन आथे हांसी, रे मोला......
जेन उमर म बघवा बनके, गढ़ते नवा कहानी
तेन उमर म पर के बुध म, गंवा डारेस जवानी
आज तो अइसे दिखत हावस, जइसे चढग़े हावस फांसी ... रे मोला...
ठग-जग बनके आथे इहां, जइसे के ज्ञानी-ध्यानी
पोथी-पतरा के आड़ म उन, गढ़थें किस्सा-कहानी
तुम कब तक उनला लादे रइहौ, कब तक रही उदासी... रे मोला...
धरम-करम के माने नोहय, पर के बुध म रेंगत राहन
दुख-पीरा अउ सोसन ल, फोकट के साहत राहन
ये तो आरुग अंधरौटी ये, नोहय अंजोर उजासी... रे मोला...
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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पहुना मन बर पलंग-सुपेती, अपन बर खोर्रा माची
उंकर दोंदर म खीर-सोंहारी, हमर बर जुच्छा बासी
मोला गुन-गुन आथे हांसी, रे मोला......
जेन उमर म बघवा बनके, गढ़ते नवा कहानी
तेन उमर म पर के बुध म, गंवा डारेस जवानी
आज तो अइसे दिखत हावस, जइसे चढग़े हावस फांसी ... रे मोला...
ठग-जग बनके आथे इहां, जइसे के ज्ञानी-ध्यानी
पोथी-पतरा के आड़ म उन, गढ़थें किस्सा-कहानी
तुम कब तक उनला लादे रइहौ, कब तक रही उदासी... रे मोला...
धरम-करम के माने नोहय, पर के बुध म रेंगत राहन
दुख-पीरा अउ सोसन ल, फोकट के साहत राहन
ये तो आरुग अंधरौटी ये, नोहय अंजोर उजासी... रे मोला...
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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यूटूब पर मेरे गीतों को सुनने के लिए क्लिक करें-
मित्रों मेरे गीतों को यूटूब पर सुनने के लिए इस लिंक पर जायें-https://www.youtube.com/channel/UCJkmrUNIZo155cxuLV31rPQ/feed?activity_view=1
Friday 7 June 2013
चलो आज फिर दीप जला दें श्रम के...
यूट्यूब का लिंक - चलो आज फिर दीप जला दें श्रम के...
http://www.youtube.com/watch?v=u2x7bd7mlgY&feature=youtu.be
सुनिए मेरा एक गीत - जंउरिहा ल का हो जाथे रे....
इसे यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है- http://www.youtube.com/watch?v=NfVAaQUnZJI&feature=youtu.be
Thursday 6 June 2013
मेरा संक्षिप्त परिचय
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
प्रचलित नाम - सुशील भोले
जन्म - 2-7-1961 (आषाढ़ कृष्ण पंचमी, संवत् 2018, दिन-रविवार, रात्रि-8 बजे, स्थान-भाठापारा, जिला-बलौदाबाजार (छ.ग.)।
माता - स्व. श्रीमती उर्मिलादेवी वर्मा
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
पत्नी - श्रीमती बसंतीदेवी वर्मा
संतान - तीन पुत्रियां। 1- श्रीमती नेहा-रवीन्द्र वर्मा, 2- श्रीमती वंदना-अजयकांत वर्मा, 3- श्रीमती ममता-वेंकटेश वर्मा।
पैतृक गांव - नगरगांव (धरसींवा, जिला-रायपुर )
वर्तमान निवास - 41/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर-492001 (छत्तीसगढ़)
मोबा. नं. 098269 92811
ब्लॉग -http://www.mayarumati.blogspot.in/
फेसबुक -http://www.facebook.com/kavisushil.bhole
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
प्रकाशित कृतियां-
1- छितका कुरिया (छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन)
2- दरस के साध (लंबी कविता)
3- जिनगी के रंग (छत्तीसगढ़ी गीत एवं भजनों का संकलन)
4- आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित आलेखों का संकलन)
5- ढेंकी (छत्तीसगढ़ी कहानियों का संकलन)
प्रकाशकाधीन-
1- भोले के गोले (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संकलन)
संपादन-
1- मयारु माटी (छत्तीसगढ़ी भाषा की ऐतिहासिक मासिक पत्रिका)
सह-संपादक-
1- दैनिक तरुण छत्तीसगढ़, 2- दैनिक अमृत संदेश, 3- दैनिक छत्तीसगढ़, 4- साप्ताहिक इतवारी अखबार।
इनके अलावा अनेक सामाजिक एवं साहित्यि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन एवं सह-संपादन।
कालम लेखन-
1- तरकश अउ तीर (दैनिक नवभास्कर 1990)
2- आखर अंजोर (दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ 2006-07)
3- डहर चलती (दैनिक अमृत संदेश 2009)
4- गुड़ी के गोठ (साप्ताहिक इतवारी अखबार 2010 से लेकर अभी तक जारी)
5- बेंदरा बिनास (साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक 1988-89)
6- किस्सा कलयुगी हनुमान के (मासिक मयारु माटी 1988-89)
प्रसारण-
1- आकाशवाणी रायपुर से आलेख, कहानी एवं कविताओं का नियमित प्रसारण।
2- अनेक सांस्कृतिक मंचों द्वारा मेरे लिखे हुए गीत एवं भजनों का गायन-प्रदर्शन।
ऑडियो कैसेट-
छत्तीसगढ़ी भाषा में लहर एवं फूलबगिया नाम से दो कैसेटों का लेखन, गायन एवं निर्देशन। साथ ही अनेक कैसेटों का निर्देशन।
विशेष-
1- कवि सम्मेलन के मंचों पर हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में गीतों का सस्वर पाठ।
2- छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर विशेषज्ञ के रूप में अनेक स्थानों पर वक्तव्य।
3- अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता, समीक्षा एवं साक्षात्कार आदि का नियमित रूप से लेखन-प्रकाशन।
सम्मान-
छ.ग. शासन के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 2010 में प्राप्त 'भाषाÓ सम्मान सहित अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा अनेकों सम्मान प्राप्त।
प्रचलित नाम - सुशील भोले
जन्म - 2-7-1961 (आषाढ़ कृष्ण पंचमी, संवत् 2018, दिन-रविवार, रात्रि-8 बजे, स्थान-भाठापारा, जिला-बलौदाबाजार (छ.ग.)।
माता - स्व. श्रीमती उर्मिलादेवी वर्मा
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
पत्नी - श्रीमती बसंतीदेवी वर्मा
संतान - तीन पुत्रियां। 1- श्रीमती नेहा-रवीन्द्र वर्मा, 2- श्रीमती वंदना-अजयकांत वर्मा, 3- श्रीमती ममता-वेंकटेश वर्मा।
पैतृक गांव - नगरगांव (धरसींवा, जिला-रायपुर )
वर्तमान निवास - 41/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर-492001 (छत्तीसगढ़)
मोबा. नं. 098269 92811
ब्लॉग -http://www.mayarumati.blogspot.in/
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ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
प्रकाशित कृतियां-
1- छितका कुरिया (छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन)
2- दरस के साध (लंबी कविता)
3- जिनगी के रंग (छत्तीसगढ़ी गीत एवं भजनों का संकलन)
4- आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित आलेखों का संकलन)
5- ढेंकी (छत्तीसगढ़ी कहानियों का संकलन)
प्रकाशकाधीन-
1- भोले के गोले (छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संकलन)
संपादन-
1- मयारु माटी (छत्तीसगढ़ी भाषा की ऐतिहासिक मासिक पत्रिका)
सह-संपादक-
1- दैनिक तरुण छत्तीसगढ़, 2- दैनिक अमृत संदेश, 3- दैनिक छत्तीसगढ़, 4- साप्ताहिक इतवारी अखबार।
इनके अलावा अनेक सामाजिक एवं साहित्यि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन एवं सह-संपादन।
कालम लेखन-
1- तरकश अउ तीर (दैनिक नवभास्कर 1990)
2- आखर अंजोर (दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ 2006-07)
3- डहर चलती (दैनिक अमृत संदेश 2009)
4- गुड़ी के गोठ (साप्ताहिक इतवारी अखबार 2010 से लेकर अभी तक जारी)
5- बेंदरा बिनास (साप्ताहिक छत्तीसगढ़ी सेवक 1988-89)
6- किस्सा कलयुगी हनुमान के (मासिक मयारु माटी 1988-89)
प्रसारण-
1- आकाशवाणी रायपुर से आलेख, कहानी एवं कविताओं का नियमित प्रसारण।
2- अनेक सांस्कृतिक मंचों द्वारा मेरे लिखे हुए गीत एवं भजनों का गायन-प्रदर्शन।
ऑडियो कैसेट-
छत्तीसगढ़ी भाषा में लहर एवं फूलबगिया नाम से दो कैसेटों का लेखन, गायन एवं निर्देशन। साथ ही अनेक कैसेटों का निर्देशन।
विशेष-
1- कवि सम्मेलन के मंचों पर हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में गीतों का सस्वर पाठ।
2- छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर विशेषज्ञ के रूप में अनेक स्थानों पर वक्तव्य।
3- अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता, समीक्षा एवं साक्षात्कार आदि का नियमित रूप से लेखन-प्रकाशन।
सम्मान-
छ.ग. शासन के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 2010 में प्राप्त 'भाषाÓ सम्मान सहित अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा अनेकों सम्मान प्राप्त।
Monday 3 June 2013
एक नया अनुभव...
अभी तक साहित्यिक गोष्ठियों में या फिर कवि सम्मेलन के मंचों पर कविता पाठ करते थे। लोग तालियां बजाते थे, वाह..वाह.. कहते थे, तो उत्साहिक होकर और भी मस्त हो जाते थे। लेकिन अभी बीते रविवार को एक वीडियो शूट के लिए रिकार्डिग स्टूडियो में अकेला खड़े होकर कविता पाठ करने का अवसर मिला। न कोई वाह कहने वाला... न ताली बजाने वाला... समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं सही-सलामत पढ़ रहा हूं या नहीं.... हेडफोन जरूर था कान में... लेकिन हम लोग तो दूसरों की प्रतिक्रिया के आधार पर ही अच्छा या बुरा मानने के आदि हो चुके हैं।
आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी कविता पाठ करने का अवसर आता रहा है... लेकिन वहां अन्य कवि मित्रों की वाहवाही तो मिल ही जाती थी।
निश्चित रूप से रिकार्डिंग स्टूडियो का यह अनुभव... बिल्कुल नया अनुभव रहा.....
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