Saturday 28 September 2013

खदर-मसर होगे....

(छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की सबसे लोकप्रिय शैली ददरिया में आजादी के बाद देश और समाज में आ रहे परिवर्तनों पर हल्के-फुल्के ढंग से एक प्रयोग...)













अरे खदर-मसर होगे जी अब तो सुराज म
हाय गदर-फदर होगे जी जनता के राज म....

राजा नंदागे अब सांसद आगे
अउ पंच के बदला पार्षद आगे.....

चिट्ठी-पतरी के अब दिन नंदागे
मयारु संग गोठियाये बर मोबाइल आगे....

आमा-अमली ल अब नइ छुवन
मन होथे कभू त मिरिंण्डा पीथन....

नांगर-बइला गय अब टेक्टर आगे
पारा-मोहल्ला के बदला सेक्टर आगे....

नाचा-गम्मत के अब दिन पहागे
मनोरंजन के नांव म टीवी छागे....

धोती-कुरता के अब गम नइ मिलय
जिंस आगे पहिर ले तैं बिना सिलाय.....

मुंह ल रंगावन जब खावन बीरो-पान
अब माखुर-गुटखा आगे लेवथे परान....

सुशील भोले
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