Monday 31 March 2014

चितावर माता...

चैत्र नवरात्र की पूर्व संध्या पर रविवार 30 मार्च 2014 को ग्राम-झिरिया-कामता, विकासखंड-सिमगा, जिला-बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़) स्थित चितावर दाई जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

ज्ञात रहे यहां पर एक प्राकृतिक जलस्रोत वाला कुंड है, जिसमें अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा स्थापित है। इस कुंड में पानी भरे रहने तथा समीप में ही बहती छोटी नदी के साथ उसका संपर्क होने के कारण कई जीव-जंतु कभी-कभार उस कंड में आकर अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा से लिपट जाते हैं। मैं जिस समय वहां गया एक सर्प उस प्रतिमा पर चढ़ा हुआ था। उसके शरीर का आधा भाग पानी में और आधा भाग प्रतिमा पर था। मेरे पास उस समय कोई अच्छा केमरा नहीं था, फिर भी अपने मोबाइल के द्वारा उसका चित्र लेने का प्रयास किया।

ज्ञात रहे यह स्थल एक पूरा धार्मिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है, जहां श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं। साथ ही यहां मेला आदि का आयोजन भी होते रहता है।



Friday 28 March 2014

रतिहा अब नीक लागय...

(दोनों फोटो गूगल से)

























लाहकत हे भोंभरा अउ घाम, छइहां अब नीक लागय
अंगरा बन उसनत हे चाम, रतिहा अब नीक लागय....

जुड़-जुड़ बोलथे अब चंदा-चंदैनी
मन होथे मिल लेतेंव लगाके निसैनी
सुरुज के सुरता झन करा, लपरहा बर खीक लागय...

कइसे पहाही ये जेठ-बइसाख ह
जिनगी जहर होगे अउ जीये के आस ह
तरा-ररा चुहथे पछीना, ये नून के बड़े ढीक लागय...

गरती हे आमा अउ अमली झरती
टोटा जुड़वाय बर माटी के करसी
भइंसा म चढ़के तउंरई, तरिया अब नीक लागय...

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

Tuesday 25 March 2014

जय हो दाई....

ये सभी चित्र उपकार संघ सोनारी, जमशेदपुर-टाटानगर (झारखंड) द्वारा पिछले वर्ष 2013 के  चैत्र नवरात्र के अवसर पर निकाले गये जंवांरा विसर्जन के  हैैं, जो छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को सुदूर प्रदेशों में भी जीवंत बनाये हुए हैं। उन्हें और उनके प्रयासों को नमन... जय माता दी...







Sunday 23 March 2014

त्रिवेणी संगम साहित्य समिति का आयोजन....

त्रिवेणी संगम साहित्य समिति, नवापारा-राजिम द्वारा गायत्री मंदिर राजिम के सभागार में रविवार 23 मार्च 2014 को आयोजित हास्य कवि सम्मेलन की झलक ......





देशबंधु में... पत्थर-पत्थर....

दैनिक देशबंधु के 23 मार्च 2014 के अवकाश अंक में प्रकाशित मेरा गीत... पत्थर-पत्थर बोल रहा है.....

Friday 21 March 2014

नोटा का सोटा...















फिर  हमारे क्षेत्र में उछला है सिक्का खोटा
चलो लगायें जमकर इनको *नोटा* का सोटा

(फोटो-गूगल से)

सुशील सोंटावाला
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Thursday 20 March 2014

वल्लभाचार्य जन्मस्थली चंपारण

महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की जन्मस्थली चंपारण, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) में इन दिनों भागवत कथा वाचन का आयोजन किया गया है। इसे सुनने के लिए उनके अनुयायी छत्तीसगढ़ के साथ ही साथ गुजरात से भी भारी संख्या में पधार रहे हैं। पिछले दिनों मुझे भी इस पुण्यभूमि में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था।



Monday 17 March 2014

इस होली में....

ये हैंं मेरे परिवार के सदस्य....




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Friday 14 March 2014

होली की शुभकामनाएं...

शब्दों का रंग छिड़कता हूं मस्तानों की टोली में
मद्धम-मद्धम नशा चढ़ाने भांग मिला है बोली में
कोई कहीं रह ना जाये, सतरंगी रंग में रंगने से
ऐसा खुमार चढ़ा हुआ है दिलवाले की होली में












आप सभी को होली की अनेकानेक शुभकामनाएं...
(फोटो-गूगल से)

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Thursday 13 March 2014

सुशील भोले









होलिका दहन या काम दहन..?


छत्तीसगढ़ में जो होली का पर्व मनाया जाता है, वह वास्तव में 'काम दहन" का पर्व है, न कि 'होलिका दहन" का। यह काम दहन का पर्व है, इसीलिए इसे मदनोत्सव या वसंतोत्सव के रूप में भी स्मरण किया जाता है, जिसे माघ महीने की शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि से लेकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि तक लगभग चालीस दिनों तक मनाया जाता है।

सती आत्मदाह के पश्चात तपस्यारत शिव के पास आततायी असुर के संहार के लिए शिव-पुत्र प्राप्ति हेतु देवताओं द्वारा कामदेव को भेजा जाता है, ताकि उसके (शिव) अंदर काम वासना का उदय हो और वे पार्वती के साथ विवाह करें, जिससे शिव-पुत्र के हाथों मरने का वरदान प्राप्त असुर के संहार के लिए शिव-पुत्र (कार्तिकेय) की प्राप्ति हो। देवमंडल के अनुरोध पर कामदेव बसंत के मादकता भरे मौसम का चयन कर अपनी पत्नी रति के साथ माघु शुक्ल पक्ष पंचमीं को तपस्यारत शिव के सम्मुख जाता है। उसके पश्चात वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों के माध्यम से शिव-तपस्या भंग करने की कोशिश की जाती है, जो फाल्गुन पूर्णिमा को शिव द्वारा अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसे (कामदेव को) भस्म करने तक चलती है।

छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) को काम दहन स्थल पर अंडा (अरंडी) नामक पेड़  गड़ाया जाता है, वह वास्तव में कामदेव के आगमन का प्रतीक स्वरूप होता है। इसके साथ ही यहां वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों के माध्यम से मदनोत्सव का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। इस अवसर पर पहले यहां 'किसबीन नाच" की भी प्रथा थी, जिसे रति नृत्य के प्रतीक स्वरूप आयोजित किया जाता था।
'होलिका दहन" का संबंध छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले पर्व के साथ कहीं पर भी दृष्टिगोचर नहीं होता। होलिका तो केवल एक ही दिन में चिता रचवाकर उसमें आग लगवाती है, और उस आग में स्वयं जलकर भस्म हो जाती है, तब भला उसके लिए चालीस दिनों का पर्व मनाने का सवाल ही कहां पैदा होता है? और फिर वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और गीत-नृत्यों का होलिका से क्या संबंध है?

ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं वह सृष्टिकाल की संस्कृति है। युग निर्धारण की दृष्टि से कहें तो सतयुग की संस्कृति है, जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने के लिए हमें फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

मित्रों, सतयुग की यह गौरवशाली संस्कृति आज की तारीख में केवल छत्तीसगढ़ में ही जीवित रह गई है, उसे भी गलत-सलत व्याख्याओं के साथ जोड़कर भ्रमित किया जा रहा। मैं चाहता हूं कि मेरे इसे इसके मूल रूप में पुर्नप्रचारित करने के सद्प्रयास में आप सब सहभागी बनें...।

सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

Tuesday 11 March 2014

छत्तीसगढ़ी साहित्यकार...

रविवार 9 मार्च 2014 को रायपुर के दूधाधारी सत्संग भवन में आयोजित प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन के अवसर पर लक्ष्मण मस्तुरिया, रवि श्रीवास्तव, सुशील भोले, परमानंद वर्मा, रघुवीर अग्रवाल पथिक, मीर अली मीर एवं अन्य साहित्यकार...

जीवन यदु राही का सम्मान करते साहित्यकार एवं अतिथिगण...

Monday 10 March 2014

छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ..

नव उजियारा साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था, रायपुर द्वारा छत्तीसगढ़ की सात सांस्कृतिक विभूतियों का स्टीकर बना कर छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए समर्पित लोगों को उपलब्ध करवाया जा रहा है। स्टीकर में शामिल सातों विभूतियाँ हैं -

1- छत्तीसगढ़ी भाषा में धर्म उपदेश देने वाले प्रथम संत गुरु घासीदास जी
 2- स्वाधीनता आंदोलन में छत्तीसगढ़ से अपनी शहादत देने वाले प्रथम बलिदानी शहीद वीर नारायण सिंह जी
 3- छत्तीसगढ़ी व्याकरण के सर्जक काव्योपाध्याय हीरालाल जी चन्नाहू
4- छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य के पुरोधा पं. सुंदर लाल शर्मा जी
5- छत्तीसगढ़ी नाचा के पितामह दाऊ मंदरा जी साव
6- पंडवानी के आदिगुरु नारायण प्रसाद जी वर्मा
7- छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी


इनसे संबंधित अधिक जानकारी के लिए संस्था के डूंडा स्थित कार्यालय से या इन फोन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है- 98267 53304, 80853-05931 

Sunday 9 March 2014

छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन...

रविवार 9 मार्च 2014 को रायपुर के दूधाधारी सत्संग भवन में आयोजित प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन की झलकियां....






Friday 7 March 2014

मूल संस्कृति की उपेक्षा को लेकर ज्ञापन...

छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति की उपेक्षा और उसके वास्तविक रूप में पुनर्लेखन की मांग को लेकर प्रदेश के संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर को वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार सुशील भोले द्वारा ज्ञापन दिया गया।
ज्ञात रहे 6 मार्च 2014 को संस्कृति मंत्री को दिये गये ज्ञापन की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री सहित प्रदेश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों को भी दी गई थी, जिसकी प्रकाशित प्रति *छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति की उपेक्षा और नये मंत्री से अपेक्षा* शार्षक भी संस्कृति मंत्री को साथ में दी गई।
इस अवसर पर कवि सुशील भोले के साथ रंगकर्मी चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, शिव चंद्राकर सहित अनेक साहित्यिक-सास्कृतिक मित्र उपस्थित थे।


छत्तीसगढ़ की विभूतियाँ का विमोचन...

नव उजियारा साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था, रायपुर द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विभूतियों पर आधारित स्टीकर का विमोचन संस्कृति मंत्री श्री अजय चंद्राकर के हाथों 6 मार्च 2014 को संपन्न हुआ। इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष सुशील भोले, उपाध्यक्ष चंद्रशेखर चकोर, सचिव जयंत साहू, कोषाध्यक्ष गोविन्द धनगर सहित अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र के मित्र उपस्थित थे....

Wednesday 5 March 2014

पत्थर-पत्थर बोल रहा है....

(यह गीत उन अनाम कलाकारों को समर्पित है, जो बड़े-बड़े मंदिर और स्मारक बनाकर भी गुमनामी के अंधेरे में छिपे रह जाते हैं....फोटो- शिव मंदिर मल्हार, गुगल से..)


पत्थर-पत्थर बोल रहा है, मन की आंखें खोल रहा है
तेरे श्रम का हर-एक पल, इतिहास बन बोल रहा है.....

हर मंदिर का देव तुम्हारे, श्रम को शीश झुकाता है
चट्टानों से सृजित होकर, जो अब पूजा जाता है
तेरी महिमा गा-गा कर, शिखर क्षितिज पर डोल रहा है....

नृत्य करती अप्सराएं, या दनुज और दानव हो
तांडव करता कोई भयंकर, या साधारण मानव हो
तेरे हाथों जीवन पाकर, समय-चक्र को तौल रहा है....

शिलालेख पर नाम तुम्हारा, कभी कहीं दिखता नहीं
तेरी कल्पना की गाथाएं, कोई कभी लिखता नहीं
पर पुरातत्व का भेद समझने, आज इसे टटोल रहा है....

सुशील भोले 
54-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

Tuesday 4 March 2014

गंगा मैय्या झलमला...

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में शामिल जिला बालोद स्थित गंगा मैय्या मंदिर परिसर, झलमला में कवि मित्र पुस्कर राज के साथ मैं सुशील भोले...