Wednesday 21 October 2015

'अगुवा" काबर..?

(छत्तीसगढ़ी अखबार *अगुवा* के प्रकाशन पर 30 अक्टूबर 2015 को मेरे द्वारा लिखा गया संपादकीय)

तइहा जुग ले छत्तीसगढ़ अपन अगुवाई खुदे करत आवत रिहिसे, फेर अभी कुछ बछर ले ये देखे म आवत हे के आने-आने ठीहा ले आये मनखे मन इहां के अगुवाई अउ मुखियाई म जुरिया गे हवंय। आखिर काबर अइसन देखब म अवत हे? का छत्तीसगढ़ म अगुवा बने के क्षमता अब कोनो म नइ रहिगे हे, या फेर इहां के मनखे मनला जानबूझ के अगुवाई करे ले छेंके अउ रोके जावत हे?

ये ह आज के सबले जादा गुनान के बात आय। ये देश के अउ कोनो राज म अइसन दृश्य नइ देखे जाय, के उहां अन्ते के मनखे मन राज करत होयँ। हां, ए बात अलग हे के थोड़-बहुत भागीदारी अन्ते ले आये मनखे मन के घलोक उहां के सत्ता म रहिथे, फेर मुखिया या कहिन अगुवा उहां के मूल निवासी समाज के ही मनखे मन होथें।
ये बात चाहे राजनीति के विषय म होय या कला, साहित्य, भाषा, संस्कृति, धर्म, समाज या अउ कोनो भी क्षेत्र के बात होय सबो म अइसने नजारा देखे म आथे।

ये विषय म जब चिंतन करबे त लागथे के राजनीति के राष्ट्रीयकरण होय के सेती अइसन नजारा देखे म आवत हावय। काबर ते आज लोकतांत्रिक व्यवस्था म राजनीतिच ह जम्मो क्षेत्र के रिमोट कंट्रोल बनगे हवय। वो जइसन नचाथे, वइसन सब नाचथें। अउ सबले दुखद बात ये आय के आज राजनीति ह अपन खुद के राज ले चले के बदला केन्द्र ले, माने दिल्ली ले चले बर धर लिए हे। एकरे सेती दिल्ली ह अइसन मनखे मनला इहां लाद देथे, जिनला इहां के न तो कोनो जिनिस ले कोनो लेना-देना होथे, अउ न कोनो किसम के कोनो ठोस जानकारी होथे। इही पाय के चारों मुड़ा बाहिरी कहे जाने वाला मनखे मुखिया के रूप म देखे म आथे, कोनो विशेष योग्यता खातिर नहीं।

आखिर ये बात के समाधान का हो सकथे? अइसन दृश्य ले छुटकारा कइसे मिल सकथे? कइसे इहां के लोगन अगुवा के भूमिका म आ सकथें? एकर ऊपर बड़का गुनान के जरूरत हे। तभे छत्तीसगढ़ राज के अलग राज बने के कोनो सार हे।

सबले पहिली एकर बर जेन विचार आथे, वोकर अनुसार अइसन लागथे के इहां के लोगन के अपन खुद के कोनो राजनीतिक पार्टी होना चाही, जेमा निमार-छांट के अरुग छत्तीसगढिय़ा मनला चुनावी टिकट दिए जा सकय। फेर कई झन मन ये दिशा म काम-बुता घलोक कर डारे हें, छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल बना के जोर-आजमाईश कर डारे हें, फेर हासिल आईस कुछु नहीं।

आखिर अइसन काबर होथे? का राष्ट्रीय कहे जाने वाला दल म बइठे लोगन, उनला सफल होय म बाधा डारथें? हां, डारथें तो जरूर, अउ सबले जादा वोमन जेला हम छत्तीसगढिय़ा कहिथन। फेर वास्तव म वोमन दलाल होथें, राजनीतिक दलाल, जेन नानमुन पद के लालच म पूरा अपन राज्य के भाग्य ल बाहिरी मनखे के मुखियाई म सौंप देथें। लागथे के अइसने मन के ठिकाना पुरोना के बुता ल सबले पहिली होना चाही। काबर ते ए 'घर के भेदी लंका ढाये" वाला खेल ल करत रहिथें।

जेन दिन इहां के राजनीतिक सत्ता मूल निवासी मन के हाथ म आ जाही, वो दिन अउ जम्मो क्षेत्र के मुखियाई घलोक मूल निवासी मन के हाथ म आ जाही।

'अगुवा" इही सब के बात के सुरता देवाए अउ वोकर समाधान के रद्दा सुझाए खातिर 'टेबलाइज्ड अखबार" के रूप म आपके हाथ म आज ले आवत हे। भरोसा हे आपके मया-दुलार मिलही अउ छत्तीसगढ़ महतारी ल वोकर असली अगुवा बेटा मिलही, जेमन अपन पुरखा मन के सपना के अनुसार छत्तीसगढ़ राज के निर्माण करहीं।

कब तक पिछवाए रइहू अब तुम अगुवा बनव रे
नंगत लूटे हें हक ल तुंहर, अब बघवा बनव रे।।

* सुशील भोले *

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