Tuesday 30 January 2018

कनिहा मटक जाथे बाबा...





















कनिहा मटक जाथे बाबा,
तोर डमरू के भाखा सुन मटक जाथे..

संगी-सहेली संग किंजरे बर गुनथौं
ततके बेर ठउका एकर भाखा सुनथौं
उठे पांव मोर अटक जाथे बाबा, तोर---


काम-बुता तो घलो अब होवय नहीं
गारी देथें मोला सब्बोच झन जोहीं
बुता ले चेत अब भटक जाथे बाबा, तोर---

तने-तनाय रहिस पहिली ये तन ह
लरी-लरी होगे जोहीं देंह-रतन ह
उपास के मारे देंह झटक जाथे बाबा , तोर---

-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो नं 9826992811

No comments:

Post a Comment