Sunday 28 September 2014

आके हमर गांव...












तैं झुमर जाबे रे संगी, आके हमर गांव
तोला का-का बतांव, तोला का-का बतांव....
उत्ती म कोल्हान के धारा रेंगत हे
बोहरही दाई जिहां मया बांटत हे
जिहां बिराजे महादेव-ठाकुरदेव के पांव....
चारोंखुंट तरिया अउ डबरी जबड़ हे
लोगन के मया पहुना बर अबड़ हे
मया-भेंट पाबे अउ अंतस म ठांव...
रंग-रंग के भाजी-पाला, आनी-बानी खाई
मुसकेनी, अमारी अउ लम्हरी तोराई
इढऱ के कढ़ी देख, मन होही खांव-खांव...
सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Saturday 27 September 2014

छत्तीसगढ़ी कहानी.. * मन के सुख *


भोला... ए...भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल-जया फेर लुढ़ारत बानी के पूछिस।

भोला कहिस- अंजलि जतका बाहिर म दिखथे न, वोतके भीतरी म घलोक गड़े हावय। एकरे सेती एला नानुक रेटही बरोबर झन समझबे। एकर वीरता, साहस, धैर्य, अउ संघर्ष ह माथ नवाए के लाइक हे, तभे तो सरकार ह नारी शक्ति के पुरस्कार दे खातिर एकर नांव के चिन्हारी करे हे।

-हहो जान डरेंव भोला, फेर सरकार के बुता म तोरो योगदान कमती नइए। आज अंजलि ल जेन सब जानीन-गुनीन, सरकार जगा सम्मान खातिर वोकर नांव पठोइन, सब तोरे सेती तो आय। तैं कहूं वोकर बारे म लिख-लिख के पेपर मन म नइ छपवाए रहिते, त खादन के हीरा कस उहू कोनो मेर लुकाए-तोपाए रहितीस।

-तोर कहना सही हे जया, फेर लिखे-पढ़े वोकरे बारे म जाथे, जेन वोकर योग्य होथे। कोनो भी अयोग्य मनखे खातिर कुछु लिखबे, त एकर ले लेखनी के अपमान होथे, एकर सेती ए कहई ह सही नइए के अंजलि ल नारी शक्ति के पुरस्कार मोर सेती मिल हे। अरे भई मैं वोकर बारे म नइ लिखतेंव त कोनो अउ लिखतीस, आखिर हीरा के चमक अउ फूल के खुशबू ल कोनो रोके-तोपे सकथे का, आज नहीं ते काल वोकर चमक दिखतीस, फेर दिखतीस जरूर।

- एकरे सेती तो मैं तोर मेर केलौली करत हौं, बताना अंजलि के कहिनी ल। जया फेर गोहराइस।

-त कहिनी ल सुन के कइसे करबे?

-  अई कइसे करबो, हमूं मन वोकरे सहीं आत्म निर्भर बने के उदिम करबो। कब तक पर भरोसील रहिबो, अपन जांगर म कमाबो अउ अपन जांगर म खाबो।

भोला ल जया के ए बात अच्छा लागीस।

वो कहीस- मैं चाहथौं जया, के जम्मो नारी परानी मन आत्मनिर्भर बनयं, अपन पांव म खड़ा होवयं। आज हमला जेन नारी शोषण अउ अत्याचार के किस्सा सुने ले मिलथे, वोकर असल कारण आय बेटी मनला पढ़ा-लिखा के आत्मनिर्भर नइ बनाना। मोला समझ म नइ आवय आज के पढ़े लिखे जमाना म घलो पर के धन कहिके वोकर शिक्षा अउ रोजगार खातिर काबर धियान नइ दिए जाय।

भोला लंबा सांस लेवत कहिस- अंजलि संग घलोक तो पहिली अइसने होए रिहीसे। दाई-ददा मन जइसे खेती-मजूरी करइया रिहीन हें तइसने उहू ल बना दिए रिहीन हें। ददा छोटे किसान रिहीसे तेकर सेती वोकर दाई ल घलोक गृहस्थी के गाड़ी तीरे खातिर अपने खेती-किसानी के छोड़े आने बुता करे ले घलो लागय।

- अच्छा आने बुता घलोक करय, कइसन ढंग के। जया अचरज ले पूछ परीस।

भोला कहिस- हां, अपन खेत के बुता ल करे के बाद वोकर दाई ह जंगल ले लकड़ी अउ कांदी-कुसा लान के तीर के शहर में बेचे ले जावय। अइसने वोकर ददा ह खेती के बुता के बाद घर-उर बनाय के ठेका लेवय, कुली-मिस्त्री संग खुदो राजमिस्त्री के बुता करय। अइसन म तैं खुदे सोच सकथस जया तब अंजलि अउ वोकर भाई-बहिनी मन कतका अकन पढ़त रिहीन होहीं?

-अई... अइसन म कोनो कहां पढ़े सकही।

-हां, तैं सही काहत हस जया, चार झन नान-नान भाई बहिनी म सबले बड़े अंजलि भला कइसे पढ़े सकतीस। चौथी तक पढ़े पाइस। तहां ले उहू ह अपन दाई संग जंगल जाए लागिस, लकड़ी अउ कांदी लाने खातिर। अइसने करत-करत सज्ञान होए लागिस त दाई-ददा मन तीर के गांव म वोकर बिहाव घलो कर दिन।

कांचा उमर म भला बिहाव के अरथ ल कोनो कहां जानथें। न बाबू पिला, न छोकरी पिला। एकरे सेती अंजलि ससुरार म तो चल दिस फेर जांवर-जोड़ी के सुख ल नइ जानीस। ठउका बिहाव के होते वोकर जोड़ी ल पढ़ई करे खातिर शहर भेज दिए गीस, अउ अंजलि घर के संगे-संग खेत-खार के बुता म झपो दिए गीस। ए बीच अंजलि ल अपने ससुर के गलत नीयत के तीर घलोक सहे ल परीस एकरे सेती वो ह अपन जोड़ी ल मना-गुना के मइके म आके रेहे लागीस।

दमांद बाबू जब पढ़ लिख के हुसियार होगे त नौकरी करे के उदिम करे लागीस। फेर वोकर दाई-ददा तो निच्चट अड़हा काकर तीर जाके वोकर बारे म गोहरातीस। एकरे सेती वोला अपन ससुर तीर जाए ले कहिस। वोकर ससुर माने अंजलि के ददा ह घलोक पढ़े-लिखे नइ राहय, फेर घर-उर बनाए के ठेक ादारी करत शहर के जम्मो बड़े-बड़े अधिकारी मन संग चिन्हारी कर डारे राहय। अपन इही चिन्हारी के सेती वोकर दमांद ल सरकारी ऑफिस म नौकरी लगवा दिस। अउ अंजलि के अपने ससुर के सेती ससुरार नइ जाए के जिद के सेती दमांद ल घलोक अपने घर राख लेइस।

अपन जोड़ी संग रहे के सुख अंजलि ल जादा दिन नइ मिल पाइस। काबर ते ससुर ऊपर लांछन लगाए के सेती वोहर मने-मन  म तो चिढ़ते राहय ऊप्पन ले शहर म पढ़त खानी उहें के एक झन छोकरी संग वोकर आंखी चार होगे राहय। एकरे सेती जब वो ह नौकरी म परमानेंट होइस, तहां ले ससुराल के घर ल छोड़ के शहर म रेहे लागिस, अउ वो शहरिया छोकरी संग बरे-बिहाव सही बेवहार करे लागिस। अंजलि ए सबला के दिन सहितीस? आखिर वोला मजबूर होके मइके म बइठे बर लागिस।

अब अंजलि ल अपन जिनगी अंधियार बरोबर लागे लागीस, वो सोचिस- सिरिफ भाई-बहिनी मन के सेवा अउ कांदी-लड़की बेच के जिनगी ल पहाए नइ जा सकय, तेकर ले फूफू दीदी जेन बड़का शहर म रहिथे, तेकरे घर जाके शहर म कुछु काम-बुता करे जाय।

- अच्छा... तहां ले अंजलि अपन गांव ल छोड़ के शहर आगे-जया पूछिस।

-हहो जया, इही शहर म तो मोर वोकर संग भेंट होइस। तब ले अब तक मैं वोकर जीवन के संघर्ष यात्रा ल देखत हावौं।

-वाह भोला... वो तो आखिर पढ़े-लिखे नइ रिहीसे त फेर एकदम से ए बड़का काम ल कइसे धर लिस होही?

- तैं सही काहत हस जया... अंजलि ल ए बड़का जगा म पहुंचे खातिर अड़बड़ मिहनत करे ले लागे हे। शुरू-शुरू म तो जब वो ह शहर आइस त रेजा के काम करीस। कोनो जगा घर-उर बनत राहय तिहां अपन फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू- पोंछा के काम करे लगीस। इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। उहां के डॉक्टर अउ नर्स मनले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। फेर एक दिन अइसनो आइस जब वो दूसर के अस्पताल म नौकरी छोड़ के खुद के अस्पताल चलावत हे। अब वो माटी मताने वाली अउ झाड़ू-पोंछा लगाने वाली नहीं, भलुक, डॉक्टर अंजलि हे।

-सिरतोन म भोला, लोगन के विकास के किस्सा तो सुनथन फेर एकदम से कोइला ले हीरा के दरजा पावत कमतीच झन ले देखथन।

-तैं सही काहत हस जया, तभे तो सरकार ह वोला नारी शक्ति सम्मान दे के निर्णय लिए हे। अवइया राष्ट्रीय परब म वोला हमर राज के मुख्यमंत्री ह शासन डहर ले सम्मान करही।

- फेर भोला... वोला अपन ये संघर्ष के दिन म अपन जोड़ी के सुरता नइ आइस?

-दगाबाज के सुरता कर के काय करतीस?

-तभो ले जिनगी म एक संगवारी के, एक परिवार के जरूरत तो घलोक होथे न, तभे तो जिनगी के आखरी घड़ी ह पहाथे।

- हां जया, तोर कहना सही हे, फेर अब वोकर परिवार तो अतेक बड़े होगे हवय के वोला एक ठन घर म सकेले नइ जा सकय। जतका झन के दवई-पानी करथे, रोग-राई ले छुटकारा देवाथे, सब वोकर परिवार के हिस्सा बनत जाथें।

- हां... ये तो भौतिक परिवार होइस। फेर अंतस के सुख तो कुछु अउ खोजथे न।

-तोर कहना सही हे जया, फेर अंजलि एकरो रस्ता निकाल डारे हे। मन के सुख अउ शांति के खातिर वो ह अपन तीर-तखार के कलाकार मनला जोर के एक ठन सांस्कृतिक समिति बना डारे हे। तैं तो सुनेच होबे के संगीत ह आत्मा ल परमात्मा तक पहुंचाए के सबले सुंदर अउ सरल रस्ता होथे, एकरे सेती एला असली सुख अउ शांति के माध्यम कहे जाथे।

- अच्छा-अच्छा त अंजलि ह डॉक्टरी के संगे-संग कलाकारी घलोक करथे।

- हां जया... तन के सुख के संगे-संग वोह लोगन ल मन के सुख घलोक बांटथे।

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
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Thursday 25 September 2014

जय हो मइया...















चारोंखुंट बिराजे मइया छत्तीसगढ़ के पावन भुइयां
जय हो जय हो जय हो आदिशक्ति जय हो मइया...
उत्ती म दंतेसरी कहाथस, बुड़ती म बमलाई
भंडार बिराजे महामाई, रक्सहूं म बिलई दाई
फेर खुंट-खुंट अउ डिह-डोंगर म तोर किरपा के छइयां...
तैं चंद्रहासनी चंद्रपुर के अउ सरगुजा के समलाई
घट-घट म जुड़वास देवइया तहीं ह शीतला दाई
कहूं कंकालीन कहूं-कहूं चंडी, तोर जस बगरे हे ठइयां...
सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
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Wednesday 24 September 2014

*भोले के गोले* विमोचित..

साहित्यकार सुशील भोले की कृति *भोले के गोले का* रविवार 21 सितंबर 2014 को गुड़ी चंवरा सांस्कृतिक-साहित्यिक एवं लोक खेल संस्था द्वारा पटेल विद्या मंदिर, महामाया पारा, रायपुर (छत्तीसगढ़) में आयोजित बांस गीत समारोह के गरिमामय मंच पर प्रदेश भर से आये बांसगीत कलाकारों के सानिध्य में विमोचन किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डा. सुखदेव राम साहू, छत्तीसगढ़ी फिल्मों के नायक सुनील तिवारी, सुदामा शर्मा, आयोजन समिति के चंद्रशेखर चकोर, जयंत साहू, गोविन्द धनगर, शिवराम चंद्राकर, वार्ड पार्षद सरिता वर्मा, रंगकर्मी निसार अली सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, कलाकार एवं कलाप्रेमी उपस्थित थे।

Tuesday 23 September 2014

बांस गीत समारोह संपन्न...

गुड़ी चंवरा सांस्कृतिक-साहित्यिक एवं लोक खेल संस्था द्वारा पटेल विद्या मंदिर, महामाया पारा, रायपुर (छत्तीसगढ़) में 20 एवं 21 सितंबर 2014 को आयोजित दो दिवसीय बांस गीत समारोह का उद्घाटन छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लोकप्रिय निर्देशक प्रेम चंद्रकार ने किया। अध्यक्षता अंचल की सुप्रसिद्ध लोकगायिका ममता चंद्राकर ने की। विशेष अतिथि के रूप में साहित्यकार सुशील भोले एवं वार्ड पार्षद सरिता वर्मा उपस्थित थीं.... इस अवसर पर संजोयन समिति के चंद्रशेखर चकोर, शिवराम चंद्राकर, गोविन्द धनगर, मिथलेश निषाद सहित बड़ी संख्या में दर्शक एवं प्रदेश भर से आये बांस गीत कलाकार उपस्थित थे.....







Monday 22 September 2014

गुंथौ हो मालिन माई बर फूल-गजरा...


चम्मास के गहिर बरसा के थोर सुरताए के पाछू जब हरियर धनहा म नवा-नेवरनीन कस ठाढ़े धान के गरभ ले नान-नान सोनहा फूली कस अन्नपुरना के लरी किसान के उमंग संग झूमे लागथे, तब जगत जननी के परब नवरात के रूप म घर-घर, पारा-पारा, बस्ती-बस्ती जगमग जोत संग जगमगाए लागथे।

नवरात माने शक्ति के उपासना पर्व। शक्ति जे भक्ति ले मिलथे। छत्तीसगढ़ आदि काल ले भक्ति के माध्यम ले शक्ति के उपासना करत चले आवत हे। काबर के ये भुइयां के संस्कृति ह बूढ़ादेव माने शिव अउ शिव-परिवार के संस्कृति आय जेमा माता (शक्ति) के महत्वपूर्ण स्थान हे। वइसे तो नवरात मनाए के संबंध म अबड़ अकन कथा आने-आने ग्रंथ के माध्यम ले प्रचलित हे। फेर इहां के जे मूल आदि धर्म हे वोकर मुताबिक एला भगवान भोलेनाथ के पत्नी सती अउ पारबती के जन्मोत्सव के रूप म मनाए जाथे।

दुनिया म जतका भी देवी-देवता हें उंकर जयंती के पर्व ल साल भर म एके पइत मनाए जाथे, फेर नवरात्र एकमात्र अइसन पर्व आय जेला बछर भर म दू पइत मनाए जाथे। काबर ते माता (शक्ति) के अवतरण दू अलग-अलग पइत दू अलग-अलग नांव अउ रूप ले होए हे। पहिली पइत उन सती के रूप में दक्षराज के घर आए रिहीन हें। फेर अपन पिता दक्षराज के द्वारा आयोजित महायज्ञ म भोलेनाथ ल नइ बलवा के वोकर अपमान करे गीस त सती ह उही यज्ञ के कुंड म कूद के आत्मदाह कर लिए रिहीसे।

एघटना के बाद भोलेनाथ वैराग्य के अवस्था म आके एकांतवास के जीवन जीए बर लगगे रिहीसे। फेर बाद म राक्षस तारकक्ष के उत्पात ले मुक्ति खातिर देवता मन वोकर संहार खातिर शिवपुत्र के जरूरत महसूस करीन। तब शिवजी ल माता पारबती, जेन हिमालय राज के घर जनम ले डारे रिहीन हे तेकर संग बिहाव करे के अरजी करीन। पारवती ह माता सती जेन शिवजी के पहिली पत्नी रिहीसे वोकरे पुनरजनम (दुसरइया जनम) आय। एकरे सेती हमर इहां माता (शक्ति) के साल म दू पइत जन्मोत्सव के पर्व ल नवरात के रूप म मनाए जाथे। संकृति के जानकार मनके कहना हे के सती के जनम ह चइत महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म होए रिहिसे अउ पारवती के जनम ह कुंवार महीना के अंजोरी पाख के नवमी तिथि म।

हमर छत्तीसगढ़ म नवरात म जंवारा बोए के रिवाज हे। लोगन अपन-अपन मनोकामना खातिर बदे बदना के सेती जंवांरा बोथें, जेमा पूरा परिवार ल बर-बिहाव सरीख नेवता देथें। जंवारा बोवइ ह चइत महीना के नवरात म जादा होथे। कुंवार म शक्ति के उपासना के रूप म दुर्गा प्रतिमा स्थापित करे के चलन ह अभी बने बाढ़त हवय। इहू बखत माता दुर्गा के फुलवारी के रूप म जोत-जंवारा बोये जाथे। अइसने इहां जतका भी सिद्ध शक्ति पीठ हें उहू मनमा जोत-जंवारा जगाए जाथे।

नवरात के एकम ले लेके नवमी तक पूरा वातावरण म शक्ति उपासना के धूम रहिथे। हर देवी मंदिर, दुर्गा प्रतिमा स्थल अउ जंवारा बोए घर म जस गीत गूंजत रहिथे। जब सेउक मन गाथें-
माई बर फूल गजरा,
गुंथौं हो मालिन माई बर फूल गजरा।
चंपा फूल के गजरा, चमेली फूल के हार।
मोंगरा फूल के माथ मटुकिया, सोला ओ सिंगार।

त पूरा वातावरण में शक्ति के संचार हो जाथे। कतकों झन ल देवी घलोक चढ़ जाथे। फेर सोंटा, बोड़बोरा अउ बाना-सांग के दौर चलथे। जेकर जइसन शक्ति वोकर वइसन भक्ति। सरलग नौ दिन ले सेवा करे बाद दसमीं तिथि म माता जी के प्रतिमा के संगे-संग जंवारा के घलोक विसरजन कर दिए जाथे।

हमर छत्तीसगढ़ म ए दिन मितानी बदे के घलोक परंपरा हे। कतकों संगी-जउंरिहा मन जेकर मन के  मया बाढ़ जथे, वो मन ए दिन जंवारा (मितान) घलोक बद लेथें।

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
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Tuesday 16 September 2014

छत्तीसगढ़ की संस्कृति व अस्मिता की चिंता है *भोले के गोले* में...


     सुशील भोले छत्तीसगढ़ी साहित्य बिरादरी में जाना-पहचाना व महत्वपूर्ण नाम है. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले व बाद में छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा के रूप में दर्जा दिलाने में उनकी कृतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.पेशे से पत्रकार भोलेजी का लेखन बहुआयामी है.वे पत्रकारिता सहित साहित्य की अन्य विधाओं में पारंगत हैं. छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी, व्यंग्य, लेख, गीत-भजन और समसामयिक विषयों पर विभिन्न अखबारों में कॉलम लेखन के जरिए उन्होंने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है.

    छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सहयोग से  कहानी, व्यंग्य, लेख और संस्मरणों से गुंफित उनका सद्य प्रकाशित संग्रह भोले के गोले उनकी रचनाधर्मिता को बहुत गहराई से रेखांकित करता है. हालांकि सुशील भोले अपनी इस किताब की भूमिका में लिखते हैं कि इसमें संग्रहित रचनाएं उनके सीखने के दौर की हैं. यदि बम उनकी रचनाओं का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि सीखने की प्रक्रिया में ही वे बहुत गहराई में पैठते हैं और अनमोल मोतियां निकाल लाते हैं.

   भोलेजी के मूल चिंतन में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति व अस्मिता है. वे हर हाल में संस्कृति व अस्मिता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे संस्कृति को छत्तीसगढ़ की अस्मिता की आत्मा मानते हैं. वे इस आत्मा में पड़ी अपसंस्कृति रूपी गर्द-धूल को झटककर साफ करने की जरूरत महसूस करते हैं. उन्हें मालूम है कि प्रदेश के इस विशाल भूखंड में हमारी परंपराएं, रीतिरिवाज, संस्कृति बहुत समृद्ध है. इनको पोषित करने में यहां के चिंतकों-मनीषियों का महत्वपूर्ण योगदान है. वे संजीदगी से बताते हैं कि इस बनकचरा म हीरा गंवाए हे. वे अपने विभिन्न लेखों में इस हीरे की पहचान करते चलते हैं.

   सर्वविदित है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका पूरी दुनिया में हावी हो गया है. समूचे विश्व में उसकी दादागिरी चल रही है. वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान की बर्बादी के लिए जिम्मेदार व हथियारों के सौदागर इस देश के राष्ट्रपति बराक ओबामा को जब शांति का नोबल पुरस्कार दिया जाता है तो सुशील भोले कटाक्ष करते हैं कि गोल्लर ल गरवा सम्मान मिल गया है. इसके अलावा वे  पुरस्कार के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति करने वाले चाटुकार कलाकारों-लेखकों को भी नहीं बख्शते. वे इस बात को रेखांकित करते हैं कि जो सचमुच में सम्मान के हकदार हैं वे हाशिए पर हैं और जो अयोग्य हैं वे पुरस्कारों का चोंगा ओढ़े मलाईदार ओहदों पर बैठकर दूधभात खा रहे हैं.

   सुशील भोले छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलनों के गिरते स्तर से भी चिंतित हैं. मंचों में आजकल कविगण कविताएं कम चुटकुले अधिक सुनाने लगे हैं.उसमें भी फूहड़ता हावी हो गई है. कुछ स्वघोषित कवयित्रियां तात्कालिक लोकप्रियता हासिल करने के लिए अपनी रचनाओं का नहीं, अपने रूप-सौंदर्य का सहारा ले रही हैं. भोलेजी इसे अपने व्यंग्य धोंधो बाई के माध्यम से उजागर करते हैं.

   जैसा कि उपर लिखा जा चुका है कि सुशील भोले के चिंतन व लेखन के केंद्र में छत्तीसगढ़ की अस्मिता व संस्कृति है. वे पारंपरिक सुआ, करमा, ददरिया, पंडवानी के साथ-साथ यहां के तीज-त्योहारों को भी अक्षुण्ण बनाए रखने के पक्षधर हैं.वे पुरखा मन के सुरता के परब पितर पाख से लेकर देवी उपासना गीत जंवारा, शरद पुन्नी, कार्तिक स्नान, गौरा-गौरी आदि धरोहरों को संजोए रखने के हिमायती हैं.और तो और वे गांवों में आयोजित मेला-मड़ई में ढेलवा-रहिचुली आदि लोक मनोरंजन के साधनों को भी बरकरार रखने के पक्ष में हैं.
    सुशील भोले अपने अग्रजों का स्मरण करना नहीं भूलते. वे बड़ी शिद्दत और सम्मान के साथ सुराजी वीर अनंत राम बर्छिहा, पंडवानी के पुरोधा नारायण प्रसाद वर्मा, नाचा के सिद्धहस्त कलाकार मदन निषाद, छत्तीसगढ़ी के निश्छल कवि बिसंभर यादव मरहा आदि का स्मरण करते हैं.

    पुस्तक की भाषा बहुत सहज और सरल है. भोलेजी की कथ्यशैली रोचक है. कथ्य विषय के हिसाब से शब्दों का सटीक प्रयोग करना वे बखूबी जानते हैं.

समीक्षक :  किशनलाल
संपर्क : ग्राम-पोस्ट - देमार (धमतरी)
जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)

Friday 12 September 2014

राष्ट्रभाषा...

इस देश की हर भाषा राष्ट्रभाषा है। इसलिए आवश्यक है कि हम इन सभी भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कार्य करें।
जय राष्ट्रभाषा... जय मातृभाषा...

* सुशील भोले * 080853-05931, 098269-92811

Wednesday 10 September 2014

फेसबुकिया टूरी....












कइसे बुता निकाल के झटक देथे रे
टूरी फेसबुकिया मया ल पटक देथे रे....

फेसबुक म चेटिंग अड़बड़ करथे
कई-कई घंटा ले वो मया करथे
फेर कहूं मेर मिल जाथे त सटक देथे रे....

का टाईमपास के वोकर होगे हंव साधन
चेटिंग करत रहिथंव भूखन-लांघन
वो तो जम्मो बेरा ल मोर गटक देथे रे....

संगी-संगवारी मन मोला देथें ताना
दही के भोरहा म कपसा झन खाना
आनी-बानी के बोली म उटक देथें रे...

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
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Monday 8 September 2014

पुरखा मन के सुरता के परब..* पितर-पाख*


हमर संस्कृति म देवी-देवता मन के सुरता अउ पूजा-पाठ करे के संगे-संग अपन पुरखा मनला घलोक सुरता करे अउ श्रद्धा के साथ जल तरपन करे के रिवाज हे, जेला हमर इहां पितर पाख के नांव ले जाने जाथे। पितर पाख ल कुंवार महीना के अंधियारी पाख म मनाए जाथे। लगते कुंवार के पितर बइसकी होथे जेन ह अमावस्या के पितर-खेदा के संग पूरा होथे।

पितर पाख म अपन पुरखा मन के कम से कम तीन पीढ़ी के सुरता करे जाथे। एमा जेन तिथि म वोकर मन के स्वर्गवास होए रहिथे। तेनेच तिथि म उंकर नांव ले विशेष रूप ले जल अरपन करके चीला, बोबरा, बरा आदि के भोग लगाए जाथे। फेर माई लोगिन मनला पहिली बछर तो ओकर स्वर्गवास के तिथि म पितर मिलाय के नेंग ल करे जाथे, वोकर बाद फेर सिरिफ नवमीं तिथि म उंकर तरपन कर दिए जाथे। माने नवमी तिथि ह जम्मो महिला मन के पितर-तिथि कहे जा सकथे।

पितर पाख के लगते माई लोगिन मन घर के दुवारी ल बने गोबर म लीप के वोमा चउंक, रंगोली आदि बनाथें अउ फूल चढ़ा के सजाथें। वोकर पाछू उरिद दार के बरा बनाथें जेमा नून नइ डारे जाय। संग म बोबरा, गुरहा चीला आदि घलोक बनाए जाथे अउ साग के रूप म तरोई ल आरुग तेल म छउंके जाथे। ए जानबा राहय के ए पाख म तरोई के विशेष महत्व होथे। घर के दरवाजा म जेन गोबर लीप के चउंक पूरे जाथे वोमा आने फूल मन के संगे-संग तरोई के फूल घलोक चढ़ाए जाथे। वइसने साग तो सिरिफ तरोई ल तेल म छउंक के दिए जाथे अउ पितर मनला जेन जगा हूम-धूप अउ बरा-बोबरा दिए जाथे उहू ल तरोई के पान म रख के दिए जाथे। अइसे मानता हे के तरोई तारने वाला जिनीस आय काबर ते ये शब्द के उत्पत्ति तारन ले तरोई होए हे। वइसे तरोई ह पाचक अउ स्वादिष्ट होथे जेमा अनेकों किसम के पुस्टई होथे फेर बने नरम-नरम घलोक होथे, जेला भोभला डोकरा-डोकरी मन आसानी के साथ पगुरा के लील डारथें। आखिर पितर मन ला तो हमन उहिच रूप म सुरता करथन न।

वइसे तो अपन पुरखा मन के कई पीढ़ी तक के सुरता अउ तरपन करना चाही फेर जे मन अइसन करे म अपन आप ल सक्षम नइ पावंय वोमन पितर पाख म गया जी (बिहार राज्य) म जाके उंकर तरपन करके हर बछर के सुरता अउ तरपन ले मुकति पा जथें। अइसे मानता हे के जेकर मन के तरपन ल पितर पाख म गया जी म कर दिए जाथे वोमन ल मोक्ष प्राप्त हो जाथे, वोकर बाद फेर वोकर मन के तरपन करना जरूरी नइ राहय। वइसे जेकर मन के श्रद्धा अउ सामरथ हे वोमन अपन पुरखा मन के सुरता अउ तरपन गया जी म तरपन करे के बाद घलोक कर सकथें। एमा कोनो किसम के बंधन या दोस नइ माने जाय। तरपन देवइया मनला जल-अरपन करे के बेर उत्ती मुड़ा म मुंह करके जल अरपन करना चाही अउ ए बखत अपन खांध म सादा रंग के कांचा कपड़ा पंछा आदि घलोक रखना चाही।

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

कला और संस्कृति....


आजकल यह देखा जा रहा है कि कला को संस्कृति के नाम पर बताया और परिभाषित किया जा रहा है। खासकर लोककलाओं को। जबकि यह जानना जरूरी है कि कला और संस्कृति दो अलग-अलग चीजें हैं। कला वह है जिसे हम मंच या अन्य माध्यमों के द्वारा प्रदर्शित करते हैं, जबकि संस्कृति वह है जिसे हम जीते हैं.. आत्मसात करते हैं... पर्वों और त्यौहारों के रूप में मनाते हैं।

* सुशील भोले *  080853-05931, 098269-92811

Saturday 6 September 2014

बादल कब इठलायेगा...











अपनी बांहों में चांद छुपाकर बादल कब इठलायेगा
प्रेम तराने गाने वाला, वो सावन कब आयेगा...

कहीं खामोशी है अधरों पर और जे़हन में है तृष्णा
बन-बन डोलती गोपी के, जैसे हृदय में है कृष्णा
प्रेमी सपनों को सरगम देने, मेघ मल्हार कब गायेगा...

कब से आस लगा बैठा है, चातक अपनी प्यास बुझाने
चंद्र किरण संग चंचल बन, अपने हृदय को हर्षाने
विरह वेदना को स्वर देने, कब प्रेमी पपीहरा गायेगा...

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

Tuesday 2 September 2014

महिला कमांडो हेमा सोनी



महिला सशक्तिकरण के लिए पिछले 6 वर्षों से कार्यरत श्रीमती हेमा सोनी के संघर्ष पूर्ण जीवन की जानकारी देने के लिए श्रीमती सुलेखा सोनी ने आज 2 सितंबर को रायपुर के प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता को संबोधित किया। उनके साथ  हेमा सोनी और मैं सुशील भोले भी मंच पर थे।

ज्ञात रहे हेमा सोनी को उनके इन कार्यों के कारण गुंडरदेही, जिला-बालोद (छत्तीसगढ़)क्षेत्र में महिला कमाण्डो के रूप में जाना जाता है। उनके द्वारा 15-15 महिलाओं का 250 समूह गठित किया गया है, जिनके माध्यम से महिलाओं के लिए अनेक कार्य किये जाते हैं।

उन्हें शुभकामनाएं..हमेशा आगे बढ़ती रहें और शोषित-पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलवाती रहें।