Monday 17 April 2017

नंदिया कस आगू बढ़व...

नंदिया के एक सबले बड़े गुन होथे, वोला कतकों रोक ले, छेंक ले, मूंद ले, तोप ले फेर हर बंधन ल टोर के वो आगू बढ़ जाथे। बड़े-बड़े डोंगरी पहार आथे, पखरा अउ पटपर आथे वो जम्मो जगा ले अपन निकले के रद्दा निकाल लेथे। हम सबके जिनगी ल घलो अइसने होना चाही। कोनों कतकों रोके-छेके अउ भरमाए-भटकाए के उदिम रचय फेर, फेर हमार जेन लक्ष्य हे उहां तक पहुंचे के लगन हमेशा लगे रहय। जइसे नंदिया सागर म मिल के ही थिराथे, वसने हमूं मन अपन मंजिल म पहुंच के ही थिराइन।

नंदिया म एक अउ अच्छा गुन होथे। जब वोकर अस्तित्व ल खतम करे खातिर कोनो बड़का बांध के निरमान करे जाथे, त वोहर अपन कस अउ दू-चार छोटे-मोटे नंदिया-नरवा ल सकेल-जोर के बांधा के अहंकार म बूड़े बूड़ान ले अपन स्वाभिमान के अस्तित्व ल ऊँचा बना लेथे, अउ वोकर हर ऊँचाई ले नाहक के अपन मिशन ल पूरा करथे। आज ए माटी ल अइसने मिशन के रूप म काम करने वाला मन के जरूरत हे, जेन तन-मन अउ वचन-कर्म ले इहां के मूल आदि धर्म, संस्कृति अउ सामाजिक-आर्थिक स्वाभिमान खातिर नंदिया कस आगू बढ़ सकंय। बिना स्वार्थ के, बिना पद के, बिना कोनो मोह के। वोकर उद्देश्य केवल परोपकार रहय, परमात्मा राहय अउ हर किसम के पापाचार के संहार राहय।

मोला आज के टिपुर्री छाप राजनीति म तो एको अइसन मनखे नइ दिखय जेकर ऊपर कोनो किसम के भरोसा करे जा सकय। आज तक जतका झन संग मोर भेंट होइस सब फोसवा निकलिन। दू-चार ठोंस दाना कस मनखे घलोक दिखीस त वोमन अपन खुद के अस्तित्व रक्षा अउ पेट-पसिया के जुगाड़ म सरी जिनगी ल खपाए जावत हें।

जे मन सत्-धरम ले चाहथें के इहां के उद्धार होवय, त जइसे बड़का बांधा के गरब टोरे बर दू-चार अउ नंदिया मन अपन संपूर्ण अस्तित्व ल मूल नंदिया के कोरा म समर्पण कर देथें, वइसने मूल मिशन म भिड़े मनखे मन ला अपन ऊर्जा के खजाना ल पौंप देना चाही। प्रकृति के स्वभाव अउ व्यवहार ह हम सबके जीवन बर एक आदर्श के काम करथे, तेकर सेती वोकर हर घटना अउ रूप के गंभीरता ले चिंतन-मनन करना चाही। एक घांव बने-बने मनखे के आदत-व्यवहार ह धोखा दे दिही, फेर प्रकृति के कोनो भी रूप ह चिटको कनी घलो धोखा नइ देवय।

आज हमन इहां के मूल धरम, मूल संस्कृति अउ मूल निवासी मन के अधिकार के रक्षा के नांव म गुन-गुन के सुक्खा पान कस हाले-डोले ले धर लेथन। आपस म गोठियाथन के बाहिरी लोगन तो हमर अस्तित्व ल खतम करे म दिन दूना अउ रात चौगुना षडयंत्र रचत हें। कइसे करबो, कइसे बांचबो? फेर मैं अइसन किसम के चिंता-फिकर म अपन बेरा ल नइ पहावौं। काबर ते मोला दीया के स्वभाव मालूम हे। जब वोकर बुताए के बेरा आथे, त अउ जोर-जोर से भभकथे। अइसने बाहरी मनखे मन घलोक इहां के लोगन के अपन अस्तित्व रक्षा खातिर बाढ़त निष्ठा अउ ज्ञान ल देख के पाखण्ड के मात्रा ल बढ़ा दिए हें। उन बात-बात म राष्ट्रीयता के बात करथें। एक धर्म अउ एक राष्ट्र के बात करथें। फेर प्रश्न ये हे, एमन एक भगवान, एक जाति, एक वर्ण अउ एक संसार के बात काबर नइ करंय?

अइसन जम्मो किसम के पाखण्ड रचइया मन के डमडमा के पेट ल फोरे ले परही। इही मन सब डोंगरी-पहार आय, जे मन हमार मन के अस्तित्व खतम करे खातिर, हमन ल अपन गुलामी के खखौरी म चपके खातिर मुंड़ उठाये खड़े हें। हमन ल अइसन जम्मो बड़का अवरोध बांधा-छांधा मन ले जम्मो छोटे-छोटे नंदिया-नरवा कस एकमई होके आगू बढऩा हे, अपन लक्ष्य तक पहुंचना हे।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छ. ग.)-492001
मो. 98269 92811, 79747 25684
 
 

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