Friday 1 May 2015

हमर हाथ हे जबड़ कमइया........










चिटिक खेत अउ भर्री नहीं, हमला सफ्फो खार चाही
हमर हाथ हे जबड़ कमइया, धरती सरी चतवार चाही...

हमर पेट ह पोचवा हे अउ, तोर कोठी म धान सरत हे
हमरे खातिर तोर गाल ह, बोइर कस बम लाल होवत हे
गाय-गरु कस पसिया नहीं, अब लेवना के लगवार चाही....

तन बर फरिया-चेंदरी नहीं, अउ तैं कहिथस जाड़ भागगे
घर म भूरीभांग नहीं तब, सुख के कइसे उमर बाढग़े
चिरहा कमरा अउ खुमरी नहीं, अब सेटर के भरमार चाही...

ठाढ़ चिरागे दूनों पांव ह, जरत मंझनिया के सेती
हमर देंह ह होगे हे का, कइसे रे तोरेच पुरती
अब बेंवई परत ले साहन नहीं, हमला सुख-सत्कार चाही...

सुन-सुन बोली कान पिरागे, आश्वासन के धार बोहागे
घुड़ुर-घाडऱ लबरा बादर कस, अब तो तोरो दिन सिरागे
हमला आंसू कस बूंद नहीं, अब महानदी कस धार चाही....

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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