Monday 20 June 2016

डेंगू और मलेरि‍या का मारक इलाज है 'चापड़े' की चटनी...


 बस्तर के आदिवासियों में भोजन के साथ चापड़ा (लाल चींटे) की चटनी खास तौर पर लजीज और औषधीय मानी जाती है। जंगल में पाए जाने वाला लाल चींटा जिसे चापड़ा कहा जाता है। इसे बस्तरिया ग्रामीण बड़े चाव से इसका उपयोग चटनी बनाकर खाने में करते हैं।

 ग्रामीण बताते हैं कि टमाटर, हरी धनिया और मिर्ची के मिश्रण से चापड़ा की लजीज चटनी पीसी जाती है। ग्रामीणों के अनुसार इसके सेवन से मलेरिया तथा डेंगू की बीमारी ठीक हो जाती है। आमतौर पर ऐसी मान्यता है कि साधारण बुखार होने पर ग्रामीण पेड़ के नीचे बैठकर चापड़ा (लाल चीटों) से स्वयं को कटवाते हैं, इससे ज्वर उतर जाता है। चापड़ा की चटनी आदिवासियों के भोजन में अनिवार्य रूप से शामिल होती है।

बस्तर के हाट बाजारों में बहुतायत में चापड़ा 5 रूपए दोना में बेचा जाता है। ग्रामीण जंगल जाकर पेड़ के नीचे गमछा, कपड़ा बिछाकर शाखाओं को जोर-जोर से हिलाते हैं, जिससे चींटें झड़कर नीचे गिरते हैं, उन्हें इकट्ठा कर बेचने के लिए बाजार लाया जाता है।

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