Sunday 17 November 2013

रामराज्य का दर्शन और आज के रामनामी....

रामराज्य के दर्शन को संक्षिप्त में परिभाषित करें, तो यह स्थानीय मूल के व्यक्ति के हाथों में स्थानीय शासन सौंंपना है।
याद करें राम का वनवास काल, जिसके कारण उन्हें भगवान की श्रेणी में स्थापित किया गया। किसकिंधा में बालि वध के पश्चात वहां का शासन सुग्रीव को सौंपा गया। इसी तरह रावण वध के पश्चात लंका का शासन विभिषण को सौंपा गया। यदि राम चाहते तो उनके स्थान पर अपने किसी बंधु-बांधव को उन स्थानों का राजा बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
हम राम को भगवान इसीलिए कहते हैं, क्योंकि उन्होंने न्याय की स्थापना की । किसी के अधिकार पर कभी डाका नहीं डाला, किसी के मुंह से निवाला नहीं छीना। लेकिन आज के तथाकथित रामनामी क्या कर रहे हैं? राष्ट्रीयता की आड़ में स्थानीय मूल के निवासियों को षडयंत्र पूर्वक किनारे कर उनके स्थान पर अन्य क्षेत्रों से आये लोगों को शासन-प्रशासन पर स्थापित करते जा रहे हैं।
प्रश्न है कि यह रामराज्य है अथवा रावण राज्य? दूसरे लोगों के अधिकारों को, उनके घर-द्वार और ठिकानों को  षडयंत्र पूर्वक छीनने का कार्य तो रावण का रहा है ना, तो फिर इसे रामराज्य कैसे कहा जा सकता है?
आज छत्तीसगढ़ के साथ ही साथ समूचे देश का मूल निवासी समाज अपने-आप को उपेक्षित और शोषित महसूस कर रहा है। आंदोलन और बगावत की राह अख्तियार कर रहा है, तो उसका मूल कारण यही है, कि किसी न किसी बहाने उनके मुंह से निवाला छीना जा रहा है, उनके अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है, उनकी अस्मिता को तहस-नहस कर उसके स्थान पर बाहरी लोगों की अस्मिता और पहचान को स्थापित किया जा रहा है।
जब तक ऐसे दृश्यों को रोका नहीं जायेगा, तब तक दुनिया में कभी भी सुख-शांति की स्थापना नहीं हो पायेगी... रामराज्य का सपना साकार नहीं हो पायेगा।
तो आइये शपथ लें... इस चुनाव में केवल स्थानीय मूल के निवासियों को विजयी बनाकर रामराज्य के मूल दर्शन को साकार करेंगे।

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

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