Wednesday 30 April 2014

पारंपरिक खेल

गोटा
हमारे यहां अनेक प्रकार के पारंपरिक खेल प्रचलित हैं। इन खेलों की विशेषता यह है कि इसमें धन का अपव्यय नहीं होता। बच्चे इसे अपने आप-पास के साधनों से सहज रूप से प्रप्त कर लेते हैं। आज के इस महंगाई के इस दौर में एेसे पारंपरिक खेलों के प्रति बच्चों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

भटकुल

पिट्टुल

भौंरा

बांटी

गिल्ली-डंडा

फोदा

बांटी





Monday 28 April 2014

घर म घलो आन होगेंव...

(किन्नर समुदाय के पीड़ादायी जीवन पर आधारित छत्तीसगढ़ी गीत..फोटो-वीना सेन्दरे)


















घर म रहिके घलो मैं बिरान होगेंव
कइसे बहिनी-भाई बर घलो आन होगेंव....

एके पेंड़ के डारा हम आन सबो झन
लइकई म होवय सबके एके कस जतन
फेर उमर के खसलते अनजान होगेंव.....

अब जिनगी बनगे हे, पीरा के खजाना
ककरो मिलथे गारी त कोनो देथे ताना
सबके गोठ के सुनई म हलाकान होगेंव....

न कोनो देवय रोजी, न कोनो रोजगार
मोर जिनगी के डोंगा खड़े हे मंजधार
फोकटे-फोकट फेर कइसे शैतान होगेंव....

न मोर लोग हे, न कोनो हवय लगवार
जिनगी बनही तब कइसे मोरो चतवार
गुन-गुन के बुढ़ापा ल परेशान होगेंव....

सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर,
(टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
ब्लाग -  http://mayarumati.blogspot.in/
ईमेल -  kavisushilbhole@gmail.com

किन्नरों के संसार में ...


बांये से- विकास राजपूत, रवीना, वीना और लेखक-सुशील भोले 

बांये से- डा. हीरक डे, लेखक सुशील भोले और हैली नायक 

वीना

विकास राजपूत

रवीना

डा. हीरक डे

हैली नायक

* सुशील भोले 
दुनिया का हर जीव किसी न किसी के सानिध्य में रहना स्वीकार करता है, यही सानिध्यता उसे परिवार और फिर परिवार से समाज निर्माण में सहायक होती है। हमारे इस समाज का एक अंग किन्नर समुदाय भी है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में तृतीय लिंग के रूप में मान्यता दी है। यह तृतीय लिंग जिसे हम हिजड़ा, किन्नर, उभय लिंगी, ख्वाजासरा, पावैया, मेहला व कोती आदि नामों से भी जानते हैं।
यह समुदाय विभिन्न कलात्मक प्रतिभाओं के साथ ही साथ शैक्षिक गुणों से भी संपन्न है, इसके बावजूद ये अपनी पहचान और समाज की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए तरस रहा है। हमने इनके संसार में जाकर कुछ खोजबीन करने का प्रयास किया तो मालूम हुआ कि ये हर प्रकार की प्रतिभाओं से कितने संपन्न हैं। निश्चित रूप से इनकी प्रतिभाओं का उपयोग समाज और देश हित में लिया जाना चाहिए।
अपने समुदाय के लिए समर्पित भाव से कार्यरत छत्तीसगढ़ मितवा संकल्प समिति के अध्यक्ष विकास राजपूत, सचिव वीना सेन्दरे, प्रवक्ता रवीना बरिहा, सौंदर्य विशेषज्ञ ट्रांस जेंडर डॉ. हीरक दे और हैली नायक से एक मुलाकात...

समलैगिक नहीं है किन्नर समुदाय

किन्नर समुदाय को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीसरी लिंग के रूप में पहचान मिल जाने पर इस समुदाय के सदस्य जहां बेहद खुश है, वहीं इनका यह भी कहना है कि इन्हें समलैंगिक नहीं कहा जाना चाहिए। ये कहते हैं कि हालांकि हम सामूहिक रूप से एक साथ रहते हैं, एक छत के नीचे भी रहते हैं, इसके बावजूद हमारा कोई यौनिक संबंध नहीं होता।
सौंदर्य विशेषज्ञ ट्रांस जेंडर डॉ. हीरक डे का कहना है कि यौन संबंध के लिए दो विपरित लिंगों का होना आवश्यक है, जबकि हमारे वर्ग के सभी लोग मानसिक तौर पर स्त्री होती हैं तो ऐसे में यौन संबंध होना कैसे संभव है।
इस प्रश्न पर कि आजकल दो पुरूष या दो महिलाओं के आपस में विवाह कर लेने की खबरें आने लगी हैं, ऐसे में दो किन्नर आपस में समलैंगिक क्यों नहीं हो सकते? डॉ. हीरक का कहना है कि ऐसे तमाम जोड़ों में उनकी मानसिक दशा दो अलग-अलग होती है। दो पुरूषों के बीच अगर ऐसा संबंध बनता है, तो निश्चित रूप से उनमें से एक की मनोदशा स्त्री की होगी। इसी तरह जो दो महिलाएं आपस में विवाह कर लेती हैं उनमें से किसी एक की मानसिक प्रवृत्ति पुरूषों जैसी होगी। जबकि हमारे किन्नर समुदाय के तमाम लोगों की मानसिक दशा केवल स्त्री की होती है। इसलिए हमें समलैंगिक नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि बाहर से शरीर का आकार-प्रकार चाहे जिस तरह का दिखता हो, लेकिन अंदर में उनकी जो मनोदशा होती है, यौनिकता के लिए वह जिम्मेदार होती है।
छत्तीसगढ़ मितवा संकल्प समिति की प्रवक्ता रवीना बारिक का कहना है कि समलैंगिकता विदेशों से आया हुआ शब्द और संस्कृति है, यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। उनका यह भी कहना है कि हमारे यहां भी अब ऐसा दृश्य यदा-कदा दिखने लगा है, कई जेलों में एक साथ रहने वाले पुरूष कैदी आपस में यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं। लेकिन यह केवल परिस्थितिवश होता है, ऐसा संबंध स्थायी तौर पर टिकाऊ नहीं होता।
संस्था के अध्यक्ष विकास राजपूत का कहना है कि हम समलैंगिक होने की बात को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते। अब तो इस देश की सर्वोच्च न्यायालय ने हमें 'थर्ड जेंडरÓ के रूप में स्वतंत्र पहचान दे दी है तो फिर हमें किसी और चश्मे से देखने की आवश्यकता ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का जो फैसला आया है, उसमें उनकी समिति की महत्वपूर्ण भूमिका है।
विकास राजपूत ने बताया कि थर्ड जेंडर के लिए छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली आदि चार राज्यों में जनसुनवाई हुई थी, जिसके आधार पर हमने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण में अगस्त 2012 में जनहित याचिका दायक की थी और उसी का सुखद परिणाम है कि आज हमारे पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है।
मितवा संकल्प समिति की सचिव लीना सेन्दरे ने कहा कि समाज के नजरिये को बदलने की आवश्यकता है। वह हमें समझे और हमें स्वीकार करे। हम भी अपनी प्रतिभा के माध्यम से अनेक जनहितकारी कार्य कर सकती हैं। साथ ही आर्थिक तौर पर भी हम स्वतंत्र रूप से अपने पैरों पर खड़ा हो सकती है, हमें अवसर दिया जाए।
इस समुदाय के सदस्यों को आर्थिक तौर पर अपने पैरों पर खड़ा करने की बात पर डॉ. हीरक डे ने कहा कि सबसे पहले तो जो लोग इधर-उधर ताली बजाकर और बेहूदे हरकत कर लोग से दान या भीख मांगती हैं, उन पर रोक लगाया जाए। क्योंकि उन कुछ लोगों के कारण हमारा पूरा समुदाय उपहास और गलत नजरिये का शिकार बनता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस समुदाय के सदस्यों को विभिन्न प्रकार के रोजगारों से जोड़कर उन्हें स्वतंत्र रूप से आर्थिक स्वावलंबन प्रदान किया जाए। इस समुदाय के सदस्य विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं से संपन्न होती है। उन्हें उस प्रतिभा के अनुरूप कार्य दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अभी जो ओबीसी के तहत आरक्षण देने की बात कही है, उसे कड़ाई के साथ लागू कर इन लोगों को रोजगार मूलक कार्यों से जोड़ा जाए।
ब्यूटीशियन का काम करने वाली हैली नायक ने बताया कि वह भी आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है। समलैंगिकता के संबंध में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में उसका कहना है कि वह किसी पुरूष से ही शादी करना चाहती है। उसने कहा कि भले ही उसका शारीरिक बनावट पुरूषों के जैसा दिखता है, लेकिन उसकी मानसिक दशा पूरी तरह से एक स्त्री के जैसा ही है। बचपन से ही उसके मन में नारी के बजाय पुरूषों के प्रति आकर्षण रहा है।
पुरूषों के समान शारीरिक बनावट होने के बावजूद उन्हें तीसरी लिंग के रूप में पहचाने जाने या अहसास होने संबंधी प्रश्न के जवाब में रवीना का कहना है कि जिन लोगों को लिंग संबंधी पहचान होती है वह बच्चे के पांचवें-छठवें वर्ष की अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते इसे परख लेता है। बच्चे का हाव-भाव उसका व्यवहार यदि बाहर से दिख रहे लिंग के अनुसार नहीं है, तो इस स्थिति में वह तृतीय लिंग के रूप में चिन्हित हो जाता है, और इसी के उसके साथ भेदभाव और उपेक्षापूर्ण व्यवहार भी प्रारंभ हो जाता है, जो जीवन के अंतिम समय तक जारी रहता है।
विकास राजपूत का कहना है कि हमने मितवा नामक जिस समिति का निर्माण सन् 2009 में किया है, उसका सूत्र वाक्य ही 'सम्मान, संयम और संघर्षÓ है, जिसे ऐसी ही परिस्थितियों को ध्यान में रखकर रखा गया है और हम अपने इस सूत्रवार की दिशा में निरंतर अग्रसर हैं।
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आपको क्या कहें ...? 

मेरे इस प्रश्न पर कि मैं आपको क्या कहकर संबोधित करूं... सर कहूं, मैडम कहूं या और कुछ कहूं विकास राजपूत ने पहने गए कपड़ों (स्त्री या पुरूष वेश) के आधार पर संबोधित करने की बात कही। वहीं डॉ. हीरक ने कहा कि हमारे सामुदाय के लोगों को स्त्रीलिंग शब्दों के साथ संबोधित किया जाना चाहिए, क्योंकि हम अपने आपको स्त्री ही समझते हैं। मेरे इस कथन पर कि आप लोगों की तीसरी पहचान बन चुकी है, तो संबोधन के लिए भी कोई तीसरा शब्द प्रयोग में लाया जाना चाहिए, इन लोगों ने इस पर विचार करने की बात कही।

जेंडर ट्रांस प्लांट आसान हो 

डॉ. हीरक का यह कहना है कि चूंकि हम लोग अपने आपको एक स्त्री समझते हैं, और उसी की तरह जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, इसलिए हमें जेंडर ट्रांस प्लांट करने के लिए कानूनी अधिकार के साथ ही साथ अन्य सुविधा भी आसानी के साथ उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उनका कहना है कि इससे हमें एक स्त्री की तरह जीवन जीने में आसानी होगी, साथ ही हमारे यौनिक साथी को यौन संतुष्टि भी प्राप्त होगी।

प्रतिभा का उपयोग हो ...

मितवा समिति की रवीना चाहती है कि उनके अंदर जो विविध प्रकार की प्रतिभाएं भरी पड़ी हंै, उनका इस्तेमाल समाज और राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए। इससे हमें भी समाज की मुख्यधारा में जुडऩे में आसानी होगी। उनका कहना है कि उनके समुदाय के सदस्यों में न सिर्फ नाचने-गाने की अपितु फैशन डिजाइनिंग, सौंदर्य विशेषज्ञता के साथ ही साथ शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में भी महारत हासिल है, जिसका समाज हित में उपयोग किया जाना चाहिए।

सामाजिक नजरिये में बदलाव हो 

वीना सामाजिक नजरिये में बदलाव चाहती है। उनका कहना है कि हमारी पहचान हमारी प्रतिभा और योग्यता के बल पर आंका जाना  चाहिए न कि हमारे शरीर की कमियों के आधार पर। उनका यह भी कहना है कि उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए।

आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाए

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अब हमें ओबीसी की तरह नौकरी आदि में आरक्षण दिया जाएगा, तब हमारे मन में यह उम्मीद जगना स्वाभाविक है कि हमें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। यह कहना है ब्युटिशियन का काम करने वाली हैली का। उनका कहना है कि तीसरी लिंग के सदस्यों को भीख या दान के सहारे जीने पर मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, अपितु रोजगार के विभिन्न मार्गों का सृजन किया जाना चाहिए।

हमें इसी रूप में स्वीकारा जाए 

मितवा संकल्प समिति के अध्यक्ष विकास राजपूत चाहती है कि उन्हें उनके घर-परिवार वालों के साथ ही साथ समूचा समाज उनके इसी रूप में स्वीकार करे। वह हमें पुरूषों की तरह दिखने या पहनने-ओढऩे के लिए विवश न करे। क्योंकि हमारा शारीरिक रूप चाहे जैसा भी दिखता है, किंतु हमारी आत्मा स्त्री की है, इसलिए हमें स्त्री की तरह साज-श्रृंगार और कपड़े पहनने दिया जाए।

अहसास कब होता है...? 

जेंडर के संबंध में जानकारी रखने वाले लोग बच्चा जब 5-6 वर्ष का होता है, तभी उसके हाव-भाव और व्यवहार से समझ जाते हैं कि हम तीसरी लिंगी हैं। लेकिन हमें इसका अहसास किशोरावस्था के पूर्व होता है, जब हमारे अंदर यौनाकर्षण उत्पन्न होने लगता है।
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यौनिकता और समलैंगिक समुदाय 

प्रकृति ने तीसरे लिंग में उन सभी सकारात्मक गुणों को समावेशित किया है जो स्त्री-पुरूष में भी एक साथ नहीं मिलते। इस महासमुद्र में जहां साहस, परिश्रम और स्पष्टवादिता की धाराएं मिलती हैं वहीं सरलता, कोमलता और करूणा की बारिश भी होती है। यह बहुत जरूरी है कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जाए ताकि इस वसुंधरा को समृद्ध बनाने में अपना योगदान बराबरी के साथ दे सकें। समता महिला मंडल ने इसे निम्न प्रश्नोत्तरी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है-

0 यौन उन्मुखीकरण क्या है?
 यौन उन्मुखीकरण एक विशेष लिंग वाले व्यक्ति के प्रति एक प्यार भरा यौनिक आकर्षण होता है। इस आकर्षण के साथ भावना, सहिष्णुता व सृजनात्मक जैसे मूल्य जुड़े हुए होते हैं।

0 क्या लिंग से ही यौनिकता निर्धारित हो सकती है?
 लिंग से ही यौनिकता का पता नहीं चलता। यौनिकता का पता तीन चीजों से चलता (क) किसी विशेष लिंग वाले व्यक्ति के प्रति प्यार भरा यौनिक आकर्षण (ख) खुद में पुरूष या महिला होने का अहसास (ग) समाज में अपनी भावना के अनुरूप व्यवहार प्रदर्शन।
यदि लिंग पुरूष का है पर मन में अहसास स्त्री होने का है तथा उसका व्यवहार स्त्रियों के जैसा है तो वह विषमलैंगिक नहीं होगा।

0 कितने प्रकार का यौन उन्मुखीकरण होता है?
 सामान्य तौर पर तीन प्रकार से यौन उन्मुखीकरण होते हैं-
1. समलैंगिक- इसके अंतर्गत अपने ही लिंग के व्यक्ति के साथ आकर्षण व यौन व्यवहार होता है।
2. विषम लैंगिक- इसमें विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ आकर्षण व यौन व्यवहार होता है।
3. उभयलैंगिक- इसमें दोनों लिंग के व्यक्ति के साथ आकर्षण व यौन व्यवहार होता है।

0 किसी में विशेष यौनिकता होने के क्या कारण होते हैं?
 वैज्ञानिकों द्वारा विशेष यौनिकता के कारणों को खोजा जा रहा है। समय-समय पर वैज्ञानिकों द्वारा कई शोध पत्र प्रकाशित होते रहते हैंं। इसमें दो प्रमुख कारण हमें ज्ञात हो पाया है।
1. हमारी अनुवांशिक संरचना के कारण हमारा यौन व्यवहार अलग-अलग होता है।
2. हमारे बचपन के अनुभव भी हमारे विशेष यौन उन्मुखीकरण के कारण होता है।

0 अपनी यौनिकता का कब पता चलता है?
 हमें अपनी विशेष यौनिकता का पता किशोरावस्था के पूर्व होने लगता है पर इसका अच्छी (परिपक्व) समझ युवावस्था तथा उस विशेष यौनिकता से जुड़े लोगों से मिलने के बाद पता चलता है।

0 क्या सेक्स केवल संतानोपत्ति का ही साधन है?
 समाज का एक वर्ग सेक्स को केवल संतानोपत्ति का ही साधन मानते हैं पर एक दूसरा बड़ा वर्ग सेक्स को आनंद प्राप्ति का ही साधन मानते हैं। वात्सायन के कामसूत्र में वर्णित विभिन्न आसन व सेक्स में आजकल हो रहे विभिन्न प्रयोगों को आधुनिक समाज स्वीकार करता है। सेक्स के दायरे में दर्शन (देखना), स्पर्श (छूना), चुम्बन (चूमना) और कल्पना को भी शामिल किया गया है।

0 क्या समलैंगिता मानसिक व भावनात्मक बीमारी है?
 नहीं, मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक इस बात से सहमत हैं कि समलैंगिता कोई मानसिक व भावनात्मक बीमारी नहीं है। 35 वर्षों के गहन अनुसंधान के बाद वर्ष 1973 में अमरीकन मनोरोग एसोसिएशन ने समलैंगिता को मनोरोग की सूची से हटा दिया है।

0 क्या पुरूष से पुरूष का संबंध हमारी संस्कृति के लिए घातक नहीं है?
इस प्रश्न में विरोधाभास है। वास्तव में समलैंगिक संबंध में दो पुरूष नहीं होते, वहां एक स्त्री व एक पुरूष ही होता है। थर्ड जेंडर (किन्नर व अन्य) की आत्मा तो स्त्री का होता है पर प्राकृतिक कारणों से उसे पुरूष का शरीर मिला होता है। यदि मानसिक आंखों से इस संबंध को समझें तो हमारी धारणा बदल जाएगी।

0 क्या थर्ड जेंडर के लोग अश्लील होते हैं? 
 नहीं यह गलत धारणा है। 80 प्रतिशत इस समुदाय के लोग तो खुद को छुपाकर जिंदगी जीते हैं। मित्र श्रृंगार संगठन के सर्वे के मुताबिक समुदाय के आधे से अधिक लोगों को अपनी इच्छा के विरूद्ध एक स्त्री से विवाह करना पड़ता है और घुट-घुटकर जिंदगी बितानी पड़ती है। कई लोग बचपन में समलैंगिक हिंसा के बार-बार शिकार होते हैं व बचपन में गलत संगति में पड़ जाते हैं उनका बाद में व्यवहार थोड़ा नकारात्मक हो जाता है पर उन्हें प्यार से हम एक सभ्य नागरिक बना सकते हैं।

0 समलैंगिक तनाव में क्यों जीते हैं?
 समलैंगिक तनाव में इसलिए जीते हैं क्योंकि उन्हें हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि यदि वह अपनी पहचान जाहिर करता है तो उसके प्रति लोगों की धारणा नकारात्मक हो सकती है। उसे डर लगा रहता है कि वो कहीं पहचान के कारण परिवार, समाज, दोस्त, साथी कार्यकर्ता व धार्मिक संस्थानों से उपेक्षित न कर दिया जाएगा तथा लोगों के लिए कौतुहल का केन्द्र न बन जाए।

0 समलैंगिक के प्रति लोगों की धारणा नकारात्मक क्यों है?
 लिंग पहचान और यौनिकता पर कम समझ होने के कारण लोगों की धारणा समलैंगिकों के प्रति नकारात्मक होती है। हम ज्ञान के एक विशेष दायरे में रहते हैं जब इस दायरे से बाहर कुछ विशेष चीज देखते हैं तो हम उसे गड़बड़ी मान लेते हैं। यह बिल्कुल ऐसा है जैसे किसी रशियन परिवार में काले बाल का बच्चा जन्म ले और परिवार के लोग इसे अज्ञानता वश गड़बड़ी मान लें। चूंकि अधिकतर लोग विषमलैंगिक होते हैं अत: इस यौनिकता के दायरे के बाहर दूसरी यौनिकता को स्वीकार करने में थोड़ा असहज महसूस करते हैं।

0 समलैंगिकों की यौनिकता में भावनात्मक जुड़ाव कितना होता है?
 समलैंगिकों में अपने साथी के प्रति भावनात्मक जुड़ाव बहुत ज्यादा होता है। शुरूआती दौर में वे अपने साथी के प्रति बहुत समर्पित होते हैं, लेकिन सामाजिक दबाव व समलैंगिकता को मान्यता नहीं मिलने के कारण उन्हें अपने प्रेम संबंधों को बीच में तोडऩा पड़ता है जिसका उनके मन में बहुत गहरा असर होता है।

0 क्या समलैंगिकता पर ऐतिहासिक व वैज्ञानिक प्रमाण है?
 वात्सायन के कामसूत्र में समलैंगिकों को तृतीय प्रकृति कहा गया है। इसी तरह खजुराहों व कोणार्क के मंदिरों में अनेक समलैंगिक मूर्तियां है। प्रसिद्ध जीवनशास्त्री जॉन रोघ गार्डन (कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी) ने 1979 में 'डाइवरसिटी, जेंडर सेक्सूआलिटी इन नेचर व पीपुलÓ नामक शोधपत्र में कई समलैंगिक जंतुओं का उल्लेख किया गया है। उन्होंने हिरण, मछली, छिपकली और गौरेय्या में होने वाले समलैंगिक व्यवहार का भी उल्लेख किया है।

0 क्या समलैंगिकता को प्रयास पूर्वक बदला जा सकता है?
 समलैंगिकता को हम इस तरह से समझाते हैं कि जैसे कोई 100 में से 5 व्यक्ति लोग बाएं हाथ से काम करते हैं। बचपन में इन्हें कहा जाता था कि ये गलत हाथ का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे बच्चों को सजा दे-देकर दाएं हाथ का इस्तेमाल करना सिखाया जाता था लेकिन ये बड़े होते-होते ये बच्चे इस्तेमाल को बायां हाथ ही करते हैं क्योंकि यही स्वाभाविक है। इसी तरह ही समलैंगिकता भी है।

0 क्या समलैंगिक संबोधन उचित है?
 नहीं, कोई भी वर्ग या समुदाय नहीं चाहता कि उसका उसके यौन व्यवहार से जुड़ा हुआ उसका संबोधन हो। समलैंगिकों के लिए कई सकारात्मक संबोधन भी हंै जैसे कोथी, सखी, गुड़ या मीता, किन्नर आदि। समलैंगिकता कोई जातिबोधक संबोधन नहीं है यह एक प्रवृत्ति है। जेल व सेनाओं में भी परिस्थितिवश समलैंगिक संबंध की बातें सुनते हैं। थर्ड जेंडर एक स्वीकृत और सकारात्मक संबोधन है।

0 समलैंगिकता और एचआईवी-एड्स में क्या संबंध है?
 समलैंगिकों में एचआईवी होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि (क) विवाह (सुरक्षित यौन संबंध) की व्यवस्था नहीं होती (ख) नियमित व वफादार यौन साथी नहीं होते (ग) गुदा मैथुन में कटने छीलने की संभावना ज्यादा होती है (घ) बचपन में समलैंगिक हिंसा (ड) अकेलेपन या उत्तेजक माहौल में शामिल होते हैं।

0 तो क्या समलैंगिकों को अपना मनोभाव दबाकर रखना चाहिए?
 नहीं, यदि वे अपने मनोभाव को दबाकर रखेंगे तो मानसिक अवसाद में जा सकते हैं। अत: उनका खुलकर सामने आना जरुरी है ताकि उनका मानसिक संतुलन ठीक रहे। चूंकि समाज में इनके यौनिकता को मान्यता नहीं मिली है अत: ऐसा क्लब का निर्माण बहुत जरुरी जहां ये कुछ देर के लिए अपने सच्चे व्यक्तित्व के साथ जी सकें।
0 समाज में समलैंगिकों के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव कैसे कम किया जाए?
 भेदभाव व पूर्वाग्रह को जागरूकता के माध्यम से खत्म कर सकता है। जागरूकता के दो तरीके हो सकते- (क) पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को जोड़ा जाए। (ख) बौद्धिक साधनों जैसे मीडिया, पुस्तक, परिचर्चा, नाटक के माध्यम को अपनाया जाए।
समलैंगिकों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोग वे हैं जो इस समुदाय के सतत संपर्क में रहते हैं व उन्हें बहुत अच्छे समझते हैं। वहीं समलैंगिकों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले वे लोग हैं जो सतही तौर पर उन्हें बिल्कुल नहीं जानते या उस वर्ग के लोग हैं जो समलैंगिकों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित है।

0 समलैंगिकों में जोखिम व्यवहार को कैसे कम किया जाए?
 इसके लिए हम निम्न तरीकों को अपना सकते हैं - (क) सुरक्षित यौन संबंध (विवाह) की व्यवस्था हो (ख) जागरूकता अभियान चलाया जाए (ग) रचनात्मक कार्यों में मन को लगाया जाए (घ) समुदाय के लोगों की शिक्षा स्तर को बढ़ाया जाए (ड) स्कूल व परिवार में काउंसिलिंग की उचित व्यवस्था हो (च) उत्तेजक माहौल व अकेलेपन से बचाया जाए।

0 किन्नर समुदाय के लोगों की हरकतें आपत्तिजनक क्यों होती है?
 मनोवैज्ञानिक सिंगमड फ्रायड के अनुसार हम जिस लिंग के होते हैं उसे अपने व्यवहार के माध्यम से प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति होती है। यह एक प्राकृतिक प्रवृत्ति है। इसी मानसिक प्रवृत्ति के चलते समाज में विभिन्न लिंगों के अलग-अलग वेशभूषा व आचार-विचार निर्धारित किया गया है। लिंग परिचय व्यवस्था होने के कारण स्त्री-पुरूष का लिंग परिचय व्यवहार नियंत्रित होता है। थर्ड जेंडर लिंग परिचय व्यवहार के प्रदर्शन की कोई व्यवस्था नहीं होती उन्हें मजबूरन पुरूष व्यवहार करने के लिए बाध्य किया जाता है। अत: वे अपने कुछ विशेष तरीकों द्वारा अपने लिंग परिचय व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं।

 सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

देखिये.. इतवारी अखबार में मेरा लेख.. कवर स्टोरी- किन्नरों के संसार में ... 
http://www.itwariakhbar.com/news.asp?pagenum=7&issueno=0

Sunday 27 April 2014

अक्ती : पुतरा-पुतरी के बिहाव...

बाजार में पुतरा-पुतरी बेचती एक लड़की

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को छत्तीसगढ़ में अक्ती के नाम से जाना जाता है। इसे हिन्दी भाषी इलाकों में अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि को शुभ मानकर देश के कई भागों में इस दिन बड़े पैमाने पर शादी-व्याह और अन्य मांगलिक कार्य किये जाते हैं। हमारे यहां इस दिन पुतरा-पुतरी (गुड्डे-गुडिय़ा) का विवाह बच्चों के द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ किया जाता है।

पुतरा-पुतरी विवाह करती लड़कियां
 बाजे-गाजे के साथ चुलमाटी के लिए जाती बच्चियाँ
छत्तीसगढ़ में इस दिन को कृषि के नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गांव के सभी किसान अपने-अपने घरों से धान लेकर एक जगह एकत्रित होते हैं, फिर उसे कोई एक सिद्ध व्यक्ति, जिसे यहां की भाषा में बैगा कहा जाता है, एक साथ मिलाकर उसे मंत्रों से  अभिमंत्रित करता है। और फिर उसे सभी ग्रामवायिों में वितरित कर देता है। गांव वाले इसी धान को लेकर अपने-अपने खेतों में जाते हैं और उसकी बुवाई करते हैं।  जिन गांवों में बैगा के द्वारा अभिमंत्रित नहीं किया जाता उन गांवों में किसान बोआई के लिए संग्रहित धान को एक टोकरी में लेकर जाता है, और अपने कुल देवता सहित अन्य ग्राम्य देवताओं में चढ़ाकर बाकी धान की रोपाई अपने खेत में कर देता है।
टिकावन के लिए पुतरा-पुतरी की सुवासिन बनी लड़की

सुशील भोले 
 संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
 ई-मेल -  sushilbhole2@gmail.com
 मो.नं. 080853-05931, 098269-92811

Wednesday 23 April 2014

भारत भास्कर अवार्ड 2014 प्रदत्त...

रायपुर के सिविल लाईन स्थित वृंदावन हाल में 23 अप्रैल की संध्या भारत भास्कर अवार्ड प्रदान किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार विश्वरंजन एवं गिरिश पंकज के आतिथ्य में पत्रकारिता के लिए पत्रकार स्व. देवेन्द्र कर की स्मृति में वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर प्रसाद शर्मा "नीरव", फ़ोटो जर्नलिज़्म के लिए स्वर्गीय एस. अहमद की स्मृति में वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट विनय शर्मा, फिल्म और रंगमंच का अवार्ड स्व. हबीब तनवीर की स्मृति में वरिष्ठ निर्देशक जलील रिज़वी, कला के लिए स्व. कुलदीप निगम की स्मृति में छत्तीसगढ़ के इकलौते पपेटियर विभाष उपाध्याय, छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए स्व. हरि ठाकुर स्मृति छत्तीसगढ़ी साहित्य अवार्ड सुशील भोले ( kavisushil.bhole ) को, समाज सेवा के लिए बढ़ते कदम के संस्थापक स्वर्गीय अनिल गुरुबक्षाणी की स्मृति अवार्ड फैज़ खान को, संगीत के लिए संगीतज्ञ स्व. अनिता सेन की स्मृति में शरद अग्रवाल को, कला और अभिनय के लिए पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म के निर्माता स्व. विजय पाण्डे की स्मृति में वरिष्ठ कलाकार शिवकुमार दीपक को, इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए इ. टी. वी. के कैमरामेन स्व. संजय दास की स्मृति में माधवी श्रीवास को और खेल विधा के लिए स्व. विजय हिन्दुस्तानी की स्मृति में फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सुप्रिया कुकरेती को प्रदान किया गया।




 दो मिनट में आप भी यूट्यूब पर देखें
"दैनिक भारत -भास्कर अवॉर्ड"
https://www.youtube.com/watch?v=gJ2frmn6cN4



Friday 18 April 2014

बाय होगे जी...















टोपी लगाथे अउ झंडा हलाथे, बड़ा बाय होगे जी
अरे बाय होगे जी, टूरा लेडग़ा ल जाने काय होगे...

संसद के रस्ता अब सबला सुहाथे
लुड़ू-बुचु सबो झन उही तनी जाथे
सिधवा बर छेंका अउ ठगुवा बर झांय होगे जी...

जनता के सेवा अब चुल्हा म चल दिस
जेने बनीस संगी, उही ल हुदर दिस
अब बदला भंजाय के, ये तो उपाय होगे जी...

मोर खेदू-बिसाहू मन उमियाय परे हें
ये पैडगरी रद्दा ल कबिया के धरे हें
बिच्छल हे भुइयां, तभो उंकर बर ठांय होगे जी...

 सुशील भोले 
 संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
 ई-मेल -  sushilbhole2@gmail.com
 मो.नं. 080853-05931, 098269-92811

Friday 11 April 2014

भारत-भास्कर अवार्ड 2014



मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छ्त्तीसगढ़ से प्रकाशित दैनिक "भारत-भास्कर" की ओर से साहित्य के क्षेत्र में रचनात्मक योगदान के लिए भारत-भास्कर एवार्ड-2014 छत्तीसगढ़ के चर्चित कवि संजय अलंग Sanjay Alung को वरिष्ठ साहित्यकार और पूर्व डीजीपी, छत्तीसगढ़ विश्वरंजन Vishwa Ranjan जी के मुख्य आतिथ्य में दिया जायेगा।
इसी क्रम में पत्रकारिता हेतु श्री जयशंकर प्रसाद "नीरव", फोटो जर्नलिज़्म के लिए श्री विनय शर्मा, छत्तीसगढ़ की पहली वीडियो फिल्म के निर्माता और वरिष्ठ रंगकर्मी श्री जलील रिज़वी, बाल कलाकारों और मुखौटों के माध्यम से बाल कलाकारों के बीच सक्रिय श्री विभाष उपाध्याय, छत्तीसगढ़ी साहित्य के लिए श्री सुशील भोले (Kavi Sushil Bhole) रायपुर, समाज सेवा के लिए गौ सेवक फैज़ खान, संगीत के लिए 23 साल से मुकेश को गाने वाले शरद अग्रवाल और अभिनय के लिए श्री शिवकुमार दीपक जी को भी यह अवार्ड दिये जा रहे हैं ।
सिविल लाईन, रायपुर स्थित वृंदावन सभागार में 23 अप्रैल 2014 को संध्या 6 बजे से आयोजित इस गरिमामय कार्यक्रम में आप सब सादर आमंत्रित हैं....

Tuesday 8 April 2014

फोटो तकनीक और सुशील भोले..

 झलमला, बालोद के मित्र मुकेश सिंह राजपूत के मोबाइल फोटो तकनीक के माध्यम से... मेरे ये फोटो...









Monday 7 April 2014

जंवारा विसर्जन....

छत्तीसगढ़ में नवरात्र के अवसर पर माता जी की नौ दिनों तक पूजा-उपासना कर अंतिम दिन जंवारा विसर्जन करने की परंपरा है...आज सुबह से ही रायपुर के विभिन्न स्थनों से जंवारा के साथ ही बाना-सांग उठाये भक्तों की टोली देखने मिल रही है.....


Sunday 6 April 2014

रामफल...



यह रामफल है। अभी पिछले रविवार को मैं गांव गया था, तो अचानक बाड़ी में रामफल को देखकर उसे कैमरे में कैद कर लिया। मित्रों, हमारे यहां एक सीताफल भी होता है, उस फल का बाहरी आवरण दानेदार होता है, लेकिन रामफल का बाहरी आवरण चिकना होता है, बेल की तरह। बाकी पेड़, पत्ता और फल के अंदर का बीज लगभग एक जैसा होता है।
रामफल मीठा, खट्ठा और कषैला होता है। रामफल खून के दोषों को दूर करने वाला, कफ-वात का बढ़ाने वाला, जलनकारी, प्यास लगाने वाला, पित्त को कम करने वाला और संकोचक है। रामफल के फल का रस भारी तथा कीटाणु को मारने वाला है। अतिसार रोग तथा पेचिश के रोग में इसके रस को पिलाने से बहुत लाभ मिलता है। इसके फल को खाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। रामफल की जड़ को अपस्मार (मिर्गी) से पीड़ित व्यक्ति को सुंघाने पर रोगी के मिर्गी का दौड़ा पड़ना रुक जाता है। रामफल की छाल एक प्रभावशाली संकोचक (सिकुड़न वाले) पदार्थ होते हैं। 

मतदान अवश्य करें...















मित्रों,
भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और समृद्धि के लिए इस लोकसभा चुनाव में मतदान अवश्य करें।
यदि आप अपने क्षेत्र के किसी भी प्रत्याशी को जन अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं मानते हैं, तो चुनाव आयोग द्वारा प्रदत्त अधिकार *नोटा* (इनमें से कोई नहीं) का प्रयोग करें।
धन्यवाद,
सुशील भोले
रायपुर (छत्तीसगढ़)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Friday 4 April 2014

दलबदलू...


















सब इधर से उधर, अब आ-जा रहे हैं
जिन्हें देते थे गाली, उन्हें गले लगा रहे हैं
नीति और ईमान की, खूब होती थीं बातें
चुनावी-टिकट के लिए सब भुलाये जा रहे हैं
                                                     * सुशील भोले