(किन्नरों के पीड़ादायी जीवन पर एक गीत - फोटो-किन्नर वीणा सेंदरे)
हुए बेगाने सब अपने जो कांधों पर ढोते थे
मेरे नन्हें हाथों को थामे जो खुशियों में खोते थे....
बचपन ऐसा मेरा बीता ज्यों फूलों की डाली हो
घर की रौनक मुझसे होती जैसे किरणों की लाली हो
पिता प्रशस्ती-पत्र सरीखा छाती में मुझको बोते थे.....
बहन-भाई सभी खेलने को आतुर रहते संग मेरे
जो अब खड़े हुए हैं देखो अपना-अपना मुंह फेरे
अनजाने से सभी हुए जो संग में जगते-सोते थे....
कोई नहीं अब अपना सा जिसको दुखड़ा कह पायें
जीवन पूरा सूना-सूना जहां कोई नहीं अब रह पाये
घनघोर अंधेरा पसर चुका है जहाँ चाँद-सितारे होते थे....
सुशील भोले
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मों. 080853 05931, 098269 92811
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