Monday 9 June 2014

गरजत-घुमरत आबे रे बादर...

(गर्मी के तांडव से निजात पाने वर्षा के बादलों को आमंत्रित करता एक छत्तीसगढ़ी गीत....)

गरजत-घुमरत आबे रे बादर, मया-पिरित बरसाबे
मोर धनहा ह आस जोहत हे, नंगत के हरसाबे... रे बादर....

जेठ-बइसाख के हरर-हरर म, धरती ह अगियागे
अंग-अंग ले अगनी निकलत हे, छाती घलो करियागे
आंखी फरकावत झुमरत आके, जिवरा ल जुड़वाबे ... रे बादर..

तरिया-नंदिया अउ डबरी ह, सोक-सोक ले सुखागे हे
कब के छोड़े बिरहिन सही, निच्चट तो अइलागे हे
बाजा घड़कावत आके तैं ह, फेर गाभिन कर देबे ... रे बादर...

जीव-जंतु अउ चिरई-चिरगुन, ताला-बेली होगे हें
तोर अगोरा म बइठे-बइठे, अधमरहा कस होगे हेंं
जिनगी दे बर फिर से तैं ह, अमरित बूंद पियाबे.. रे बादर...

नांगर-बक्खर के साज-संवांगा, कर डारे हावय किसान
खातू पलागे गाड़ा थिरागे, अक्ती म जमवा डारे हे धान
अब तो भइगे आके तैं ह, अरा-ररा करवाबे... रे बादर....

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)


मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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