Sunday 2 February 2014

मोर भुइयाँ और श्याम वर्मा...



छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति पर आधारित स्थानीय आकाशवाणी का सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम *मोर भुइयाँ* सुनने वालों को श्याम वर्मा का नाम भी अच्छी तरह से याद होगा। श्याम वर्मा पिछले करीब 17 वर्षों से इस कार्यक्रम का संयोजन के साथ ही साथ उद्घोषणा भी कर रहे हैं।
टीवी पर ढेरों चैनलों के आ जाने के बावजूद आज भी ग्रामीण छत्तीसगढ़ में *मोर भुइयाँ* कार्यक्रम का बेसब्री से इंतजार रहता है। लोग प्रति मंगलवार सुबह 8.30 से लेकर 9.30 तक इस बहुआयामी कार्यक्रम को सुनते हैं। मेरे अनेक गीत, कहानी एवं वार्ता इस कार्यक्रम में प्रसारित होते हैं, जिनकी जानकारी लोगों के फोन आने पर मुझे होती है, क्योंकि कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिन्हें हम ही नहीं सुन पाते। कई बार तो हमें जानकारी भी नहीं होती कि हमारा भी कुछ प्रसारित होने वाला है। वो तो श्रोता मित्रों का स्नेह है कि वे फोन करके बधाई दे देते हैं।
ज्ञात रहे *मोर भुइयाँ* आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाला छत्तीसगढ़ी भाषा एकमात्र ऐसा कार्यक्रम है, जिसे छत्तीसगढ़ स्थित सभी आकाशवाणी के केन्द्रों से एकसाथ प्रसारित किया जाता है। इस बात से भी ज्ञात होता है कि इस कार्यक्रम का छत्तीसगढ़ी जनमानस में क्या स्थान है।
रायपुर जिला के खरोरा से तिल्दा सड़क मार्ग पर स्थित ग्राम ताराशिव में 29 जनवरी 1962 को सामान्य कृषक परिवार जन्मे श्याम वर्मा और मोर भुइयाँ आपस में एकदूसरे के पूरक बने गये हैं। दोनों की ही पहचान एक-दूसरे के कारण होती है।
ऊपर की तस्वीर में बांयें से- आकाशवाणी में बाबू के पद पर कार्यरत रामजी ध्रुव, बीच में श्याम वर्मा अपने नाती को गोद में लिए हुए और मैं सुशील भोले...  

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