Thursday 20 April 2017

जब सावन के सुरसुरी फूटथे...

सावन के सुरता आते मन म उमंग के सुरसुरी फूट परथे। प्रकृति के जवानी चारों खुंट जब लहलहाथे तब मनखे के रूआं-रूआं कुलके अउ हुलसे लागथे। इही हुलसना अउ कुलकना ह हमर संस्कृति के साज बन जाथे, सिंगार बन जाथे। ं भुइयां के मूल संस्कृति म सावन महीना के बड़ महात्तम हे। ये महीना ल शिव उपासना के महीना घलो कहे जाथे। सृष्टिक्रम प्रारंभ होए के बाद देवता मन के अरजी करे ले परमात्मा ह इही महीना के पुन्नी तिथि म अपन पूजा के प्रतीक के रूप म तेज रूप म सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड म संचरे विराट रूप के प्रतीक स्वरूप शिव लिंग के प्रादुर्भाव करे रहिसे। इही महीना के अंजोरी पाख के पंचमी तिथि म वोकर सबले प्रमुख गण, जे हमेशा वोकर गला म आसन पाथे, वो नांग देवता के घलो जमन होए हे, जेकर सेती हमन नाग पंचमी के रूप म उंकर सुरता अउ पूजा करथन।

परमात्मा के एक रूप प्रकृति ल घलो माने जाथे, अउ प्रकृति के अद्भुत रूप, सिंगार घलो ह ए सावन म देखने-देखन भाथे। ए महीना म झड़ी-बादर, तरिया-नंदिया के घलोक अइसन रूप होथे के मनखे मन एती-वोती जवई ल छोड़ के एके तीर बइठ के पूजा उपासना के मुद्रा म आ जथें। माने हर दृष्टि ले सावन परमात्मा के उपासना खातिर उपयुक्त लागथे। बोल बम के जयकारा पूरा महीना भर सुने ल मिलथे। जेती देखौ साधक रूप के सिंगार करे कांवरिया मन अपन-अपन क्षेत्र के पवित्र नंदिया-नरवा के जल लेके अपन-अपन क्षेत्र के सिद्ध शिव स्थल म जाके वोला समर्पित करथें। अध्यात्म म परमात्मा ल पाए के तीन रस्ता बताए गे हे- ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग अउ साधना मार्ग। सावन म ये तीनों रस्ता या मार्ग एके संग देखे ले मिलथे।

शिव के प्रमुख गण नागदेव के प्रादुर्भाव इही सावन के अंजोरी पंचमी म खुद भोलेनाथ अपन दाहिना हाथ ले करे रिहिसे। मोर साधना काल म एक ठन बिरबिट करिया शेषनांग हमेशा मोर जगा आवय अउ मोला लपेट डारय। शुरू-शुरू म अड़बड़ डर लागय। मैं वोला फुहर-फुहर के गारी देवौं, पटकिक-पटका होवौं, लड़ौं-झगरौं। धीरे-धीरे मोर अंदर के डर ह कम होए लागिस, त वोकर संग मजा लेए लागेंव। वो समय मोला बताए गिस के संपूर्ण सर्प प्रजाति के उत्पत्ति भोलेनाथ के दाहिना हाथ ले होए हे। वोकरे सेती वोहर एकर जम्मो काम म जेवनी या कहिन दांया हाथ के भूमिका निभाथे। जिहां कहूं शिव उपासना होथे, वोकर मदद खातिर सबले पहिली इही जाथे। शेषनाग के सिरिफ पांच फन होथे, इहू बात ह जाने के लाइक हे। ये पांचों फन ह भोलेनाथ के दाहिना हाथ के पांचों अंगरी के प्रतीक आय। शेषनाग के संबंध म जेन सैकड़ों-हजारों फन के कथा मिलछे वो मनगढ़ंत अउ अतिशयोक्ति आय।

सावन पुन्नी के दिन जेन रक्षा बंधन के तिहार मनाए जाथे वोहर सिरिफ भाई-बहिनी के रक्षा के तिहार नोहय, भलुक जम्मो जीव-जगत के रक्षा परब आय। काबर ते परमात्मा इही दिन अपन पूजा के प्रतीक देके जम्मो झन के सुरक्षा अउ सुख-शांति के आशीष अउ वचन दिए रिहिन हें। इहां ये जानना जररूरी हे, के उपासना के फल हर उपासक ल मिलथे। एकर प्रक्रिया अंजोरी-अंधियारी पाख के आधार म मिलथे। अंधियारी पाख म हमर रद्दा म जेन अवरोधक तत्व होथे, वोला हटाए के बुता होथे, अउ अंजोरी पाख म फेर वो फल जेकर उपासना खातिर साधना करे जाथे वो ह मिलथे। ए सब ह एके दिन या महीना म नइ मिल जाय, जइसे-जइसे कारज होथे, वोकर मुताबिक वतका दिन तक धैर्य रखे के जरूरत होथे।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
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