Friday 13 February 2015

सुशील भोले के चार डांड़....2

गोंदली के भाजी म चना के दार
लसुन अउ मिरचा के सुघ्घर बघार
हमरो घर साग तैं अमरा देबे भउजी
तोर बहिनी के हाथ देबे मया ल डार
*सुशील भोले*
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रोज नंदावत हावय संगी हमर गंवई के खाई
गस्ती खाल्हे बइठे राहय धर के मुर्रा-लाई
आवत-जावत स्कूल ले रोज खीसा भर लेवन
अब पेंड़ कटागे छांव नंदागे संग जिनगी के सुघराई
*सुशील भोले*
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एक हाथ म माला अउ दूसर म भाला
रोज सिखोवत हावस तैं ह काला-काला
धर लिए हे गुरुमंत्र नइ तबले कुछु जानय
जेन हवय पाखंडी निच्चट वोकरे परथे पाला
*सुशील भोले*

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