Friday 17 June 2016

माँ : रीना उर्फ जयंती


मेरे कार्यालय में एक झाड़ू-पोछा लगाने वाली बाई है। लोग उसे रीना के नाम से जानते हैं। उसका असली नाम है-जयंती। छत्तीसगढ़ के महान संत गुरु घासीदास जी की जयंती 18 दिसंबर को होती है। इसी दिन रीना का जन्म हुआ था, इसलिए माता-पिता ने उसका नाम जयंती रख दिया। लेकिन बाद में रीना ने अपना नाम स्वयं रखा, और वह इसी नाम से जानी जाती है।

रीना जब मात्र 17 साल की थी तब उसकी शादी हो गई थी, और इसके ठीक दो वर्ष बाद 19 वर्ष की अवस्था में वह विधवा हो गई। इस बीच उसकी गोद में एक पांच माह का बेटा आ चुका था, जो आज भी उसके जीने का एकमात्र सहारा है। 

रीना आज 36 वर्ष की हो चुकी है। बेटा मयंक 9 वीं कक्षा का छात्र है, जो उसका पूरा संसार है। रीना इसे झाड़ू-पोछा जैसे छोटे-मोटे काम कर के पाल-पोस भी रही है, और एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ा भी रही है। 

रीना बेहद खूबसूरत है। जो भी देखता है, उससे आकर्षित और प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। कई लोग उसे आज भी पुर्नविवाह के लिए प्रस्ताव दे देते हैं। लेकिन रीना है कि अपने बेटे के अलावा और किसी चीज के लिए सोचती भी नहीं। 

ऐसा नहीं है कि रीना किसी गरीब परिवार की बहू है। इसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न कहलाता है। लेकिन सास-ससुर दकियानुस सोच के हैं। बेटा के कम उम्र में निधन हो जाने के कारण इसे अपशकुनी मानते हैं, इसलिए वे इसे किसी प्रकार का सहयोग नहीं करते। परिणाम स्वरूप रीना को अपना और अपने बेटे के जीवकोपार्जन के लिए छोटे-मोटे काम करने पड़ते हैं। 

रीना मुझे भैया कहती है। जब भी मुझसे बात करती है, तो केवल अपने बेटे के ही विषय में बात करती है। मैंने माताओं की महानता के अनेक किस्से पढ़े और सुने हैं। मुझे लगता है कि रीना के जीवन को भी उन महान और प्रेरणाप्रद कहानियों की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। भगवान ऐसी माँ हर संतान को दे।  

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
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