Thursday 1 May 2014

हमर हाथ हे जबड़ कमइया...

(श्रमिक दिवस पर छत्तीसगढ़ी गीत...)








चिटिक खेत अउ भर्री नहीं, हमला सफ्फो खार चाही
हमर हाथ हे जबड़ कमइया, धरती सरी चतवार चाही...

हमर पेट ह पोचवा हे अउ, तोर कोठी म धान सरत हे
हमरे खातिर तोर गाल ह, बोइर कस बम लाल होवत हे
गाय-गरु कस पसिया नहीं, अब लेवना के लगवार चाही....

तन बर फरिया-चेंदरी नहीं, अउ तैं कहिथस जाड़ भागगे
घर म भूरीभांग नहीं तब, सुख के कइसे उमर बाढग़े
चिरहा कमरा अउ खुमरी नहीं, अब सेटर के भरमार चाही...

ठाढ़ चिरागे दूनों पांव ह, जरत मंझनिया के सेती
हमर देंह ह होगे हे का, कइसे रे तोरेच पुरती
अब बेंवई परत ले साहन नहीं, हमला सुख-सत्कार चाही...

सुन-सुन बोली कान पिरागे, आश्वासन के धार बोहागे
घुड़ुर-घाडऱ लबरा बादर कस, अब तो तोरो दिन सिरागे
हमला आंसू कस बूंद नहीं, अब महानदी कस धार चाही....

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
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