Friday 3 June 2016

छत्तीसगढिय़ावाद और अजीत जोगी....

कांग्रेस की स्थानीय राजनीति में अपने हर प्रतिद्वंद्वी को नेस्तनाबूद कर देने के लिए हमेशा एक पैर पर खड़े रहने वाले अजीत जोगी, इन दिनों क्षेत्रीय पार्टी बनाने के रास्ते पर चल पड़े हैं। अपने पुत्र अमित जोगी को कांग्रेस की बर्खास्तगी से नहीं बचा पाने और स्वयं भी निष्काषन की कगार पर खड़ा होने के कारण अपने अंतिम दांव के रूप में नई पार्टी बनाने  की लगभग घोषणा कर दिए हैं। लेकिन प्रश्न अब यह है कि क्या जोगी इस क्षेत्रीय पार्टी को छत्तीसगढिय़ावाद के मापदंड पर खड़ा करेंगे या अपनी घिसी-पिटी कांग्रेसी चाल पर ही चलते रहेंगे?

इस बात को यहां के लोग अब तक नहीं भूले हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के साथ जब अजीत जोगी पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब यहां के मूल निवासियों की उम्मीद बढ़ गई थी। उन लोगों को लग रहा था कि उन्हें यहां विशेष तवज्जो मिलेगा। यहां की अस्मिता, भाषा-संस्कृति देश के नक्शे पर सम्मानित होगी। यहां के शिक्षित युवक-युवती  शासन के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होंगे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, लोगों की उम्मीदों पर पानी फिरता गया। जोगी, सोनिया गांधी की जय बोलाने और स्थानीय लोगों को जाति-पाती के नाम पर लड़ाने और बरगलाने के अलावा और कुछ नहीं किए। छत्तीसगढ़ की दो प्रमुख स्वाभिमानी जाति कुर्मी और सतनामी को बार-बार लड़ाने की कोशिश की गई, और यह कोशिश आज भी जारी है।

राज्य निर्माण के साथ ही यहां के प्रमुख भवनों का नामकरण प्रारंभ हुआ, और यहीं से ही जोगी की असलियत सामने आने लगी। पहले दिन मनवा कुर्मी समाज का महाधिवेशन रायपुर के पंडरी में आयोजित था। वहां उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल के नाम पर विधान सभा भवन का नामकरण करने की घोषणा की। ठीक इसके दूसरे दिन सतनामी समाज का कार्यक्रम था, वहां जाकर उन्होंने उसी भवन का नाम मिनी माता के नाम पर करने की घोषणा कर दी। उनके इस विरोधाभाषी घोषणा पर दोनों ही समाज के लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया था,। यह एक ऐतिहासिक सत्य है।

अजीत जोगी यहां की अस्मिता के प्रति हमेशा उदासीन रहे। उनके कार्यकाल में न तो यहां की भाषा के लिए किसी आयोग का गठन किया गया, और न ही मूल संस्कृति के संरक्षण संवर्धन के कोई विशेष पहल की गई। यहां का बहुसंख्य समाज ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) उनकी उपेक्षा का हमेशा शिकार रहा। उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में और तो और पिछड़ा वर्ग विकास आयोग का गठन भी नहीं किया। उनके ऐसे ही क्रियाकलापों के चलते राज्य निर्माण के पश्चात पहली बार हुए चुनाव में उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया। यह सिलसिला लगातार तीन चुनावों में हैट्रिक लगा चुका है। अब तक उनकी पार्टी में यह स्थिति निर्मित हो चुकी  थी, कि उन्हें पार्टी से 'खो" करने की कोशिश की जा रही थी। तभी वे अपनी लंगोटी बचाने के लिए खुद ही कांग्रेस से निकलने और एक नई क्षेत्रीय पार्टी बनाने की दिशा में आगे बढ़ गये।

अब देखना यह है कि इस पार्टी को किस मापदण्ड पर स्थापित करते हैं। क्योंकि छत्तीसगढिय़ावाद को समाप्त करने में तो उनका ही प्रमुख योगदान रहा है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में मुख्यमंत्री निवास केवल बाहरी लोगों से गुलजार रहता था। बाद के दिनों सागौन बंगला भी ऐसे ही तत्वों से भरा रहा। इसलिए मन में यह प्रश्न कौंधना लाजिमी है कि उनकी क्षेत्रीय पार्र्टी का मापदंड क्या होगा?

सुशील भोले
9826992811, 808530593

No comments:

Post a Comment