Wednesday 5 March 2014

पत्थर-पत्थर बोल रहा है....

(यह गीत उन अनाम कलाकारों को समर्पित है, जो बड़े-बड़े मंदिर और स्मारक बनाकर भी गुमनामी के अंधेरे में छिपे रह जाते हैं....फोटो- शिव मंदिर मल्हार, गुगल से..)


पत्थर-पत्थर बोल रहा है, मन की आंखें खोल रहा है
तेरे श्रम का हर-एक पल, इतिहास बन बोल रहा है.....

हर मंदिर का देव तुम्हारे, श्रम को शीश झुकाता है
चट्टानों से सृजित होकर, जो अब पूजा जाता है
तेरी महिमा गा-गा कर, शिखर क्षितिज पर डोल रहा है....

नृत्य करती अप्सराएं, या दनुज और दानव हो
तांडव करता कोई भयंकर, या साधारण मानव हो
तेरे हाथों जीवन पाकर, समय-चक्र को तौल रहा है....

शिलालेख पर नाम तुम्हारा, कभी कहीं दिखता नहीं
तेरी कल्पना की गाथाएं, कोई कभी लिखता नहीं
पर पुरातत्व का भेद समझने, आज इसे टटोल रहा है....

सुशील भोले 
54-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

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