मित्रों,
मुझे राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करना पसंद नहीं है। लेकिन इन दिनों आरक्षण के नाम पर जिस तरह से गधा और शेर की तुलना कर राजा बनने की बात कही जा रही है। उस पर मन में एक प्रश्न उठने लगा है।
आप सभी जानते हैं कि गधा एक परिश्रमी जीव है, जबकि शेर मुफ्तखोर-आतंकी। अब प्रश्न यह है कि क्या किसी देश अथवा राज्य की सत्ता परिश्रमी लोगों के हाथों में सौंपी जाए या मुफ्तखोर-हिंसकों के हाथों में?
क्या कोई देश एेसे लोगों के हाथों खुशहाल हो सकता है, जो मुफ्तखोर हों, हिंसक हों? अथवा एेसे लोंगों के हाथों खुशहाल रहेगा जो परिश्रमी हों, लोक कल्याण की भावना रखते हों?
आप इस विषय पर क्या कहना चाहेंगे...?
* सुशील भोले
मोबा. नं. 80853 05931, 98269 92811
मुझे राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी करना पसंद नहीं है। लेकिन इन दिनों आरक्षण के नाम पर जिस तरह से गधा और शेर की तुलना कर राजा बनने की बात कही जा रही है। उस पर मन में एक प्रश्न उठने लगा है।
आप सभी जानते हैं कि गधा एक परिश्रमी जीव है, जबकि शेर मुफ्तखोर-आतंकी। अब प्रश्न यह है कि क्या किसी देश अथवा राज्य की सत्ता परिश्रमी लोगों के हाथों में सौंपी जाए या मुफ्तखोर-हिंसकों के हाथों में?
क्या कोई देश एेसे लोगों के हाथों खुशहाल हो सकता है, जो मुफ्तखोर हों, हिंसक हों? अथवा एेसे लोंगों के हाथों खुशहाल रहेगा जो परिश्रमी हों, लोक कल्याण की भावना रखते हों?
आप इस विषय पर क्या कहना चाहेंगे...?
* सुशील भोले
मोबा. नं. 80853 05931, 98269 92811
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