Tuesday 19 November 2013

कथरी ह गोई रतिहा ....

(अगहन माह प्रारंभ हो गया है, इसी के ठंड अपना असर दिखाने लगी है। ऐसे में यह छत्तीसगढ़ी गीत प्रासंगिक लगने लगा है।)



कथरी ह गोई रतिहा गजब सुहाथे
उत्ती के घाम असन कुनकुन जनाथे...

धुंका-धुर्री के संग म जब ले जाड़ आए हे
लइका-सियान सब्बो ल कंपकंप ले कंपाए हे
तब ले गउकिन चुरुमुरु सुतई ह सुहाथे....कथरी ह....

अग्घन-पूस के बेरा ह सुटरुंग ले पहाथे
फेर रतिहा जुलमी ह नंगत के सताथे
धन तो गोरसी के अंगरा ह देंह ल दंदकाथे... कथरी ह...

तरिया-नंदिया के पानी ले कुहरा तो उडिय़ाथे
बने ताते-तात होही, मनला वो भरमाथे
फेर छूते साथ गोई करा कस जनाथे... कथरी ह ...

अइसने बेरा म आथे जब काकरो सुरता
मन मुचमुचाथे अउ मया के होथे बरसा
अंतस के भीतर तब ताते-तात जनाथे... कथरी ह...

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
 मो.नं. 080853-05931, 098269-92811

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