Tuesday 3 December 2013

जड़कल्ला जब आथे....


































आंखी रमजत मुंह ल फारत, जड़कल्ला जब आथे
सुरुज नरायण लजकुरहा कस, दुरिहच ले मुसकाथे...

घर ले बाहिर गली-खोर म, कनकनी खूब बरसथे
नवा तरइया के पानी हर, चांय ले कइसे करथे
नंदिया के पानी करा बरोबर, छाती धक ले करथे
दहरा जाड़ के मारे सरबस, हू..हू..हू..हू.. करथे....

सुर सुर सुर सुर सुर्रा के संग, देंह डार कस  डोलय
कटकट कटकट दांत ह कइसे, दुख के बोली बोलय
लाठी टेंकत जिनकर जिनगी, भीख के सेती चलथे
जाड़ इंकर बर काल बरोबर, सूतत-जागत रहिथे.....

दारू-कुकरा संग जिनकर जिनगी, कुंकरू कूं कस करथे
अइसन बलकरहा मनखे बर, जड़कल्ला खूब ठनकथे
सब के सुख ह इंकर बगल म, कइसे कलपत रहिथे
बियापथे नस-नस म जाड़ा, रकत सबो के जमथे....

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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