Monday 22 July 2013

ये भोले तोर बिना....

(आज से श्रावण मास प्रारंभ हो रहा है...ऐसे में छत्तीसगढ़ी भाषा का एक गीत साझा करना प्रासंगिक हो जाता है...)












जिनगी के चार दिना, कटही कइसे मोर जोंही,
गुन-गुन मैं सिहर जाथौं, ये भोले तोर बिना...

हांसी हरियावय नहीं, पीरा पिंवरावय नहीं
जिनगी के गाड़ी, तोर बिन तिरावय नहीं
श्रद्धा के गांजा-धथुरा, ले के तैं हमरो ल पीना... ये भोले...

उमंग अब उवय नहीं, संसो ह सूतय नहीं
बिपदा के बैरी सिरतोन, छोरे ये छूटय नहीं
तुंहरे हे आसा एक्के, घुरुवा कस झन तो हीना... ये भोले...

तन ह तनावय नहीं, आंसू अंटावय नहीं
मया के कुंदरा जोहीं, छाये छवावय नहीं
भक्ति म भगवान बिना, मुसकिल हे हमरो जीना... ये भोले...
                                           सुशील भोले
                                    संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                                      मो.नं. 098269 92811

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