Tuesday 30 January 2018

छत्तीसगढ : जहां देवता कभी नहीं सोते....

छत्तीसगढ की मूल संस्कृति निरंतर जागृत देवताओं की संस्कृति है। हमारे यहां वह व्यवस्था लागू नहीं होती, जिसमें यह कहा जाता है, कि चातुर्मास के चार महीनों में शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि इन महीनों में देवता सो जाते या आराम करते हैं।

मित्रों, हमारे यहां कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला पर्व गौरा-ईसरदेव जिसे हम गौरी-गौरा के नाम पर भी जानते हैं, वह इसका सबसे बड़ा जवाब है, कि छत्तीसगढ में ऐसी व्यवस्था लागू नहीं होती। 

जिस छत्तीसगढ में कार्तिक अमावस्या अर्थात देवउठनी से दस दिन पहले गौरा-ईसरदेव पर्व के रूप में यहां के सबसे बड़े देव के विवाह का पर्व मनाया जाता हो, वह इस बात पर कैसे विश्वास करेगा कि सावन, भादो, क्वांर और कार्तिक माह के अंतर्गत आने वाले चातुर्मास में किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किया जाना चाहिए?
हमारे यहां गौरी-गौरा पूजा या विवाह के साथ ही श्रावण के महीने में भीमादेव का भी विवाह पर्व मनाया जाता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु में कम वर्षा होने की स्थिति में मेढक-मेढकी की शादी करने की परंपरा भी यहां देखने को मिलती है।


मित्रों, जो देव हमारी हर सांस में बसे हों, हमारी हर धड़कन में अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हों, वे सो कैसे सकते हैं? वह भी चार महीनों तक? 


दर असल यह हमारी मूल संस्कृति को समाप्त कर उसके ऊपर अन्य संस्कृति को थोपने की साजिश मात्र है। क्योंकि यहां की मूल संस्कृति में सावन, भादो, क्वांर और कार्तिक यही चार महीने सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। इन्हीं चार महीनों में यहां के सारे प्रमुख पर्व हरेेेेली  से लेकर गौरा ईसरदेव विवाह तक के पर्व आते हैं। इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं, कि इन चार महीनों को ही सबसे ज्यादा शुभ, पवित्र और फलदायी माना जाना चाहिए। जितने भी मांगलिक और विशिष्ट कार्य हैं, इन्हीं चार महीनों में किए जाने चाहिए।

कोन कहिथे देवता सूतथे उहू म चार महीना
सांस सांस म जे बसे हे वोकर का सूतना जगना
उजबक होही वो मनखे जे अइसन गोठियाथें
अउ परबुधिया हे उहू मन जे एला पतियाथें

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर
मो. नं. 9826992811

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