Wednesday 19 April 2017

तब कोरा भरथे अन्नपुरना के

भादो के गहिर बरसा ल अन्नपुरना के गरभ भरे के प्रतीक-महीना माने जाथे। जतका जादा अउ बेरा-बखत म बरसा होथे, अन्न के मोट्ठई अउ पोट्ठई वोकरे अनुसार सुघ्घर अउ गुत्तुर होथे।  एकरे सेती हमर इहां पोरा तिहार के दिन धान के गरभ भरे के प्रतीक स्वरूप 'पोठरी पान" के संस्कार मनाए जाथे। जम्मो किसान पोरा म रोटी-पीठा जोर के अपन-अपन खेत म लेग के राखथें। जइसे नवा बहुरिया ल पहिलावत लइका बखत 'सधौरी" खवाए के नेंग करे जाथे न, बस वइसने अन्नपुरना ल घलो 'पोठरी पान" खातिर 'सधौरी" के रूप म रोटी-पीठा अर्पित करे जाथे। हमर धरम-संस्कृति के जम्मो रीत-नीत अउ गीत ह प्रकृति के ये गुन ल अपन अंचरा म संवांगा करथे।

भादो के जतका महत्व आम जीवन म हे, वतके अध्यात्म घलो हे। हमर इहां के आदि धर्म म ए महीना ल शिव पार्षद मन के प्रादुर्भाव के महीना माने जाथे। भगवान भोलेनाथ के तीन प्रमुख गण के जनम इही महीना म होए हे, संग म माता पार्वती के द्वारा भोलेनाथ ल पति रूप म पाए खातिर करे गे कठोर तपस्या केे प्रतीक स्वरूप 'तीजा" के परब घलोक इहीच महीना म आथे। जइसे शिव उपासना खातिर सावन के महीना के महत्व हे, वइसने वोकर गण-पार्षद मन के उपासना खातिर भादो के महत्व हे। ए भादो के अंधियार पाख के छठ तिथि म स्वामी कार्तिकेय के जनम होए हे, जेला हम 'कमरछठ" के रूप म जानथन। अमावस्या के पोरा के रूप म जेन परब मनाथन वो शिव सवारी नंदीश्वर के जनम तिथि आय, अउ अंजोरी पाख के चतुर्थी तिथि गणनायक गणेश के उत्पत्ति या निरमान होए के तिथि आय।

'कमरछठ" असली म संस्कृत भाखा के 'कुमार षष्ठ" के छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश रूप आय। देव मंडल म सिरिफ शिव पुत्र कार्तिकेय ल ही कुमार कहे जाथे, जे हर देव मंडल के सेनापति के घलोक भूमिका निभाथे। एकरे सेती जब भी अंजोरी-अंधियारी वाला पक्ष परिवर्तन होथे त वोकर प्रभाव ह छठ तिथि ले ही परिवर्तित होथे। (ए बात ल सिरिफ साधना-मार्ग के साधक मन ही अनुभव कर पाहीं, सामान्य जीवन जीने वाला मन नहीं। ) हमर इहां एकरे सेती कमरछठ परब म महतारी मन उपास रहि के शिव-पार्वती के पूजा करथें अउ अपन-अपन लोग-लइका मन के सुरक्षा के साथ कार्तिकेय जइसे ही श्रेष्ठ अउ योग्य जीवन के कामना करथें। आजकल 'कमरछठ" ल 'हलषष्ठी" के रूप म बलराम जयंती के नांव म प्रचारित करके हमर संस्कृति के मूल रूप ल भ्रमित करे जावत हे। ए ह बने बात नोहय।

भादो अमावस्या के हमर इहां जेन पोरा के परब मनाए जाथे वो ह शिव-सवारी नंदीश्वर के जन्मोत्सव आय।  हमर इहां एकरे सेती ए दिन नंदिया बइला ल बने सम्हरा के पूजा करे जाथे। हमर संस्कृति म मुख्य देवता के संगे-संग उंकर गण-पार्षद मन के घलोक पूजा होथे, इहू एक अच्छा परंपरा आय। ए दिन लइका मनला माटी के बने बइला ल दंउड़ावत देखबे त बड़ा निक लागथे। लोगन बइला दउड़ के प्रतियोगिता घलोक करथें।

अंजोरी पाख के चतुर्थी तिथि म जब गणपति बाबू दस दिन बर सजे-धजे पंडाल मन म बिराजथे, त बड़ा आनंद आथे। चारोंमुड़ा रिंगी-चिंगी, मेला-मड़ई, नाचा-गम्मत, हल्ला-गुल्ला, पोंगा-बाजा, चिहुर मात जाथे। गणपति ल गणनायक सिरिफ एकरे सेती कहे जाथे, के वोहर बुद्धि म बड़ा तेज रिहिसे, तेकरे सेती वोला जम्मो गण मन के मुखिया के पद दे गइस। समाज संचालन म अइसन बात मनला सुरता करे जाना चाही। फेर आज उल्टा होवत हे, पद अउ पइसा ह योग्यता के मापदंड बनगे हवय। जे मनखे मनला अपन कला-संस्कृति, भाषा-अस्मिता अउ ऐतिहासिक गौरव के ज्ञान अउ गरिमा नइ राहय, तेकर मन के हाथ म समाज के नेतृत्व सौंपे जाना बहुते नुकसान के बात आय।

गणेश चतुर्थी के एक दिन पहिली माने अंजोरी पाख के तीसरा तिथि के हमर महतारी मन अपन-अपन पति के सुरक्षा अउ अखण्ड सौभाग्य खातिर कठोर उपास के माध्यम ले तीजा के परब ल पूरा करथें। 'तीजा" माता पार्वती द्वारा भोलेनाथ ल पति रूप म पाए खातिर करे गे कठोर तपस्या के प्रतीक स्वरूप मनाए जाने वाला परब आय। हमर छत्तीसगढ़ म एक बहुते सुंदर रिवाज हे। ए तीजा परब ल पूरा करे खातिर महतारी मन अपन-अपन मइके जाके एला पूरा करथें। अलस म पार्वती जब कुंवारी रिहिसे तब ये तप ल करे रिहिसे। कुंवारी पन माने माता-पिता के घर म रहना, एकरे सेती ये तीजा के परब ल हमर इहां के महतारी मन अपन पिता के घर जाके ए परब पूरा करथें। ए परब ल कुंवारी नोनी मनला घलोक करना चाही, काबर के पार्वती तो कुंवारीच पन म एला करे रिहिसे।

तीजा के महत्व ह सिरिफ पति पाए या उंकर उमर बढ़ाए भर के परब नोहय। असल म मइके जाये के उत्साह, वोमन म जादा देखे बर मिलथे। बर-बहाव के बाद नारी-परानी मनला ससुरार म जिनगी पहाना होथे। बचपन के संगी-सहेली, हित-पिरित, भइया-भउजी, दाई-ददा के दुलार अउ गोठ ह नोहर कस हो जाथे। तीजा म जम्मो झन संग भेंट हो जाथे, एकरे सेती भोभली डोकरी हो जाय रहिथे, तेनो मन ह मइके ले तीजहार आए के रद्दा देखत रहिथे।

अतेक सुंदर भावना ले भरे संस्कृति ल तो पूरा दुनिया म बगरना चाही। खास करके अइसन समाज जेन बेटी ल बोझा मान के कोंख म ही मरवाए के उदिम करत रहिथे। अइसन लोगन मनला छत्तीसगढ़ के ये महान संस्कृति ले शिक्षा लेना चाही, एला आत्मसात करे जाना चाही।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छ. ग.)-492001
मो. 98269 92811, 79747 25684
     

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