Friday 29 January 2016

गीत मेरा बन जाता है...













जब-जब पाँवों में कोई कहीं, कांटा बन चुभ जाता है।
दर्द कहीं भी होता हो,  गीत मेरा बन जाता है।।

मैं वाल्मीकि का वंशज हूं, हर दर्द से नाता रखता हूं
कोई फूल टूटे या शूल चुभे, हर जख्म मैं ही सहता हूँ
क्रंदन करता क्रौंच पक्षी, पर मन मेरा कंप जाता है.....
                                                   
मैं सावन का घुमड़ता बादल हूँ, सुख की फसलें उपजाता हूँ
कोई राजा हो या रंक सभी को, जीवन गीत सुनाता हूँ
आँखों में किसी की तिनका चुभे, तो आँसू मेरा बह जाता है..
                                                       
मैं श्रमवीरों का सहोदर हूँ, कल-पुर्जों को धड़काता हूँ
देश की हर गौरव-गाथा में, ऊर्जा बन बह जाता हूँ
सीमा पर कभी फन उठता तो, लहू मेरा बह जाता है...

 सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Wednesday 27 January 2016

महाशिवरात्रि मेला - महादेव के नाम पर या किसी अन्य के नाम पर..?

छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को बिगाड़ने, भ्रमित करने और उसे गलत संदर्भों के साथ जोड़कर लिखने का कुत्सित कार्य कई वर्षों से चल रहा है। अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संदर्भों के मापदण्ड पर लिखे जा रहे इन कारगुजारियों के चलते यहां के वास्तविक धर्म और संस्कृति के समक्ष अस्तित्व रक्षा का संकट उत्पन्न हो गया है,  लेकिन आश्चर्य होता है  इन सब दृश्यों के चलते भी यहां के कथित विद्वान खामोश कैसे रह जाते हैं..?


यहां की संस्कृति मेला-मड़ई की संस्कृति है। यहां सुरहुत्ती (दीपावली) के पश्चात आने वाली द्वितीया तिथि को मातर का पर्व मनाया जाता। मातर पर्व में मड़ई जगाने का कार्य भी होता है, और इसके साथ ही यहां मड़ई-मेला का एक लंबा दौर प्रारंभ हो जाता है, जो महाशिवरात्रि तक चलता है।

छत्तीसगढ़ के प्राय: सभी गांव-कस्बों में मड़ई या मेला का आयोजन होता है। ये छोटे स्तर के मड़ई-मेले गांव के बाजार स्थल पर या किसी अन्य स्थल पर आयोजित कर लिए जाते हैं। लेकिन जो बड़े स्तर के मेले होते हैं वे सभी किसी न किसी सिद्ध शिव स्थलों पर ही होते हैं। इसलिए हम यह प्राचीन समय से सुनते और देखते आ रहे हैं कि राजिम मेला कुलेश्वर महादेव के नाम पर भरने वाला मेला कहलाता था।

 एक गीत हम बचपन में सुनते थे-  *चल ना चल राजिम के मेला जाबो, कुलेसर महादेव के दरस कर आबो...* लेकिन जब से इस मेला को कुंभ के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है, तब से इसे राजीव लोचन के नाम पर भरने वाला कुंभ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जो कि यहां की मूल संस्कृति को समाप्त कर उसके ऊपर अन्य संस्कृति को थोपने का षडयंत्र मात्र है।

मुझे लगता है कि इस मेला के राजीव लोचन नामकरण के पीछे राजनीतिक षडयंत्र भी एक मुख्य कारण है। आप सब इस बात को जानते हैं कि राजीव लोचन भगवान राम का ही एक नाम है, और राम भारतीय जनता पार्टी का चुनावी एजेंडा भी है। शायद इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के शासन में परिवर्तित इस आयोजन को कुलेश्वर महादेव के स्थान पर राजीव लोचन के नाम पर भराने वाला मेला के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।

मेरा प्रश्न है कि केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं अपितु पूरे देश में जो कुंभ का आयोजन होता है, वह केवल शिव स्थलों पर और उसी से संबंधित तिथियों पर आयोजित होता है, तब भला वह राजीव लोचन या राम के नाम पर आयोजित होने वाला कुंभ कैसे हो सकता है? राम के नाम पर तो अयोध्या में भी मेला या कुंभ नहीं भरता तो फिर राजिम में कैसे भर सकता है? वह भी महाशिवरात्रि के अवसर पर?

महाशिवरात्रि के अवसर पर लगने वाला मेला या कुंभ कुलेश्वर महादेव के नाम पर भरना चाहिए या राजीव लोचन के नाम पर?

मुझे छत्तीसगढ़ के तथाकथित बुद्धिजीवियों पर, उनके क्रियाकलापों पर आश्चर्य होता है। वे इस तरह की सांस्कृतिक विकृतियों पर कैसे खामोश रहकर सरकार की जी-हुजूरी में लगे रहते हैं..?

सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

बंजारी धाम, मढ़ी...

रायपुर से बिलासपुर रेल मार्ग पर बैकुंठ स्टेशन से उतरकर जाना होता है ग्राम मढ़ी, जहां पर माँ बंजारी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं।

 आज से करीब बीस वर्ष पहले मैं वहां जब गया था, तब वह एक निर्जन स्थल के ही समान था। माता जी एक नीम वृक्ष के नीचे विराजित थीं, और आसपास कुछ भी नहीं था। लेकिन इस गणतंत्र दिवस पर सुश्री जागृति बघमार जी के साथ वहां पुनः जाना हुआ तो वहां का रौनक देखकर सुखमय आश्चर्य हुआ।

अब यह स्थल एक पूर्ण तीर्थ और पर्यटन स्थल का रूप धारण कर चुका है, जहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। वहां बहुत सारे मंदिर और बाग-बगीचे बन गये हैं, जिन्हें देखकर मन आनंदित हुए बिना नहीं रहता।

वैसे तो छत्तीसगढ़ में बहुत सारे प्राचीन और एेतिहासिक मंदिर हैं, जिन्हें देखने का अपना ही आनंद है, लेकिन वर्तमान जो नये देव स्थल बन रहे हैं, वे भी दर्शनीय और प्रशंसनीय हैं, जिन्हें समय निकालकर अवश्य देखा जाना चाहिए।
माँ बंजारी धाम का गर्भगृह..

गर्भगृह में जागृति बघमार जी के साथ मैंं सुशील भोले

विशाल शिव प्रतिमा के समक्ष

ब्रम्हलोक का एक दृश्य

छत्तीसग़ढ़ महतारी की बहुत ही सुंदर प्रतिमा 

माँ बंजारी

Monday 25 January 2016

गणतंत्र दिवस की शुभकामननाएँ...


छियांसठवें गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ... बधाई... जय हिन्द... जय भारत...

* सुशील भोले
sushil bhole 

Sunday 24 January 2016

वंदे मातरम्....


 ( हमारे देश में आज भी कई एेसी परिस्थियां निर्मित होती हैं, जब हमारे गौरव के विषयों पर प्रश्न जिन्ह अंकित किए जाते हैं। एेसे ही जब संसद भवन में बीएसपी के एक सांसद द्वारा वंदेमातरम् गान का बहिष्कार किया गया, तब उससे दुखी होकर लिखा गया यह गीत...)

हर मज़हब से ऊँचा है ये वंदेमातरम्
भूखों का भगवान सरीखा वंदेमातरम्

चलो बढ़ाएं कदम मिलाकर फिर से आगे
आज प्रश्न फिर जाग उठा है देश के आगे
कोई कहीं ललकार रहा है वंदेमातरम्...

आजादी दिलवाई जिसने जोश जगाकर
हर सूबे को गले लगाया स्नेह बढ़ाकार
फिर कोई क्यों नकार रहा है वंदेमातरम्...

गण को तंत्र का राज दिलाया बनाया राजा
मुक्त हुआ सामंतों से यह शुभ दिन आया
लोकतंत्र लहराया तब, गूंजा फिर वंदेमातरम्...

नवभारत में स्वर्णिम सवेरा आया जिससे
बच्चा-बच्चा जन-मन-गण को गाया जिससे
आज हिसाब सब मांग रहा है वंदेमातरम्...

अंधियारे में सूर्य सरीखा है यह वंदेमातरम्
जेठ की दुपहरी में छांव की ठंढक वंदेमातरम्
अरे बच्चों की मुस्कान सरीखा वंदेमातरम्...

सुशील भोले
54 /191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

Friday 22 January 2016

मातृभाषा में संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की मांग *जबर गोहार* का भव्य आयोजन...

छत्तीसगढ़ की मातृभाषा की उपेक्षा और उड़िया सहित अन्य प्रदेशों की भाषा को यहां जबरिया थोपने के विरोध में छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना द्वारा शुक्रवार 22 जनवरी को प्रातः 11 बजे से राजधानी रायपुर के बूढ़ा तालाब, श्याम टाकीज के बाजू स्थित धरना स्थल पर आयोजित महाधरना के रूप में *जबर गोहार* का आयोजन कर सरकार को चेतावनी दी गई कि वह अपने बेवकूफी भरे निर्णय को तुरंत वापस ले और इस प्रदेश की मातृभाषाओं को संपूर्ण शिक्षा का माध्यम बनाये.

छत्तीसगढ़ महतारी की पूजा-आरती के साथ प्रारंभ हुए धरने में साहित्यकार सुशील भोले ने सरकारल को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार अपने
मूर्खता भरे निर्णय को तुरंत वापस ले। इस प्रदेश में उड़िया या अन्य किसी भी भाषा को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक यहां की मातृभाषा में संपूर्ण शिक्षा की व्यवस्था नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि हम राजनीतिक दलों की तरह पुतला दहन का दिखावा नहीं करेंगे, जो भी हमारी मातृभाषा की उपेक्षा कर अन्य प्रदेशों की भाषा को यहां थोपेगा, हम उन्हें जिन्दा दहन करेंगे।

क्रांति सेना के प्रदेशाध्यक्ष अमित बघेल ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि सरकार अपने मूर्खता भरे निर्ण को तरंत वापस ले। जब तक यहां की मातृभाषा में संपूर्ण शिक्षा लागू नहीं हो जाती, हम उड़िया भाषा को या किसी भी अन्य प्रदेश प्रदेश की किसी भी भाषा को यहां स्वीकार नहीं कर सकते। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी कि सरकार एक महीने के अंदर अपने इस बेवकूफी भरे निर्णय  को वापस नहीं लेती तो पूरे छत्तीसगढ़ में आग लगा दिया जायेगा। यहां का समस्त व्यापार-व्यवसाय को बंद कर दिया जायेगा। और इन सबकी जिम्मेदारी सरकार की अपनी खुद की होगी।

वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर शुक्ला ने मातृभाषा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए इस प्रदेश में तुरंत छत्तीसगढ़ी में संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था लागू करने की बात कही। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ स देश का पहला राज्य है जहां अपनी खुद की मातृभाषा में पढ़ाई देने की बजाय अन्य प्रदेशों की भाषा को लादा जा रहा है। हमारा उड़िया या किसी भी अन्य भाषा से कोई वैचारिक विरोध नहीं है, लेकिन जब तक यहां की मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक किसी भी अन्य भाषा ओं को यहां स्वीकार नहीं किया जा सकता।

महाधरना *जबर गोहार* को विष्णु बघेल, श्याम मूरत कौशिक, दाऊ आनंद कुमार, अजय यादव, ऋतुराज साहू, ललित साहू, तुकाराम साहू, संजीव साहू, देव लहरी, सोनू नेताम, गजेन्द्र चंद्राकर, रामशरण टंडन, राजेन्द्र चंद्राकर, सुश्री दुर्गा झा, कल्याण सिंह आदि ने भी संबोधित किया। महाधरना में पूरे प्रदेश भर से आये सैकड़ों लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 

Thursday 21 January 2016

दूरदर्शन में देशभक्ति कविगोष्ठी...

रायपुर दूरदर्शन में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी 2016 को अपरान्ह 3.30 बजे से देशभक्ति से ओतप्रोत कवि गोष्ठी का प्रसारण किया जाएगा। प्रतिभागी कवि- सुशील भोले, मयंक शर्मा, राममूरत शुक्ल एवं गणेश सोनी प्रतीक होंगे । संचालन पद्मलोचन शर्मा मुंहफट करेंगे।



Wednesday 20 January 2016

तोर मेहनत के लागा ल...















तोर मेहनत के लागा ल, तोर करजा के तागा ल
उतार लेतेंव रे, मैं ह अपन दुवार म.........

देखत हावौं खेत-खार म जाथस तैं ह
मंझनी-मंझनिया देंह ठठाथस तैं ह
जाड़ न घाम चिन्हस, बरखा न बहार देखस
ठउका उही बेर तोला पोटार लेतेंव रे, मैं ह अपन.......

कहिथें बंजर-भांठा हरियाथे उहें
तोर मेहनत के पछीना बोहाथे जिहें
परबत सिंगार करय, नंदिया दुलार करय
ठउका इही बानी महूं दुलार लेतेंव रे, तोला अपन....

तैं तो दानी म बनगे हस औघड़ दानी
भले नइए तोर बर खदर के छानी
सुख ल तिरियाई देथस, दुख ल कबियाई लेथस
ठउका अइसनेच म तोला जोहार लेतेंव रे, मैं ह अपन....

सुशील भोले
संपर्क : 41-191, कस्टम कालोनी के सामने,
 डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811

Monday 18 January 2016

धरती सरी चतवार चाही...













चिटिक खेत अउ भर्री नहीं, हमला सफ्फो खार चाही
हमर हाथ हे जबड़ कमइया, धरती सरी चतवार चाही...

हमर पेट ह पोचवा हे अउ, तोर कोठी म धान सरत हे
हमरे खातिर तोर गाल ह, बोइर कस बम लाल होवत हे
गाय-गरु कस पसिया नहीं, अब लेवना के लगवार चाही....

तन बर फरिया-चेंदरी नहीं, अउ तैं कहिथस जाड़ भागगे
घर म भूरीभांग नहीं तब, सुख के कइसे उमर बाढग़े
चिरहा कमरा अउ खुमरी नहीं, अब सेटर के भरमार चाही...

ठाढ़ चिरागे दूनों पांव ह, जरत मंझनिया के सेती
हमर देंह ह होगे हे का, कइसे रे तोरेच पुरती
अब बेंवई परत ले साहन नहीं, हमला सुख-सत्कार चाही...

सुन-सुन बोली कान पिरागे, आश्वासन के धार बोहागे
घुड़ुर-घाडऱ लबरा बादर कस, अब तो तोरो दिन सिरागे
हमला आंसू कस बूंद नहीं, अब महानदी कस धार चाही....

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 80853-05931, 98269-92811

Sunday 17 January 2016

कब होबो सजोर...














सुन संगी मोर, कब होबो सजोर
आंखी ले झांकत हे, आंसू के लोर....

काला अच्छे दिन कहिथें, मन मोर गुनथे
तिड़ी-बिड़ी जिनगी ल, मोती कस चुनथे
किस्मत गरियार होगे, ते लेगे कोनो चोर.....

सरकार तो देथे कहिथें आनी-बानी के काम
बीच म कर देथे फेर, कोन हमला बेकाम
मुंह के कौंरा नंगाथे, देथे कनिहा ल टोर....

रंग-रंग के गोठ होथे, रंग-रंग के बोल
आगे सुराज कहिके, पीटत रहिथें ढोल
फेर बरही दीया सुख के, कब होही अंजोर...

सुशील भोले 
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Wednesday 13 January 2016

अब बघवा बनव रे....

















कब तक पिछवाए रइहू अब तुम अगुवा बनव रे
नंगत लूटे हें हक ल तुंहर अब बघवा बनव रे...

छाती चढ़-चढ़ रार मचाए हवंय बैरी बइमान
निच्चट करिया परगे हावय, तुंहर जम्मो दिनमान
काटे बर उंकर करिया जादू, तुम सधुवा बनव रे
नंगत लूटे हें हक ल तुंहर अब बघवा बनव रे...

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931 

कइसे नइ होही धरमयुद्ध ....


















पांडव मन के हक के खातिर लड़ई आय जब धरमयुद्ध
चोट्टा रावन के बध करना जब हो सकथे जी धरमयुद्ध
तब मूल निवासी मन के हक-अधिकार के रक्षा करना
उंकर विकास खातिर लडऩा, कइसे नइ होही धरमयुद्ध

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931 

गीता के ज्ञान के अनुसार....

* दुश्मनों के साथ खड़े होने वाले चाचा, मामा, भाई या पितामह नहीं, सिर्फ दुश्मन ही होते हैं, तो राष्ट्रीयता के नाम पर क्षेत्रिय उपेक्षा का खेल खेलने वालों के साथ खड़े होने वाले भी दुश्मन ही हुए। इसलिए जरूरी है कि ऐसे दुश्मनों का भी संहार करें, जिनकी आड़ में बाहरी कहे जाने वाले यहां तांडव कर रहे हैं।
अब छत्तीसगढ़ में संकरनस्ल के नहीं, आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाएं...

***********

* जब तक दुनिया के हर क्षेत्र के मूल निवासियों के अधिकारों एवं उनकी अस्मिता की रक्षा नहीं की जाएगी, तब तक दुनिया में कभी भी शांति और खुशहाली नहीं आएगी।

********************

* अपने अधिकार और अस्मिता की रक्षा के लिए लड़ा जाने वाला हर युद्ध, धर्मयुद्ध है।

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05

Tuesday 12 January 2016

कइसे पाबे तैं अधिकार....

जब तक दिल्ली म बइठे हे, तोर भाग के खेवनहार
तब तक बेटा छत्तीसगढिय़ा, कइसे पाबे तैं अधिकार

तोर घर अउ तोरे अंगना, फेर नीति वोकर चलत हे
एकरेच सेती जम्मो बैरी, तोर छाती म कूदत हें
वोकर इहां जतका मोहरा हें, करथें भावना के बैपार....

राष्ट्रीयता के माने नोहय, इहां के मुंह म पैरा बोजंय
अउ चारों मुड़ा के धन-दौलत ल, अंखमुंदा उन लूटंय
अब तो चेत जा परबुधिया, अपन-बिरान के कर चिनहार....

अपन हाथ म राज लिए बर, अपन फौज बनाना परही
जे मन दोगलाही करथें, उंकरो मौत मनाना परही
कतकों मीत-मितानी होवय, तभो कतर रे जस कुसियार....

सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल -  sushilbhole2@gmail.com

मेरा धर्म युद्ध...


* यदि पांडवों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध धर्मयुद्ध है, तो छत्तीसगढिय़ों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध भी धर्मयुद्ध है... तो आइए इस महायज्ञ में अपनी आहुति दें...
अब संकरनस्ल के नहीं, आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाएं...

*********

* जब तक मेरा घर भूखा है... मेरे बच्चों के तन पर कपड़ों का एक टुकड़ भी नहीं है ... माफ करना ... तब तक मैं किसी दूसरे को दान देने का ढोंग नहीं कर सकता...
और तब तक केवल जय छत्तीसगढ़... इसके अलावा और कुछ भी नहीं...
अब संकरनस्ल के नहीं, आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाएं...

*********

* छत्तीसगढिय़ा राज आन्दोलन के संबंध में किसी भी प्रकार की चर्चा के लिए आप मुझसे- ब्लॉक बी-1, प्रथम तल, बाम्बे मार्केट, राज टाकीज के सामने, रायपुर (छत्तीसगढ़) में प्रात: 11 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक कभी भी मिल सकते हैं।

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931 

Monday 11 January 2016

राष्ट्रीयता या नमक हरामी...?

जहां का अन्न-जल खाकर तुम जी रहे हो, जहां के स्वच्छ वातावरण में तुम सांस ले रहे हो, यदि वहां की भाषा, संस्कृति और लोगों के विकास में तुम भागीदार नहीं बनते, तो तुमसे बड़ा नमक हराम और गद्दार और कोई नहीं हो सकता। लेकिन दुखद है कि तुम यहां की स्थानीय अस्मिता को उपेक्षित करने यहां के मूल निवासियों के मुंह से निवाला छीनने, इनके मूलभूत अधिकारों का दमन करने को ही राष्ट्रीयता कहते हो। मैं तुम्हारे इस तथाकथित राष्ट्रीयता की परिभाषा को नमक हरामी कहता हूं... गद्दारी कहता हूं।

अब छत्तीसगढ़ में संकरनस्ल के नहीं आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाना है। तथाकथित राष्ट्रीय पार्टियों में सवार कथित छत्तीसगढिय़ों को  भी मैं संकरनस्ल का ही छत्तीसगढिय़ा कहता हूं, क्योंकि इनकी आड़ में ही बाहरी कहे जाने वाले लोग यहां तांडव कर रहे हैं।

राष्ट्रीयता के नाम पर स्थानीयता की उपेक्षा करने वाले, ऐसे तमाम नमक हरामों से मुक्ति और आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाना ही अब मेरा धर्मयुद्ध है।

यदि पांडवों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध धर्मयुद्ध है, तो छत्तीसगढिय़ों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध भी धर्मयुद्ध है... तो आइए इस महायज्ञ में अपनी आहुति दें...

अब संकरनस्ल के नहीं, आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाएं...

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931 

छेरछेरा : दान देने और लेने का पर्व


छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा दुनिया का एकमात्र एेसा पर्व है, जब यहां के छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी दान मांगने और देने को कार्य को अपनी संस्कृति का गौरवशाली रूप मानते हैं। विश्व के किसी अन्य भाग में एेसा पर्व और कहीं दिखाई नहीं देता, जहां भिक्षा मांगने को पर्व के रूप में मनाया जाता हो।

पौस माह की पूर्णिमा तिथि को  *छेरछेरा* का यह जो पर्व मनाया जाता है, वह भगवान शिव द्वारा पार्वती के घर जाकर भिक्षा मांगने के प्रतीक स्वरूप मनाया जाने वाला पर्व है।

आप सभी को यह ज्ञात है कि पार्वती से विवाह पूर्व भोलेनाथ ने कई किस्म की परीक्षाएं ली थीं। उनमें एक परीक्षा यह भी थी कि वे नट बनकर नाचते-गाते पार्वती के निवास पर भिक्षा मांगने गये थे, और स्वयं ही अपनी (शिव की) निंदा करने लगे थे, ताकि पार्वती उनसे  (शिव से) विवाह करने के लिए इंकार कर दें।

छत्तीसगढ़ में जो छेरछेरा का पर्व मनाया जाता है, उसमें भी लोग नट बनकर नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने के लिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी भागों में तो अब नट बनकर (विभिन्न प्रकार के स्वांग रचकर) नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने जाने का चलन कम हो गया है, लेकिन यहां के बस्तर क्षेत्र में अब भी यह प्रथा बहुतायत में देखी जा सकती है। वहां बिना नट बने इस दिन कोई भी व्यक्ति भिक्षाटन नहीं करता।

ज्ञात रहे इस दिन यहां के बड़े-छोटे सभी लोग भिक्षाटन करते हैं, और इसे किसी भी प्रकार से छोटी नजरों से नहीं देखा जाता, अपितु इसे पर्व के रूप में देखा और माना जाता है। और लोग बड़े उत्साह के साथ बढ़चढ़ कर दान देते हैं। इस दिन कोई भी व्यक्ति किसी भी घर से खाली हाथ नहीं जाता। लोग आपस में ही दान लेते और देते हैं।

 इस छेरछेरा पर्व के कारण यहां के कई गांवों में कई जनकल्याण के कार्य भी संपन्न हो जाते हैं। हम लोग जब मिडिल स्कूल में पढ़ते थे, तब हमारे गुरूजी पूरे स्कूल के बच्चों को बैंडबाजा के साथ पूरे गांव में भिक्षाटन करवाते थे, और उससे जो धन प्राप्त होता था, उससे बच्चों के खेलने के लिए और व्यायाम से संबंधित तमाम सामग्रियां लेते थे।

मुझे स्मरण है, हमारे गांव में कलाकारों की एक टोली थी, जो इस दिन पूरे रौ में होती थी। मांदर-ढोलक और झांझ-मंजीरा लिए जब नाचते-गाते, डंडा के ताल साथ कुहकी पारते (लोकनृत्य में यह एक शैली है ताल के साथ मुंह से आवाज निकालने की इसे ही कुहकी पारना कहते हैं) यह टोली निकलती थी तो लोग उन्हें दान देने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते थे। उस टोली को अपने यहां आने का अनुरोध करते थे। छेरछेरा का असली रूप और असली मजा ऐसा ही होता था, जो अब कम ही देखने को मिलता है।

ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं वह सृष्टिकाल की संस्कृति है। युग निर्धारण की दृष्टि से कहें तो सतयुग की संस्कृति है, जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने के लिए हमें फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।

मित्रों, सतयुग की यह गौरवशाली संस्कृति आज की तारीख में केवल छत्तीसगढ़ में ही जीवित रह गई है, उसे भी गलत-सलत व्याख्याओं के साथ जोड़कर भ्रमित किया जा रहा। मैं चाहता हूं कि मेरे इसे इसके मूल रूप में पुर्नप्रचारित करने के सद्प्रयास में आप सब सहभागी बनें...।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

Saturday 9 January 2016

रमन के गोठ.....















रमन के गोठ, अपने पीठ ल ठोक
काम-धाम कुछु नहीं, बात होथे पोठ
थूके-थूक म बरा कइसे चुरोथे रोठ
ए बात ल जानना हे त सुन फालिया-गोठ

* सुशील भोले

Friday 8 January 2016

देखे सपना धुआं होगे....

राज बनगे-राज बनगे, देखे सपना धुआं होगे
चारों मुड़ा कोलिहा मन के, देखौ हुआं-हुआं होगे

का-का सपना देखे रिहिन पुरखा अपन राज बर
नइ चाही उधार के राजा, हमला सुख-सुराज बर
राजनीति के पासा लगथे, महाभारत के जुआ होगे.....

शेर-बघवा भालू-चीता, हाथी के चिंघाड़ नंदागे
सत रद्दा रेंगइया मन के इतिहास ले नांव भुलागे
जतका ढोंगी, जोगी-भोगी, तेकरे मन बर दुआ होगे....

तिड़ी-बिड़ी छर्री-दर्री, हमर चिन्हारी के परिभाषा
कला-साहित्य सबो जगा, चील-कौंवा के होगे बासा
बाहिर ले आये मन संतवंतीन, घर के नारी छुआ होगे....

अरे कूदौ-फांदौ टोरौ-पोंछौ, काजर कस अंधरौटी ल
अपने खातिर बेलव-सेंकव, स्वाभिमान के रोटी ल
खूब पेराये हौ कुसियार बरोबर, सरबस छुहा-छुहा होगे...

सुशील भोले
 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर  रायपुर
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय पार्टी की आवश्यकता...

छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आये 15 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस बीच  देश की दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों की सरकार हमने देख लिया है। दोनों ही पार्टी यहां की अस्मिता और मूल निवासियों की समस्या, उनके अधिकारों के प्रति लापरवाह रही हैं। यह कहना ज्यादा अच्छा होगा कि इन पार्टियों ने राष्ट्रीयता के नाम पर क्षेत्रिय उपेक्षा का नंगा नाच किया है। यहां के लोगों को  कमजोर बनाने, विस्थापित करने का षडयंत्र रचा है। यहां के संसाधनों को लूटकर अपने और अपने घर वालों को मालामाल किया है।

कुल मिलाकर यह कहना ज्यादा अच्छा होगा कि  जिन उद्देश्यों को लेकर यहां के महापुरुषों ने पृथक राज्य का स्वप्न देखा और उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए राज्य आंदोलन का श्रीगणेश किया, वह कहीं से भी सार्थक होता दिख नहीं रहा है।    

देश के कई अन्य राज्यों में एेसे ही हृदय विदारक दृश्यों के चलते स्थानीय पार्टियों ने जन्म लिया है, और उसका परिणाम भी सुखद रहा है। तो क्या छत्तीसगढ़ में भी एक एेसी ही क्षेत्रिय पार्टी का गठन नहीं किया जाना चाहिए जो स्थानीय लोगों, उनके अधिकार और अस्मिता के लिए निःस्थार्थ काम कर सके।

यहां पहले कुछ लोग स्थानीय पार्टी बनाने का काम कर चुके हैं, लेकिन वे राष्ट्रीय दलों से "खेदारे" हुए लोग थे, या फिर एेसे लोग थे जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध थी, इसीलिए वे सफल नहीं रहे। कुछ एेसे भी लोग थे जो छत्तीसगढ़िया के नाम पर गैर छत्तीसगढ़िया लोगों को या कहें "शंकरनस्ल" के छत्तीसगढ़िया लोगों को "मूल" छत्तीसगढ़िया के सिर पर लाद देना चाहते थे। यह भी उनके आंदोलन के असफल होने का कारण रहा है।

अब छत्तीसगढ़ को "आरुग" छत्तीसगढ़िया लोगों की पार्टी की आवश्यकता है। एेसे छत्तीसगढ़िया जो "दिल्ली" में बैठे लोगों की जय बोलाने को ही राष्ट्रीयता ना समझे। एेसा "आरुग" छत्तीसगढ़िया केवल क्षेत्रिय पार्टियों के माध्यम से ही हमें मिल सकता है। तो आईये "आरुग छत्तीसगढ़िया" लोगों की एक स्थानीय पार्टी को मूर्त रूप देने के दिशा में कदम बढ़ायें...

जय छत्तीसगढ़...  जय छत्तीसगढ़ी..  जय छत्तीसगढ़िया...

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. नं. 080853-05931, 098269-92811

Thursday 7 January 2016

तभे पुरखा मन के सपना होही साकार...

परदेशिया राज से मुक्त होने का आव्हान
------------------------
छत्तीसगढिय़ा मन जब होहीं एकाकार
तभे पुरखा मन के सपना होही साकार
----
छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना अपनी मूल संस्कृति और महापुरुषों को स्मरण करने का लगातार प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में  नए वर्ष की नव प्रभाती में 3 जनवरी को संस्कारधानी-न्यायधानी बिलासपुर के मुंगेली नाका स्थित ग्रीन गार्डन में महान संत और मनखे-मनखे एक बरोबर के उद्घोषक गुरु घासीदास जी को 'पुरखाÓ के रूप में 'सुरताÓ किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में गुरु घासीदास जी की सातवीं और आठवीं पीढ़ी के वंशज गुरु बालदास जी एवं गुरु सोमेश दास जी उपस्थित थे.

जनवरी की सर्द हवाओं में अंगारा दहकाते हुए प्राय: सभी वक्ताओं ने सभी छत्तीसगढिय़ा समाज को एकजुट होकर परदेशिया राज से मुक्त होने का आव्हान किया. भंडारपुरी गुरुद्वारा के गद्दीनशीन गुरु बालदास जी ने अपने उद्बोधन में सभी छत्तीसगढिय़ा समाज को एकजुट होने का आव्हान किया. उन्होंने कहा, गुरु बाबा घासीदास जी का संदेश केवल सतनामी समाज के लिए नहीं, अपितु समस्त मानव समाज के लिए है. उनके बताए रास्ते पर चलकर ही हम छत्तीसगढिय़ा राज का सपना साकार कर सकते हैं. हमारे महापुरुषों ने छत्तीसगढिय़ा राज का जो स्वप्न देखा था, वह तभी साकार होगा जब हम एकजुट होकर परदेशिया लोगों से मुकाबला करेंगे. उनके बांटो और राज करो की नीति को मुंहतोड़ जवाब देंगे.

गुरु घासीदास जी की आठवीं पीढ़ी के वंशज ब्रम्हचारी सोमेश दास जी ने भी संपूर्ण छत्तीसगढिय़ा समाज को एकजुट होने का आव्हान किया. उन्होंने कहा, 'गुरु घासीदास जी के बताए रस्ता म रेंगबो, तब हमला उंकर आशीर्वाद मिलही अउ तभे हमर पुरखा मन के छत्तीसगढिय़ा राज के सपना साकार होही.Ó उन्होंने कहा, सतनाम का संदेश समस्त मानव जाति को एक करने का है. आज हम विभिन्न जातियों में बंटकर बिखरे हुए हैं. इसी का फायदा बाहरी लोग उठाते हैं. हमें आपस में उलझाते और लड़ाते हैं. और मु_ी भर लोग हम पर राज कर लेते हैं.

'पुरखा के सुरताÓ कार्यक्रम की शुरूआत छत्तीसगढ़ महतारी एवं गुरु घासीदास जी की वंदना-आरती के साथ हुई. इसके पश्चात छत्तीसगढ़ी भाषा के पुरोधा साहित्यकार, भाषाविद् डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा को दो मिनट की श्रद्धांजलि अर्पित की गई. तत्पश्चात वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी नंद किशोर शुक्ला ने गुरु घासीदास जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, जिस प्रकार अंग्रेजों ने हमें जात-पात में बांटकर इस देश में राज किया, उसी प्रकार ये बाहरी लोग भी हमको आपस में लड़ा-भिड़ा कर राज कर रहे हैं. गुरु घासीदास जी सभी लोगों को जोड़कर एक पंथ का निर्माण किए हैं, उसी प्रकार हम लोग भी एकजुट होकर छत्तीसगढिय़ा राज का निर्माण करें. 

प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक और डॉ. खूबचंद बघेल जयंती आयोजन समिति, बिलासपुर के संयोजक डॉ. एल.सी. मढ़रिया ने भी समस्त छत्तीसगढिय़ा समाज को एकजुट होने का आव्हान किया. उन्होंने कहा, छत्तीसगढिय़ा किसान अपना खून-पसीना बहाकर धान उपजा रहे हैं, और परदेशिया उसकी बाली को काटकर खा रहे हैं. आज छत्तीसगढ़ में आरुग छत्तीसगढिय़ा नेता की आवश्यकता है.

अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ यादव ने कहा, जिस तरह अन्य प्रदेश के लोग अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति कट्टर हैं, उसी प्रकार हमें भी अपनी अस्मिता के प्रति कट्टर होना पड़ेगा. इसकी शुरूआत हम अपने ही घर से करें.

कृषि वैज्ञानिक डॉ. गजेन्द्र चंद्राकर ने कहा, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात छत्तीसगढिय़ों का शोषण और बढ़ गया है. यहां की जमीनों को गैर छत्तीसगढिय़ा लोगों के हाथों में सौंपने का खुला खेल चल रहा है. प्रतिवर्ष एक लाख कृषि भूमि को गैर कृषि कार्यों के लिए दे दिया जा रहा है. छत्तीसगढ़ का किसान कभी आत्महत्या नहीं करता था. आज पूरे देश में कृषक आत्महत्या के मामले में यह राज्य तीसरे स्थान पर पहुंच गया है. यहां के किसान दिन प्रतिदिन मजदूर बनते जा रहे हैं. आज इस प्रदेश में जितने भी विधायक-सांसद हैं, उनमें बाहरी लोगों और उनकी विचारधारा पर चलने वालों की संख्या ज्यादा है. 

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के संस्थापक स्व. ताराचंद साहू के दामाद और एसीसीएल में अधिकारी के रूप में कार्यरत नागेन्द्र साहू ने स्पष्ट कहा, आज छत्तीसगढ़ को 'स्वाभिमान मंचÓ की नितांत आवश्यकता है. स्व. ताराचंद जी के पुत्र दीपक साहू भले ही राजनीति की धारा में बह गये, लेकिन मैं इस सिद्धांत का समर्थक हूं. आज मुझे बहुत खुशी हो रही है, छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना के बैनर तले फिर से सभी छत्तीसगढिय़ा समाज को एकजुट किया जा रहा है.

शिक्षाविद् डॉ. सोम गोस्वामी ने कहा, शिक्षा, दीक्षा और चिकित्सा सभी क्षेत्रों में आरुग छत्तीसगढिय़ा लोगों को होना चाहिए. नेता अधिकारी सभी लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना चाहिए. इससे एक तो उन स्कूलों के स्तर में सुधार आएगा साथ ही सभी लोगों को एक जैसी शिक्षा मिलेगी. इससे मनखे-मनखे एक बरोबर का गुरु घासीदास का सिद्धांत पूरी तरह लागू होगा. 

कर्मचारी नेता श्याम मूरत कौशिक ने कहा, संगठित होकर बाहरी नेताओं को सभी चुनावों में हरवाना आवश्यक है. उन्होंने कहा सम्पूर्ण छत्तीसगढिय़ा राज की स्थापना के लिए हमारा तन, मन, धन सब कुछ समर्पित है. छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना के युवा नेता अजय यादव ने गुरु घासीदास जी के सिद्धांत और क्रांति सेना की साम्यता पर प्रकाश डाला.

 वरिष्ठ साहित्यकार संस्कृति मर्मज्ञ सुशील भोले ने कविताओं के माध्यम से पूर्ण छत्तीसगढिय़ा राज्य स्थापित करने की बात कही. उन्होंने गुरु घासीदास के चित्रों में एकरूपता लाने की बात उपस्थित धर्म गुरुओं से की. साथ ही आव्हान किया कि ऐसे ग्रंथों का बहिष्कार किया जाना चाहिए जो हमें जाति-वर्ण में बांटने और भेदभाव करने के लिए उकसाते हैं. सुशील भोले ने कहा, अब छत्तीसगढ़ी समाज को आध्यात्मिक गुरुजनों के द्वारा नेतृत्व प्रदान किए जाने की आवश्यकता है. राजनीति के दगाबाज नेताओं ने छत्तीसगढिय़ा उम्मीदों को डूबाकर रख दिया है। इसलिए छत्तीसगढिय़ा आंदोलन की विश्वसनीयता को संदेह की नजरों से देखा जाता है. इस धारणा को बदलने के लिए स्वच्छ छवि के गैर राजनीतिक लोगों के अलावा आध्यात्मिक पुरुषों को इसमें जोड़ा जाना चाहिए.

छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलनकारी दाऊ आनंद कुमार ने कहा, राज्य आन्दोलन हम लोगों ने किया और लाल बत्ती में परदेशिया लोग घूम रहे हैं. उन्होंने कहा, यहां के हर खदान, हर संसाधन पर बाहरी लोग काबिज होते जा रहे हैं. अब छत्तीसगढिय़ों के स्वाभिमान की जीत होनी चाहिए. पूर्णत: छत्तीसगढिय़ा राज्य की स्थापना होगी तभी पुरखों का स्वप्न साकार होगा.

छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना के प्रदेशाध्यक्ष अमित बघेल ने आक्रामक अंदाज में कहा, अब समय आ गया है, हम भगत सिंह की तरह फांसी पर झूलने की बजाय सुभाष की तरह परदेशिया लोगों का संहार कर छत्तीसगढिय़ा राज्य लेंगे. मांगने से भीख मिलता है, सम्मान नहीं. हमको यदि सम्मान चाहिए तो उसे छीनकर लेना होगा. अब मुख्यमंत्री दिल्ली वालों के रहमोकरम पर नहीं छत्तीसगढिय़ा लोगों की मर्जी से बनना चाहिए. ऐसा तभी हो सकता है, जब हम बाबा गुरु घासीदास जी के मनखे-मनखे एक बरोबर के सिद्धांत पर चलकर एक होंगे.

कार्यक्रम के अंत में महिला प्रदेशाध्यक्ष लता राठौर ने आभार व्यक्त किया. विभिन्न वक्ताओं के वक्तव्य के साथ ही साथ जय परिहार, केजूराम टंडन, मनमोहन ठाकुर, आशा सुबोध अनामिका आदि ने काव्यपाठ के माध्यम से छत्तीसगढ़ महतारी के दर्द को व्यक्त किया. सभा का संचालन यशवंत वर्मा ने किया. सभा समाप्ति के पश्चात छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध जोशी बहनों ने पारंपरिक गीतों की आकर्षक प्रस्तुति दी. छत्तीसगढिय़ा अस्मिता के लिए समर्पित इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ रेल कर्मचारी समिति की ओर से प्रसादी-खिचड़ी की व्यवस्था की गई थी. पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्टाल आकर्षण का केन्द्र था, जहां चीला, फरा, ठेठरी, खुरमी जैसे व्यंजन अपनी खुश्बू से लोगों को आकर्षित कर रहे थे.

छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना के संजीव साहू, देव लहरी, राकेश छत्तीसगढिय़ा, सुधांशु गुप्ता, तुकाराम साहू, वासंती वर्मा, तुलसी देवी तिवारी, भुवन वर्मा, सोनू नेताम गोंड़ ठाकुर, मिलन मलरिहा, ध्रुव देवांगन, गिरधर साहू, दिनेश बारले, रश्मि गुप्ता, किरण शर्मा, नीतेश, बलवंत बंजारे सहित प्रदेश के दूरस्थ अंचलों से आये सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने इस गरिमामय आयोजन में अपना योगदान दिया.

*सुशील भोले *
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. नं. 080853-05931, 098269-92811

हमर मूल परब-तिहार

* सावन अमावस - हरेली (मांत्रिक शक्ति प्रागट्य दिवस)
* सावन अंजोरी पंचमी - नाग पंचमी (वासुकी जन्मोत्सव)
* सावन अंजोरी आठे ले भोजली परब 
* सावन पुन्नी - परमात्मा के शिवलिंग रूप म अवतरण दिवस
* भादो अंधियारी छठ - कमरछठ (कार्तिकेय जन्मोत्सव)
* भादो अमावस - पोरा (नंदीश्वर जन्मोत्सव)
* भादो अंजोरी तीज - तीजा (पार्वती द्वारा शिव प्राप्ति खातिर करे गए तप दिवस)
* भादो अंजोरी चौथ - गणेश जन्मोत्सव
* कुंवार अंधियारी पाख - पितर पाख
* कुंवार अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति के पार्वती रूप म अवतरण दिवस)
* कुंवार अंजोरी दशमी - दसहरा (समुद्र मंथन ले निकले विष के हरण दिवस)
* कुंवार पुन्नी - शरद पुन्नी (अमरित पाए के परब)
कातिक अंधियारी पाख - कातिक नहाए अउ सुवा नाच के माध्यम ले शिव-पार्वती बिहाव के तैयारी पाख
* कातिक अमावस्या - गौरा-गौरी पूजा (शिव-पार्वती बिहाव परब)
* कातिक पुन्नी ले शिवरात्रि तक - मेला-मड़ई के परब
* अगहन पुन्नी - परमात्मा के ज्योति स्वरूप म प्रगट दिवस
* पूस पुन्नी - छेरछेरा (शिव जी द्वारा पार्वती के घर नट बनके जाके भिक्षा मांगे के परब)
* माघ अंजोरी पंचमी - बसंत पंचमी (शिव तपस्या भंग करे बर कामदेव अउ रति के आगमन के प्रतीक स्वरूप अंडा पेंड़ गडिय़ाना, नाचना-गाना, सवा महीना के परब मनाना)
* फागुन अंधियारी तेरस - महाशिवरात्रि (परमात्मा के जटाधारी रूप म प्रगटोत्सव पर्व)
* फागुन पुन्नी - होली या काम दहन परब (तपस्या भंग करे के उदिम रचत कामदेव ल क्रोधित शिव द्वारा तीसरा नेत्र खोल के भस्म करे के परब)
* चैत अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति के सती रूप म अवतरण दिवस)
* बइसाख अंजोरी तीज - अक्ति (किसानी के नवा बछर)


************
सिरिफ अपन धरम अउ संस्कृति ह मनखे ल आत्म गौरव के बोध कराथे, जबकि दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रस्ता देखाथे।
******************


यदि राजनीतिक गुलामी से मुक्त होना चाहते हो, तो सबसे पहले धार्मिक और सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त हो, क्योंकि इनके नाम पर ही बाहरी कहे जाने वाले लोग तुम पर राज कर रहे हैं। ...

***********

सुशील भोले
संस्थापक : आदि धर्म सभा
54/191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)
मोबा. नं. 98269 92811, 80853 05931

Tuesday 5 January 2016

सन् 2016 म हमर परब-तिहार....

छेरछेरा - 24 जनवरी
बसंत पंचमी - 12 फरवरी
माघी पुन्नी मेला  - 22 फरवरी
महाशिवरात्रि - 7 मार्च
होली - 23 मार्च
चैत नवरात - 8 अप्रेल ले
अक्ति - 9 मई
रथ यात्रा - 6 जुलाई
हरेली - 2 अगस्त
नाग पंचमी - 7 अगस्त
भोजली परब - 12 अगस्त ले
राखी - 18 अगस्त
कमरछठ - 23 अगस्त
पोरा - 1 सितम्बर
तीजा - 4 सितम्बर
गनेस चउथ - 5 सितम्बर
कुंवार नवरात - 1 अक्टूबर ले
दंसहरा - 11 अक्टूबर
शरद पुन्नी - 15 अक्टूबर
सुरहुत्ती, देवारी, गौरी-गौरा - 30 अक्टूबर
कातिक पुन्नी मेला - 14 नवंबर

----------------------------------------------------------------------

सिरिफ अपन धरम अउ संस्कृति ह लोगन ल आत्म गौरव के बोध कराथे, दूसर के संस्कृति ह गुलामी के रद्दा देखाथे।

* सुशील भोले *
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. नं. 080853-05931, 098269-92811

Friday 1 January 2016

चंदूलाल चंद्राकर याद किए गये...

पूर्व केन्द्रीय मंत्री, हिन्दुस्तान टाईम्स के संपादक रहे स्व. चंदूलाल  चंद्राकर की 96 वीं जयंती के अवसर पर 1 जनवरी 2016 को डंगनिया, रायपुर स्थित चंद्राकर छात्रावास के सभागार में आयोजित विशेष कार्यक्रम का आयोजन सर्व कुर्मी समाज के रायपुर महानगर ईकाई द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में आशाराम वर्मा, सुशील भोले, ललित बघेल, भगवती चंद्राकर, भक्त भूषण चंद्रवंशी, पद्मा चंद्राकर, सरिता वर्मा, सुनीता हनुमंता, मंजू धुरंधर, शैलेन्द्र नायक सहित सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।
कार्यक्रम की शुरूआत चंदूलाल जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुई। इसमें वक्ताओं ने उनसे संबंधित अपने संस्मरण सुनाये।



दैनिक नवभारत, रायपुर के 3 जनवरी 2016 अंक में प्रकाशित समाचार