Monday 1 February 2016

इतिहास लेखन की सत्यता...


इतिहास के नाम पर छत्तीसगढ़ में जितने भी लेखन हुए हैं, उनमें से किसी को भी निष्पक्ष और सत्यता के मापदण्ड पर खरा नहीं माना जा सकता. मैं हमेशा कहता रहा हूँ कि यहां के मूलधर्म और संस्कृति के साथ ही साथ तमाम ऐतिहासिक लेखन को एक निष्पक्ष समिति के माध्यम से पुर्नलेखन किया जाना आवश्यक है.

अभी-अभी एक ताजातरीन किताब हाथ में आयी है- "छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का इतिहास" छत्तीसगढ़ी सेवा मंडल, छत्तीसगढ़ी भवन हांडीपारा रायपुर द्वारा प्रकाशित इस किताब के संपादक मंडल में जागेश्वर प्रसाद, जी.पी. चंद्राकर, दीनदयाल वर्मा एवं अनिल दुबे के नाम अंकित हैं. कुल 290 पृष्ठों वाली किताब का मूल्य 90 रुपए है.

चूंकि हम लोग भी छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन, भाषा और संस्कृति आंदोलन से जुड़े रहे हैं, इसलिए इच्छा हुई कि इस किताब को पूरा पढ़ा जाए. लेकिन पुस्तक को पढऩे के बाद घोर निराशा इसलिए हुई, क्योंकि इस "छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का इतिहास" नामक किताब में एक अकेली छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी ने जो आंदोलन किया है, केवल उसके ही बारे में लिखा गया है. एक अकेली पार्टी के द्वारा किया गया, आंदोलन, संपूर्ण राज्य आंदोलन का इतिहास कैसे हो सकता है. यदि इस किताब का नाम "'छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन" में छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी की भागीदारी जैसा कोई नाम होता तो भले ही स्वीकार किया जा सकता था।

इस बात को सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन में प्रदेश के सैकड़ों संगठन और सभी जातीय समाज द्वारा अपने-अपने स्तर पर आवाज बुलंद किया गया था. सबसे ज्यादा यहां के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों ने इस मुद्दे को उठाया है. जहां कहीं भी छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य, संस्कृति से संबंधित कोई भी कार्यक्रम होता, तो उसमें पृथक राज्य से संबंधित कविता या वक्तव्य अवश्य गूंजता.

आश्चर्य होता है, इस तरह के इतिहास लेखन से लोगों को संकोच कैसे नहीं होता. जितने की इस तरह के लेखन देखे जा रहे हैं, सभी में केवल अपने आसपास के लोगों को ही उल्लेखित किया जाता है, ऐसे में उन्हें संपूर्ण इतिहास का दर्पण कैसे माना जा सकता है.

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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